गतांक से आगे –
दिव्य भूमि है जनकपुर धाम की , अत्यन्त कोमल भूमि है …विशाल सरोवर हैं …अनेक सरोवर हैं ।
फलों से लदे आम लीची के बगीचें हैं …नाना प्रकार के पुष्प खिले हुये हैं …उन पुष्पों पर भौंरे गुंजार कर रहे हैं …एक तरफ निर्मल पावन दूधमती बह रही है ।
बाबा ! सिया जू के प्राकट्य पर सुनयना माता के दूध नही बना तो भूमि से ही दूध की धारा प्रकट हो गयी …..इसलिये इस नदी का नाम दूधमति है ।
कोकिल साँई को किसी ने दूधमति का तट जब दिखाया …बस फिर क्या था दूधमती के जल को अंजलि में लेकर वो पान करने लगे …फिर उन्होंने स्नान किया …स्नान करते ही वो फिर भावावेश में आगये । लीला प्रत्यक्ष हो गयी ….
सुनयना महारानी भूमि से प्रकटीं अपनी सिया लली को आँचल में छुपाये महल की ओर आरही हैं …पीछे पीछे विदेहराज जी हैं ….कोकिल साँई सहचरी के भेष में सुनयना रानी के पीछे पीछे भाग रहे हैं ….हे महारानी ! लली को मुख दिखाय दे …रो रही हैं कोकिल सहचरी !
इस बार रुक गयीं सुनयना जी , कोकिल सहचरी आनंदित हो गयीं …..वो गोद में छुपी लली को देखने लगीं …..उसअद्भुत तपते कंचन की तरह रूप ….वो तो देखते ही रह गये ।
नयन बड़े ही लोभी है महारानी ! अब एक बार मेरी गोद में भी दे दो ना ! बस एक बार …कोकिल सहचरी अब जिद्द करने लगी थीं पर सोचा नही था कि महारानी मेरी इतनी बड़ी बात को इतनी सरलता से मान जायेंगी ….ले , लाली को अपने गोद में ले , सुनयना महारानी के मुख से इतना सुनते ही कोकिल तो नाचने लगी …अरी ! नाच मत पहले गोद में ले ….पर सुन ! सुनयना रानी ने कहा ।
हाँ , हाँ क्या बात है महारानी जू ? पूछा कोकिल सहचरी ने ।
किसी की नज़र न पड़े मेरी लाली पे । इतना कहकर गोद में दे दिया था सुनयना रानी ने ।
कोकिल साँई के आनन्द का आज पारावार नही था …ये आवेश उनका चार दिन तक चलता रहा ।
उस रात दूधमती में ही कोकिल साँई जी रहे । बधाई के पद गाते ….स्वयं ही रचते जा रहे थे ….ये कोई कवि तो थे नही ….पर अगर स्वामिनी रीझ जायें तो क्या नही हो सकता ?
श्रीभूनन्दिनी सदा अजर होवे, झूले हिंडोरे मंझारी !
कोटि कल्प लगी कुशल मनावाँ , यही मैं मनसा धारी !
उमा रमा सावित्री भवानी , सरस्वती सत वारी !
नैंन पुतरि इव बेटी विदेह की , करन सदा रखवारी !!
ये जनकपुर में रहे …..पर भाव के कारण इन्हें वहाँ नींद ही नही आती थी ….ये रात्रि में ही दौड़ पड़ते थे मन्दिर कि ओर ….कभी किसी सरोवर में …कभी किसी मिथिला वासी के घरों में ….”मेरी सिया , मेरी सिया” ….बस यही रट लगाये रहते थे …ये तन्मय हो जाते , ये देह सुध भूल जाते , इन्हें रोमांच होने लगता ….ये सब इनको श्रीजनकपुर धाम ही दे रहा था ।
एक बात तो है श्रीजनकपुर से इन्हें सहचरी भाव की प्राप्ति हुई …और मानसिक पूजा भी यहीं से इनको मिली थी । कोकिल साँई जनकपुर से नही आते …..किन्तु उनकी भाव स्थिति दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थी …..देह भान छूट रहा था …..कुछ खा ही नही पाते थे ये …सदैव हा स्वामिनी ! हा किशोरी ! बस यही यही ।
कोकिल साँई के साधक जो साथ में थे वो जनकपुर से इन्हें अब बाहर ले गये ….
