मंदिर के शिखर के ऊपर अष्टधातु में बना एक विशाल चक्र है जिसे नील चक्र अथवा श्री चक्र कहते हैं। यह चक्र उतना ही श्रद्धेय है जितना कि गर्भगृह में स्थापित स्वयं भगवान। चक्र के ऊपर फहराते ध्वज को पतित पावन कहते हैं। प्राचीन काल में पुरी की यात्रा के लिए निकले श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम इस ध्वज के ही दर्शन होते थे। इस ध्वज की एक झलक उन्हे यह जानकारी देती थी कि वे पुरुषोत्तम क्षेत्र में पहुँच गए हैं तथा उनका गंतव्य तीर्थ स्थल अब निकट ही है। इस क्षेत्र में अनेक यात्रा गीत प्रचलित हैं जिनमें इस ध्वज के प्रथम दर्शन प्राप्त करते ही तीर्थयात्रियों का उमड़ता आनंद स्पष्ट झलकता है।
नव ध्वज आरोहण
मंदिर के शिखर पर फहराता पतित पावन ध्वज एक दिन में अनेक बार बदला जाता है। उस समय सभी दर्शक गर्दन ऊंची कर टकटकी लगाए नवीन ध्वज फहराने के अनुष्ठान को देखते हैं। हम मंदिर में एकादशी के दिवस उपस्थित थे। हमने इसी नवीन ध्वज फहराने के अनुष्ठान को सहस्त्रों भक्तों के संग में देखा था। जगन्नाथ मंदिर का यह भी एक अविस्मरणीय अनुभव है। अतः इसका दर्शन अवश्य कीजिए।
इस ध्वज की एक आश्चर्यजनक विशेषता है कि यह ध्वज वायु के प्रवाह के विपरीत दिशा में फहरता है। यह कैसे संभव होता है कोई नहीं जानता।