गतांक से आगे –
“गंगा सिंह का तालाब”
ये मोतीझिल मार्ग में स्थित है ….ठाकुर गंगा सिंह नामक किसी व्यक्ति ने यह तालाब खुदवाया था ….श्रीचक्रपाणि शरण यहाँ आते थे और इसी तालाब के पीछे बैठकर भजन करते ….भजन का क्रम इनका दोपहर के तीन बजे तक चलता था …ये उठते ही यहाँ आजाते और भजन करने बैठ जाते थे …महात्माओं की अपनी विलक्षण रीत होती है …रात्रि इनकी अपवित्र तो होती नही …इसलिये स्नान की आवश्यकता उठते ही पड़ती नही ….ये प्रातः तीन बजे उठ जाते और भजन में ही बैठ जाते …रात्रि में भोजन करते नही थे इसलिए शौचादि की भी आवश्यकता उठते ही पड़ती नही थी । दोपहर तीन बजे के बाद ये भजन से उठकर शौचादि करते स्नान करते थे ।
“ गंगासिंह का तालाब “ ये स्थान इनको बहुत प्रिय लगा था ….अपनी माता जी को भी ये अब यहाँ ले आए …..दो झोपड़ी बना लीं …..एक मैं ठाकुर जी को रखा उसी में इनकी माता जी रहती थीं और एक में ये स्वयं रहते थे ।
परम विरक्त थे ….दूसरे दिन के लिए ये अन्न कुछ नही रखते …भिक्षा करना चार बजे …जो मिलता था भिक्षा में फिर उसी दिन सब बनाकर भोग लगा लेना है ….और जो आटा बच जाये उसे बन्दर चींटी और तालाब की मछलियों को खिला देना है ।
एक होती है कीर्ति जो स्वयं के प्रयास से प्राप्त होती है और एक “विमल कीर्ति” जो ठाकुर जी स्वयं अपने भक्तों को प्रदान करते हैं ….कीर्ति कभी भी धूमिल हो सकती है …पर विमल कीर्ति शताब्दीयों तक रहती है ।
श्रीचक्रपाणि शरण जी की विरक्ति की चर्चा यहाँ के सन्त समाज में होने लगी थी ….पर ये अपने को छोटा ही मानते और सबको आदर देते ।
इनका ये मोतीझिल क्षेत्र अपना बन गया था …नेपाल से जो आध्यात्मिक पिपासु श्रीवृन्दावन में आते वो इनके पास अवश्य आते थे और इनसे प्रभावित हुए बिना जाते नही थे …..इस तरह इनके कई शिष्य हो गये विरक्तों की भी संख्या बहुत हो रही थी इसलिए कुछ पक्के मकान बनाये गये …फिर धीरे धीरे एक आश्रम बनकर तैयार हो गया …जिसका नाम “युगल भवन” रखा गया था ।
महात्माओं की अपनी मौज है …..श्रीचक्रपाणि शरण ने अब रात्रि में श्रीवृन्दावन की परिक्रमा देनी प्रारम्भ कर दी थी ….ये वाणी पाठ खूब करते थे ……इनका प्रिय वाणी ग्रन्थ था महावाणी….युगलशतक और इसके साथ साथ बयालीस लीला जो श्रीराधाबल्लभ सम्प्रदाय का ग्रन्थ है ये इनको बड़ा प्रिय था …ये कहते थे वाणी जी का पाठ , नाम जाप और धाम वास …बस इन तीन को पकड़ लो तो ठाकुर जी तुम्हारे वश में हो जायेंगे । ये रात्रि में परिक्रमा लगाते …और अकेले में वाणी जी के पदों को गाते हुये चलते । दर्शन में ये नित्य – श्रीबाँके बिहारी जी श्रीराधाबल्लभजी और श्रीगोपेश्वर महादेव …ये इनके पक्के थे ।
एक दिन श्रीचक्रपाणिशरण को उसी तालाब के पास एक प्रेत दिखाई दिया ….बहुत लम्बा चौड़ा प्रेत ….इन्होंने उससे सम्वाद स्थापित करना चाहा …पर वो भाग गया ….अब तो नित्य ही वो दिखाई देता था ….एक दिन उससे इन्होंने कड़े शब्दों में कहा- तुम्हें इस योनि से मुक्ति चाहिए तो मुझे बताओ …नही बताओगे तो दुःख ही पाते रहोगे …तब वो प्रेत बोला …मैं ठाकुर गंगा सिंह हूँ ।
श्रीचक्रपाणि शरण चौंक गये थे ….ये तालाब तुमने बनाया है ना ? कुछ देर मौन रहकर वो प्रेत फिर बोला ….हाँ , पर मैंने अपनी विधवा भाभी का धन हड़प लिया था ….लाखों रुपए की उसकी सम्पत्ति थी ….मेरे भाई जैसे ही मरे उनकी सम्पत्ति मैंने ले ली ….और उनकी पत्नी को कुछ नही दिया ….वो प्रेत आगे बोला ….मुझे पाप का डर भी था …इसलिये मैंने उस सम्पत्ति के किंचित भाग से ये तालाब बना दिया …ताकि मैं “परधन” हरण के पाप से बच जाऊँ ….पर मुझे क्या पता था …पाप का फल तो भोगना ही पड़ता है इसलिये मैं आज प्रेत बना घूम रहा हूँ ….क्या चाहते हो तुम ? श्रीचक्रपाणि शरण ने पूछा । मुक्ति । बस इतना कहा प्रेत ने ।
गम्भीरता से विचार कर श्रीचक्रपाणि शरण बोले – भागवत का पाठ होगा ….तुम्हारे नाम-गोत्र से ….पर दक्षिणा कौन देगा क्यों की बिना दक्षिणा दिये तुम उस फल को ले नही सकते …तुम्हें फल प्राप्त नही होगा ….श्रीचक्रपाणि शरण ने कहा । प्रेत बोला – आप मोतीझिल कुण्ड में जायें वहाँ पूर्व की ओर पीपल का वृक्ष है उसी के नीचे मैंने कुछ मोहरें दबा रखीं हैं …उसे ले लें ….और उससे आप मेरे उद्धार का उपाय कर दें ।
श्रीचक्रपाणिशरण ने अपने शिष्य को उस स्थान पर भेज उन मोहरों को निकलवा लिया और
शुभ मुहूर्त देखकर भागवत मूल पाठ बैठा दी ….उन प्राप्त मोहरों से भागवत पाठ के साथ साथ द्वादशाक्षरी मन्त्र का जाप भी शुद्धता के साथ आयोजित करवा दिया और अन्तिम में भण्डारा भी …विरक्त इतने थे कि एक मोहर बच गयीं थीं उन्हें वापस उसी गड्डे में गढ़वा दिया …उस प्रेत योनि में गये व्यक्ति ने भागवत पाठ की पूर्णाहुति पर आकर कहा ….आप के कारण मेरी मुक्ति हो रही है ….मैं अब मुक्त हो रहा हूँ ….आपका बहुत धन्यवाद …इतना कहकर वो प्रणाम करके चला गया था …इसके बाद वो कभी नही आया । ये घटना श्रीवृन्दावन में चर्चा का विषय बनी थी ।
स्वामी श्रीअखण्डानन्द सरस्वती जी इनका दर्शन करने आते थे और इस विषय पर उन्होंने इनसे चर्चा भी की थी । माध्व गौडेश्वर सम्प्रदाय के परम विद्वान श्रीवनमाली दास शास्त्री जी इनके प्रिय मित्रों में से एक थे ।
शेष कल –