हाँ , धाम की महिमा तो है ही ….जनकपुर से बाहर आते ही इनके भावावेश में कुछ कमी आयी …ये अब थोड़ा बहुत कुछ खा भी लेते थे नींद भी अब हो रही थी ।
वो साधक डर गये थे कहीं शरीर इनका छूट न जाये …अन्न का शरीर है अन्न ही नही जाएगा तो बचेगा कैसे …..इसलिये ये वापस मीरपुर ही इन्हें ले आये थे।
आप प्रसाद पा लें ……
जो सिन्धी भक्त हमें कोकिल साँई की पावन गाथा सुना रहे थे उन्होंने ही कहा ।
मैंने गौरांगी की ओर देखा तो वो बोली – बाद में । मैंने भी कहा बाद में ले लेंगे प्रसाद ….हाँ आप क्या कह रहे थे ….कोकिल साँई के साधक उन्हें वापस मीरपुर ही ले आये ?
जी , जिस दरबार की महंती इन्होंने छोड़ी थी वहीं रहने लगे थे ये ……कोकिल साँई के साधक ने सब संगत को कह दिया था कि इनको वापस ज्ञान मार्ग में लाओ नही तो ये भक्ति मार्ग से तो पगला जाएँगें ।
दरबार की संगत और स्वयं महन्त जी योग वाशिष्ठ पंचदशी आदि वेदान्त के ग्रन्थों का सत्संग करते थे ….कोकिल साँई को ऊँची गद्दी में बिठाया जाता था …..उस समय ये कोकिल साँई देखते रहते …वो ये देखते कि बेचारे श्रोताओं के वेदान्त कुछ समझ में नही आरहा ….कुछ नही ….कोई ऊँघ रहा है कोई झपकी ले रहा है ……तब ये समझाने लगते …ज्ञान में भक्ति को मिलाओ ….ज्ञान में भक्ति की मिठास रहेगी तो जीवन में रस , मधुरता बनी रहेगी ।
सत्संग आज किया था कोकिल साँई ने ….वहाँ की संगत बहुत प्रसन्न हुई …पर इनकी लाड़ली सिया सुकुमारी को ये सब नही चाहिये था …….इसलिये एक लीला और घट गयी ।
भगवान श्रीराम ने सीता माता का त्याग क्यों किया ?
एक दिन के सत्संग में किसी ने ये प्रश्न फिर उठा दिया ..फिर क्या था ..वो प्रेमा-भक्ति की आग फिर धधक उठी ।
हा स्वामिनी ! हा सिया जू ! वहीं गिर पड़े कोकिल साँई ।
उसी अवस्था में लीला राज्य में इनका फिर प्रवेश हो गया ………
महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में विदेह नन्दिनी हैं ….उनके नेत्र हर समय भींगे रहते हैं ….वो “श्रीराम श्रीराम” यही उच्चारण करती रहती हैं …..उनका दुःख मानवी तो छोड़ो पक्षी पशु भी नही देख पाते और इधर उधर मुँह करके रोते रहते हैं ……क्या करूँ मैं ? दूर बैठी हुईं हैं कोकिल सहचरी …..वो सुबक रही हैं ….कैसे स्वामिनी का दुःख काम करूँ ! तभी इनको प्रेरणा मिलती है ….सिया जू नही जाएँगी अवध पर मैं तो जा सकती हूँ …हाँ , उठकर खड़ी हो गयीं ….मैं जाऊँगी और उस “राम दरबार” में जाकर सिया जू का हाल बताऊँगी …उन्हें सब कहूँगी ….मेरी सुनेंगे वो श्रीरघुनायक ….क्यों नही सुनेंगे ! सुनना पड़ेगा …एक धोबी की बात सुन सकते हैं तो मेरी क्यों नही ?
