प्रभु मिलन का अवसर


एक बार की बात है कुछ धनवान लोग एक महापुरुष के पास जाया करते थे,परन्तु वहाँ जाकर भी उन महापुरुष से सांसारिक वस्तुएं ही मांगा करते थे।वे संत जो भी बोल देते थे,वह पूरा हो जाता था।वे लोग बहुत प्रसन्न होते परन्तु उनका माँगना समाप्त नहीं हुआ।एक दिन महात्मा जी ने विचार किया कि ये लोग सांसारिक पदार्थो को एकत्रित करने में अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं,अब इनको कुछ समझाना चाहिए।एक दिन संत जी ने उनको कहा कि आप मेरे पास आते हैं और मेरे कहने से परमात्मा आपके कार्य पूर्ण कर देता है।आप लोग प्रभु से सीधी बात क्यों नहीं कर लेते?उन्होने कहा कि महाराज,हमें कैसे पता परमात्मा से कैसे बात करनी हैं?संत ने कहा कि वह मै सीखा दूँगा।सभी बहुत प्रसन्न हुए कि अब हमारा कार्य और भी आसान हो जाएगा।संत ने कहा कि प्रातः जल्दी आना,वे सभी लोग दूसरे दिन प्रातः संत के पास पहुंच गये।संत ने कहा कि आँखे बंद करके बैठ जाओ,परमात्मा से प्रार्थना करनी हैं। जैसे मैं बोलूँगा, ठीक उसी तरह मेरे पीछे-पीछे बोलना है।महात्मा जी ने बोलना प्रारम्भ कर दिया-हे प्रभु! आप सर्वान्तयामी हैं। आप कृपा करके हमारी समस्याओं को समाप्त कर दो।हे ईश्वर!आप तो भली- भाँति जानते हैं कि हमें कितनी चिंतायें हैं।कभी इन्कम टैक्स की चिंता तो कभी सेल टैक्स की।सभी लोग संत के पीछे-पीछे बोलते जा रहे थे।संत ने आगे कहा कि हे परमात्मा! आप कृपा करके हमें कभी भी मनुष्य शरीर न देना बल्कि हमें कुते,बिल्ली,गधे इत्यादि योनियों में भेज देना।यह सुनते ही सभी ने चौंक कर आँखे खोली और कहने लगे-महाराज!यह आप क्या कह रहे हैं?संत ने कहा कि आप केवल भोग ही तो भोगना चाहते हैं और ये भोग तो आप चौरासी लाख योनियों में भी भोग सकते हैं। उन योनियों में आपको किसी भी प्रकार की कोई चिंता नहीं सताएगी।सभी लोग संत के चरणो में गिर पड़े और कहने लगे कि महाराज,हम रास्ता भटक गये थे।आप कृपा करके हमें सत्य की जानकारी दे, जिससे हमारा कल्याण हो।तब संत ने उन्हें ब्रह्मज्ञान प्रदान कर ईश्वर दर्शन करवाया,फिर संत बोले- मनुष्य शरीर प्रभु से नश्वर वस्तुओं को माँगने के लिए नहीं अपितु प्रभु से प्रेम करने के लिए मिला है,इसलिए मनुष्य तन प्राप्त करके भी यदि हम माँगते ही रहे तो यह ठीक नहीं क्योंकि हमारी आवश्यकताओं के अनुसार तो उसने हमें पहले ही दिया हुआ है। जीवन आपका और निर्णय भी आप ही को लेना है



Once upon a time, some rich people used to go to a great man, but even after going there, they used to ask for worldly things from that great man. Whatever the saint used to say, it was fulfilled. His demand did not end. One day Mahatma ji thought that these people are wasting their lives in collecting worldly things, now something should be explained to them. One day the saint told him that you come to me and God completes your work by saying this. Why don’t you people talk to God directly? He said that Maharaj, how do we know how to talk to God? The saint said that I will teach him. Everyone was very happy that Now our work will be even easier. The saint said to come early in the morning, all those people reached the saint the next morning. The saint said to sit with closed eyes, to pray to God. As I will speak, in the same way I have to speak behind my back. Mahatma ji started speaking – O Lord! You are omnipotent. You please put an end to our problems. O God! You know very well how many worries we have. Sometimes worried about income tax, sometimes about sales tax. Everyone was talking behind the saint’s back. Further said that O God! You please never give us a human body, but send us in the vaginas of dogs, cats, donkeys etc. On hearing this, everyone opened their eyes in shock and said – Maharaj! What are you saying? The saint said that you You want to enjoy only enjoyment and you can enjoy this enjoyment in eighty-four lakh births as well. You will not be troubled by any kind of worries in those vaginas. Everyone fell at the feet of the saint and said that Maharaj, we had lost our way. He was given Brahmagyan and got God darshan, then the saint said – Human body is not given to ask God for mortal things, but to love God, so even after getting human body, if we keep on asking, then it is not right because our He has already given us what we need. Life is yours and it is up to you to decide

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *