भक्त कोकिल भाग – 8

गतांक से आगे-

आहा ! तो ये है श्रीधाम वृन्दावन ! ब्रह्मा आदि बड़े बड़े देवता यहाँ के वृक्षादि के रूप में निवास करते हैं …..आहा ! तो ये है श्रीधाम वृन्दावन ! यहाँ का रज कण कितना प्रेमपूर्ण है ..यहाँ का वातावरण प्रेम की मत्तता लिये हुये है …..यहाँ तो नाचने का मन करता है ..यहाँ के वृक्षों को लताओं को चूमने का मन करता है …यहाँ के रज में लोटने का मन करता है ।

श्रीधाम वृन्दावन में पहुँच गये थे कोकिल अपने साधक परिकरों के साथ ।

श्रीधाम की शोभा देखकर तो मुग्ध हो गये कोकिल जी । वो दौड़कर वृक्ष लताओं को चूमते थे ….वो रज में लोट रहे थे …..कालिन्दी यमुना के तट पर आकर उन्होंने जब श्याम वरण की यमुना को देखा तो वो बोल उठे …अभी अभी श्याम सुंदर नहा के निकले हैं इसलिये इस जल का वरण श्याम है ……वो यमुना जल का पान करने लगे ।

शीतल मन्द सुगन्धित वायु बहने लगी थी जिसके कारण कोकिल जी भाव समुद्र में डूब गये ।

तभी सामने उनके इष्ट प्रकट हो गये ….दिव्य सिंहासन है , दोनों श्रीसीताराम जी विराजमान हैं …..हे जनककिशोरी ! देखो कितनी सुन्दर शोभा है इस श्रीधाम की ….उस ओर देखो …कमल खिले हैं यमुना तट पर …कैसे उन पर भौरें गुंजार कर रहे हैं । देखो तो यहाँ के कुंजों की शोभा ।

कोकिल सहचरी बड़ी प्रसन्न है …वो कभी श्री किशोरी जी को देख रही है तो कभी श्रीराघवेंद्र को…अपनी प्यारी किशोरी जी को प्रसन्न देखकर और दोनों को परस्पर हंसते हुये देखकर …कोकिल के आनन्द का पारावार नही रहा …वो दोनों के ऊपर पुष्प बरसाती हैं ..और आशीष ही देती जाती हैं – तुम दोनों ऐसे ही प्रसन्न रहो ….तुम दोनों की जोड़ी जब तक नभ में सूर्य चन्द्र हैं तब तक बनी रहे किसी की नज़र ना लागे तुम दोनों को ….कोकिल मन्त्र मुग्ध है ।

पर उसी समय कोकिल जी के मन में विचार आया कि ….अतिथि का स्वागत तो करना चाहिये ….देखो अवध नरेश अपनी महारानी को लेकर श्रीधाम वृन्दावन आये हैं किन्तु नन्दनन्दन और भानु दुलारी दिखाई नही दे रहीं ……ऐसे विलक्षण भाव के साथ जब कोकिल जी चारों ओर देखने लगे ही थे कि उसी समय सामने से श्रीवृन्दावन बिहारी लाल और श्रीबरसाने वारी दोनों ही अपनी सखियों के साथ यमुना पुलिन में पहुँचे …उठकर खड़े हो गये थे श्रीसीता राम जी , आगे बढ़कर श्रीकृष्ण चन्द्र जू ने श्रीरामचन्द्र जू को अपने हृदय से लगाया तो भानु किशोरी ने जनक दुलारी को अपने बाहों में भर लिया था ।

नाच रही है कोकिल सहचरी ….पुष्पों को उछाल रही है ….गुलाब जल का छिड़काव कर रही है ।

हे राघवेंद्र ! आप अब यहीं हमारे यहाँ श्रीधाम वृन्दावन में ही विराजें ।
नन्दनन्दन ने श्रीराम जी से प्रार्थना की ।