कोकिल सहचरी को ये ठीक लगा …..वो तुरन्त ऋषि वाल्मीकि के आश्रम से अवध के लिये चली गयीं ….श्रीराघवेंद्र सरकार का दिव्य दरबार है …वहीं जाकर खड़ी हुईं और उन्होंने बोलना शुरू किया । हे कौशलेन्द्र ! आपका हृदय इतना कोमल है फिर भी आपने ऐसा क्यों किया ? उन निरपराध सती शिरोमणि सीता जी को क्यों छोड़ा ? कोकिल सखी की ये बात सुनते ही श्रीराघवेंद्र सरकार थोड़े असहज हो गये थे ……बोलिये महाराज ! वो कितनी दुखी है आपको पता है ? जिनके चरण कभी धरती में पड़े नही वो काँटों में चल रही हैं ….जिन्होंने कभी दीया भी न जलाया हो ….वो चूल्हा जलाती हैं …चक्की पिसती हैं …वनों में लकड़ियाँ बीनती हैं ….ओह !
हे अवधनाथ ! आप तो उनको समझते हो …आप तो उन्हें प्रेम करते हैं ? फिर ये सब दूरी क्यों ?
आक्रामक होकर श्रीराघवेंद्र सरकार के दरबार में सिया जू का पक्ष रख रही हैं कोकिल ।
सिया जू बहुत दुखी हैं हे राघवेंद्र ! और आप भी तो उनके रावण हरण पर दुखी थे …दुखी थे ना ? बोलिये ! कि वो सब नाटक था आपका ….बोलिये अवधपति ! बोलिये !
ये कहते कहते कोकिल जी मूर्छित हो गये थे,
ये स्थिति उनकी चार दिन तक ऐसी ही बनी रही थी ।
भावमय सहचरी देह अब इनको किशोरी जी की कृपा से प्राप्त हो रहा था ।
ये भाव जगत में ऋषि वाल्मीकि के आश्रम और अयोध्या में आना जाना करतीं ।
इनका प्रयास यही था कि मेरी सिया सुकुमारी का दुःख कष्ट कैसे कम हो ।
पर श्रीधाम वृन्दावन ये क्यों आये ? जनकपुर न सही अवध में ही रह लेते ?
ये मेरा सहज प्रश्न था उन सिन्धी भक्त से ।
शेष प्रसंग कल –
📖✨ Bhakta Kokil ✨📖
Part – 3
ahead of speed
Janakpur Dham is a divine land, very soft land…there are huge lakes…there are many lakes.
There are orchards of mangoes and litchis laden with fruits…various types of flowers are in bloom…bumblebees are buzzing on those flowers…pure pure milk is flowing on one side.
Dad ! Sunayana Mata’s milk was not produced on the appearance of Siya Ju, then the stream of milk appeared from the ground itself….. That’s why the name of this river is Dudhmati.
Kokil Sai was shown the shore of Dudhmati when someone showed him… What was it then, he took the water of Dudhmati in Anjali and started drinking… Then he took bath… After taking bath, he again got emotional. Leela became visible….
Queen Sunayana appeared from the ground and is coming towards the palace hiding her black lily in her lap…Videhraj ji is following behind….Kokil Sai is running behind Sunayana Rani in the guise of a companion….O Queen! Show Lalli’s face…Cuckoo’s companion is crying!
This time Sunaina ji stopped, Kokil Sahachari became happy…..She started looking at the lily hidden in her lap…..that wonderful hot Kanchan-like form….they kept on watching.
Nayan is very greedy queen! Now give it in my lap as well, won’t you? Just once… Kokila Sahachari was now insisting, but did not think that the queen would accept such a big thing of mine so easily. …Arry! Don’t take the dance in your lap first….but listen! Sunayana Rani said.
Yes, yes What’s the matter Queen Xu? Kokil Sahchari asked.
No one should be able to see my redness. By saying this, Sunayana Rani had given him in his lap.
There was no limit to Kokil Sai’s joy today… His enthusiasm continued for four days.
Kokil Sai was living in Dudhmati that night. He used to sing congratulatory verses….he himself was composing….he was not a poet….but if the lady relents then what can’t happen?
Shribhunandini should always be ajar, Jhula Hindore Manjari!
It took millions of cycles to convince me efficiently, this is my mind!
Uma Rama Savitri Bhavani, Saraswati Sat Vari!
Always take care of the eyes of the daughter and daughter of Videha!!
He stayed in Janakpur….but he could not sleep there because of feelings….he used to run towards the temple at night….sometimes in a lake…sometimes in the house of a Mithila resident….”My Sia, Meri Siya”….He used to keep chanting only this…he would become engrossed, he would forget his body care, he would get thrilled….Shrijanakpur Dham was giving him all this.
One thing is that he got companionship from Srijanakpur… and he got mental worship from here too. Kokil Sai does not come from Janakpur…..But his emotional state was increasing day by day…..He was losing body consciousness…..He could not eat anything…Always Ha Swamini! Hey Kishori! That’s all.
The devotees of Kokil Sai who were with him took him out of Janakpur now….
Yes, the glory of Dham is there….As soon as he came out of Janakpur, there was some decrease in his enthusiasm…Now he used to eat a lot and now he was also getting sleep.
Those sadhaks were afraid that their body might be left behind…the body is of food, if food is not consumed then how will it be saved….that is why they had brought him back to Mirpur.
You get the prasad……
The Sindhi devotees who were narrating the pious story of Kokil Sai told us.
When I looked at Gaurangi, she said – later. I also said that we will take the Prasad later….yes what were you saying….the devotees of Kokil Sai brought him back to Mirpur only?
Yes, the Mahanti of the court where he had left, he started living there…… Kokil Sai’s seeker had told all the Sangat to bring him back to the path of knowledge, otherwise he would go mad from the path of devotion.
The Sangat of the court and Mahant Ji himself used to do satsangs on Vedanta texts like Yoga, Vashishtha, Panchdashi etc…. Kokil Sai was made to sit on a high seat…. I am not coming….nothing….someone is dozing, some is taking a nap……then they start explaining…mix devotion with knowledge….if there is sweetness of devotion in knowledge, there will be sweetness in life.
Kokil Sai did a satsang today….the company there was very happy…but his beloved Siya Sukumari did not want all this….so one more leela happened.
Why did Lord Shri Ram abandon Mother Sita?
In one day’s satsang someone again raised this question..what was it then..that fire of love-devotion flared up again.
Oh lady! Ha Siya Joo! Kokil Sai fell there.
In the same state, he again entered the Leela state.
Videha Nandini is in Maharishi Valmiki’s ashram….Her eyes are wet all the time….She keeps on saying “Shriram Shriram”….Leave human beings, even birds and animals cannot see their sorrow and keep crying here and there. are…… what should I do? The nightingale is sitting at a distance…..she is sobbing…..how to ease the sorrow of the mistress! Only then they get inspiration….Siya Joo will not go to Awadh but I can go…yes, she stood up….I will go and go to that “Ram Darbar” and tell Siya Joo’s condition…I will tell her everything….they will listen to me That Shriraghunayak…. why won’t he listen! Will have to listen… If you can listen to a washerman then why not mine?
Kokil Sahachari liked it…..She immediately left for Awadh from sage Valmiki’s ashram….is the divine court of Shri Raghavendra Sarkar…stood there and started speaking. Hey Kaushalendra! Your heart is so soft yet why did you do this? Why did you leave that innocent Sati Shiromani Sita ji? On hearing these words of Kokil Sakhi, Shri Raghavendra Sarkar became a little uneasy…… Speak up Maharaj! Do you know how sad she is? Those whose feet have never touched the ground, they are walking in thorns…. those who have never even lit a lamp….they light the stove…the mill grinds…they collect wood in the forests….oh!
Hey Avadhnath! You understand them… you love them? Then why all this distance?
Being aggressive, Kokil is defending Siya Ju in the court of Shri Raghavendra Sarkar.
Siya Ju is very sad, O Raghavendra! And you were also sad because of his abduction of Ravana… were you sad, weren’t you? Speak! That it was all your drama….Speak Avadhapati! Speak!
Saying this, Kokil ji fainted.
His condition remained like this for four days.
He was now getting a soulful companion body by the grace of Kishori ji.
These feelings used to come and go in the world in the ashram of sage Valmiki and Ayodhya.
His effort was that how to reduce the suffering of my Siya Sukumari.
But why did he come to Shridham Vrindavan? Wouldn’t Janakpur have stayed in Awadh?
This was my simple question to that Sindhi devotee.
Rest of the episode tomorrow –