सखे ! हम दोनों भिन्न हैं कहाँ ? धर्म की मर्यादा का पालन मैं कर रहा हूँ और आप प्रेम की मर्यादा का पालन कर रहे हो । रघुनाथ जी की बात सुनकर श्रीकृष्णचन्द्र जू ने मुस्कुराते हुये पूछा – प्रेम की मर्यादा क्या होती है ? प्रेम के लिये ही हर क्रिया हो ये है प्रेम की मर्यादा ।
चाहे कुछ भी हो जाये किन्तु प्रेम में आँच ना आने पावें ….ये है प्रेम कि मर्यादा । ये कहते हुये दोनों आपस में हंसें थे ।

कोकिल सहचरी ने दूसरी ओर देखा तो और आनंदित हो उठीं ……

श्रीबृजेश्वरी श्रीराधिका जू मैथिली श्रीजनक दुलारी को अपने हृदय से लगा रही हैं ……

ये दृश्य देखकर कोकिल सखी नाचने लगीं …गाने लगीं …..

मैथिलि , तेरे आवन पे बलि जाऊँ ।
जुग जुग जीयो जानकी बहिनिया , मुरली मधुर सुनाऊँ ।।

तभी कोकिल सखी को आवेश आगया ….हाथों में पुष्पों को लेकर आयीं और सिया राम जी को सिंहासन में विराजमान कराके बोलीं – हे वृन्दावन बिहारी ! हे भानु दुलारी ! मेरी सिया बहन ने बहुत दुःख सहे हैं ….इसलिये मैं चाहती हूँ कि आप सब लोग मिलकर इन दोनों को आशीष दें कि ये जोड़ी ऐसे ही बनी रहे …अखण्ड अनादिकाल तक बनी रहे …….

ये सुनकर नन्दकुमार हंसे , अवधेश कुमार भी हंसे ……भानु लली और जनक लली ये दोनों भी मुसकुराईं ……और देखते ही देखते दोनों एक दूसरे में समा गये …श्रीराम श्रीकृष्ण में समा गये और जनकलली भानुलली में समा गयीं ।

इस दृश्य को देखकर तो कोकिल सखी …..और गदगद हो उठीं …..दोनों को आशीष देने लगीं ….युगल सरकार के मस्तक पर अपने हाथ रखकर बोलीं …..

जुग जुग जीयो जानकी अदी ( बहिन )
राज करो रस निधि राघव सौं , अचल चंवर छत्र गदी ।।

कोकिल जी यमुना के किनारे नाच रहे थे …..श्रीवृन्दावन धाम के संतों ने जब इस भाव को देखा तो आनंदित हो गये कोकिल साँई सबको बुलाकर कहते ….ये मेरे सीताराम हैं …इनको आशीष दो …कि ये प्रसन्न रहें …इनकी इस जोड़ी में कभी किसी की नज़र ना लगे ।


“आप लोग दर्शन कीजिये” …..उन सिन्धी भक्त ने हमें कोकिल साँई के आराध्य श्रीसीताराम जी के दर्शन कराये …..पर श्रीसीताराम जी के ऊपर श्रीराधाकृष्ण का चित्रपट था ।

ये क्यों ? गौरांगी ने संकेत किया ।

कोकिल साँई का भाव बड़ा ही विलक्षण था ….वो श्रीबाँके बिहारी जी में दर्शन के लिये जाते तो वहाँ भी यही माँगते …मेरे सिया राम प्रसन्न रहें उनकी जोड़ी टूटे नही ….वो श्रीराधाबल्लभ जी दर्शन
करने जाते तो वहाँ भी यही माँगते ……कि मेरे श्रीराम और मेरी श्रीसिया जू दोनों एक दूसरे से कभी अलग न हों । वो सिन्धी भक्त हमसे बोले ….कोकिल साँई सबको प्रणाम करते थे ….पर श्रीसीता राम जू को प्रणाम नही करते , उनके सिर में हाथ रखते थे …..और आशीष देते । इनके आश्रम में बड़े बड़े सन्तों ने जब पधारना शुरू किया तब उन संतों से भी ये कहते थे – आशीष दो मेरे इन युगल लाड़लों को ….सिर में हाथ रखवाते ….आशीष देने को बोलते ।

कोई भिखारी कुछ माँगता तो उसे कभी मना नही करते …देते पर उससे कहते ..दुआ कर मेरे युगल प्रसन्न रहें । ब्राह्मण को दान देते तो यही माँगते – मेरे युगलवर प्रसन्न रहें ।

अद्भुत प्रेम था इनका …..अद्भुत प्रीत थी इनकी ।

ये कोकिल साँई के द्वारा रचित पद हैं ….हिन्दी में ही हैं कोकिल जी हिन्दी और संस्कृत के विद्वान थे ..सिन्धी उनकी मातृभाषा थी इसलिये कोई कोई शब्द सिन्धी में हो सकते हैं बाकी तो हिन्दी ही है …….एक सिन्धी महिला ने आकर गौरांगी को कोकिल साँई की रचित पदों की किताब देते हुये उसे गाने का आग्रह करने लगी थी ।

आगे सुनाइये , श्रीवृन्दावन आकर कोकिल जी ने और क्या किया ?

वो सिन्धी भक्त मुझ से संकेत में बोले उधर सुनिये ……

गौरांगी हारमोनियम में बैठ गयी थी ……

आनन्द भयो आँगनमें आये आनन्दकन्द ।
लौ लालन से लाई , रसिकन रसिक मणि रघुचंद ।।
तत् सुख सिय साहिबि , सदा संतों में सिरताज ।
मगन अमर रस में सदा मैथिलिचंद्र महाराज ।।
सरल शील शुचि साधुतासे , भरी सती गुरु साय ।
रग रग से आशीष हो , रसिक मणि रघुराय ।।

बड़े भाव से कोकिल जी के पदों का गान कर रही थी गौरांगी ।

शेष कल –



ahead of speed

Ouch! So this is Shridham Vrindavan! The great deities like Brahma reside here in the form of trees….. Aha! So this is Shridham Vrindavan! How loving is the Raj particle here..the atmosphere here is intoxicated with love…..one feels like dancing here…one feels like kissing the vines here…one feels like returning to the Raj here. Is .

Kokila had reached Shridham Vrindavan with his devotees.

Kokil ji was mesmerized after seeing the beauty of Shridham. He used to run and kiss the vines….He was rolling in the rain….When he came to the bank of Kalindi Yamuna and saw the Yamuna of Shyam Varan, he said…Just now Shyam Sundar has come out of bath, so the Varan of this water It is Shyam…… he started drinking Yamuna water.

The soft, fragrant wind had started blowing, due to which Kokil ji’s feelings drowned in the sea.

That’s why his favorite appeared in front of him….It is the divine throne, both Shri Sitaram ji is sitting…..O Janakishori! Look at the beauty of this Shridham…look there…lotus have blossomed on the banks of the Yamuna…how bumblebees are buzzing over them. Look at the beauty of the keys here.

Kokila Sahchari is very happy… sometimes she is looking at Shri Kishori ji and sometimes at Shri Raghavendra… seeing her beloved Kishori ji happy and seeing both of them laughing together… there is no limit to the joy of Kokila… she showers flowers on both of them. ..and blessings go on giving – both of you remain happy like this….the pair of both of you should remain as long as there is sun and moon in the sky, no one can see you both….the kokil mantra is enchanted.

But at the same time a thought came in the mind of Kokil ji that….the guest should be welcomed….look, the King of Awadh has come to Shridham Vrindavan with his queen but Nandanandan and Bhanu Dulari are not visible……with such a unique feeling when Kokil Ji had just started looking around that at the same time Shri Vrindavan Bihari Lal and Shri Barsane Vari both reached Yamuna Pulin with their friends… Shri Sita Ram ji stood up, Shri Krishna Chandra Ju went ahead and greeted Shri Ramchandra Ju with his heart. When applied, Bhanu Kishori had filled Janak Dulari in her arms.

Nightingale is dancing….tossing flowers….sprinkling rose water.

Hey Raghavendra! You now sit here with us in Shridham Vrindavan. Nandanandan prayed to Shriram ji.

Friends! Where are we different? I am following the limits of religion and you are following the limits of love. After listening to Raghunath ji, Shrikrishna Chandra Ju smilingly asked – what is the limit of love? Every action should be for love only, this is the dignity of love. No matter what happens, love should not be affected…. This is the dignity of love. Saying this, both laughed among themselves.

Kokil Sahchari looked on the other side and became more happy……

Sri Brijeshwari Sri Radhika Ju Maithili is hugging Sri Janak Dulari with her heart……

Seeing this scene Kokila Sakhi started dancing…singing…..

Maithili, let me sacrifice myself at your door. Long live Janaki’s sister, let me recite sweet Murli.

That’s why cuckoo friend got excited…. She came with flowers in her hands and made Siya Ram ji sit on the throne and said – O Vrindavan Bihari! O dear Bhanu! My Siya sister has suffered a lot….that is why I want all of you together to bless both of them so that this pair remains like this…may it remain unbroken till eternity….

Nandkumar laughed hearing this, Awadhesh Kumar also laughed……Bhanu Lalli and Janak Lalli both also smiled……and as soon as they saw this both got absorbed in each other…Shri Ram got absorbed in Shri Krishna and Janakalli got absorbed in Bhanullali.

Seeing this scene, the cuckoo friend…..and got giddy…..she started blessing both of them….the couple said by placing their hands on Sarkar’s head…..

Jug Jug Jeeyo Janki Adi (Sister) Raj Karo Ras Nidhi Raghav Saun, Achal Chanwar Chhatra Gadi.

Kokil ji was dancing on the banks of the Yamuna….When the saints of Shri Vrindavan Dham saw this feeling, they became happy. Never be seen by anyone.

“You please see” …..the Sindhi devotee gave us darshan of the adorable Sri Sitaram Ji of Kokil Sai …..but there was a picture of Sri Radhakrishna on Sri Sitaram Ji.

Why this? Gaurangi indicated.

The gesture of Kokil Sai was very unique….When he used to go to Shribanke Bihari ji for darshan, he would have asked for the same thing there too…may my Siya Ram be happy, their couple did not break….that darshan of Shriradhaballabh ji. Had he gone to do it, he would have asked for the same thing there too… that both my Shri Ram and my Shri Siya Ju should never be separated from each other. Those Sindhi devotees told us….Kokil Sai used to bow down to everyone….but Sri Sita did not bow down to Ramjoo, used to keep her hand on his head…..and give blessings. When big saints started visiting his ashram, then he used to say to those saints too – bless this couple of mine dear ones….they used to put their hands on their heads….they used to ask them to bless them.

When a beggar asks for something, he is never denied… he gives it but says to him… pray that my couple be happy. If he had donated to a Brahmin, he would have asked – May my couple be happy.

His love was wonderful…..he had wonderful love.

These are the verses composed by Kokil Sai….Kokil ji was a scholar of Hindi and Sanskrit..Sindhi was his mother tongue, so some words may be in Sindhi, the rest are Hindi only…….A Sindhi woman came Giving Gaurangi a book of verses composed by Kokil Sai, she started urging her to sing.

Tell further, what else did Kokil ji do after coming to Shri Vrindavan?

That Sindhi devotee said to me in a sign, listen there……

Gaurangi sat in the harmonium.

Anand Bhoye Anandkand came in the courtyard. Brought from Lalan, Rasikan Rasik Mani Raghuchand. Tat Sukh Siya Sahibi, always crowned among the saints. Maithilichandra Maharaj is always happy in immortal juice. Simple modesty, purity and devotion, full of sati with Guru Sai. May you be blessed from every vein, Rasik Mani Raghurai.

Gaurangi was singing the hymns of Kokil ji with great emotion.

rest of tomorrow

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