गतांक से आगे-
बाबा ! बरसाने नही जाओगे ? एक छोटी सी कन्या ने कोकिल साँई से पूछ लिया था ।
बरसाना ? ये नाम सुनते ही कोकिल जी को रोमांच हुआ …”जाओ , वहाँ तो अवश्य जाओ”….ये कहते हुये वो कन्या चली गयी थी । कोकिल जी को भावावेश आगया ….ये तो मेरी किशोरी जू हैं …..जिन्होंने मुझे आज्ञा दी ! सन्ध्या की वेला थी उसी समय कोकिल जी बरसाने के लिये चल पड़े ….उनके साधकों ने पूछा – कहाँ जाना है साँई ! पर वो बाह्य जगत से अभी कटे हुये थे ।
बरसाने की सीमा में पहुँचते ही ….कोकिल जी ने वाहन को छोड़ दिया था ……बरसाने की सीमा को साष्टांग प्रणाम किया …..कुछ पुष्प भी अर्पित किये फिर रोते हुये हा स्वामिनी जू ! यही कहते हुये वो बरसाने में दौड़ने लगे थे ….कोई भी कन्या इनको मिलती उसके पाँव में पड़ जाते …..श्रीराधिका जू का स्वरूप समझकर वो हर बृज बालिका को प्रणाम करते ।
रात्रि में ये सोये नही …..गहवर वन की परिक्रमा ही लगाते रहे ….इनके साधकों ने कहा भी ….साँई थोड़ा विश्राम कर लेते …..पर ये कहते ….नही मुझे श्यामा श्याम जब तक नही मिलेंगे कैसा विश्राम ! एक स्थान पर जाकर ये मार्ग भूल गये ….साधक वृन्द भी भूल गये …..अब तो ये जहां से चलें वापस वहीं पहुँच रहे थे …..ऐसा बहुत देर तक होता रहा …..किसी के समझ में नही आरहा था और रात्रि भी घनी थी …क्या करें ? तभी एक मोरनी और एक मोर वहाँ आगये …..वो चलने लगे ….तो कोकिल जी अपने साधकों से धीरे बोले …यही हैं श्यामा श्याम …देखो कैसे मोर मोरनी का रूप धरकर हमें छल रहे हैं …….मार्ग बता कर वो मोर युगल फिर दीखे ही नही ।
कोकिल जी बोले ….अब खोजो कहाँ गये वो मोर युगल ! देखो , ये बरसाना है …यहाँ कोई पशु नही है कोई पक्षी नही है ….सब श्यामा श्याम ही हैं ….वहीं हैं सर्वत्र ।
ये कहते हुये कोकिल जी आनन्द से उछल रहे थे ।
प्रातः होने को आयी …..तब जाकर इन्हें थोड़ी छपकी सी आयी थी ……तभी एक बालिका सिर में माखन की गगरी लिये जा रही है …..कोकिल जी के पास आयी और बड़े प्रेम से बोली …बाबा माखन खा ले ! बाबा माखन खा ले ।
कोकिल जी ने इतनी मधुर आवाज़ सुनी ही नही थी …वो उठकर बैठ गये ……
बाबा माखन खा , वो लाली फिर बोली ।
कोकिल जी ने हाथ मुँह धोया और दातुन करने लगे ……
“बाबा तो बाबरो है , माखन नाँय खायरो …सूखी लकड़ी कुँ चवाय रह्यो है” …इतना बोलकर जैसे ही वो कन्या आगे बढ़ी …कोकिल जी दातुन को छोड़कर भागे …और उस कन्या को प्रणाम करते हुये बोले ……माखन दो स्वामिनी ! माखन दो , श्रीराधिका जू उसी समय प्रकट हो गयीं उन्होंने माखन खिलाया कोकिल साँई जी को और अन्तर्ध्यान हो गयीं ।
कोकिल साँई को बिना स्नान किये ,दातुन भी बिना किये , जब सबने देखा माखन खा रहे हैं ….तो पूछा …साँई ! आज नियम सब कहाँ गया ? कोकिल जी बोले …ये बरसाना है यहाँ हमारा नियम थोड़े ही चलेगा …..ये तो प्रेम की नगरी है …यहाँ की महाराज श्रीराधारानी हैं ..उनके आज्ञा का पालन सब को करना ही पड़ेगा । साधकों ने देखा कोकिल जी के नयनों में एक अलग ही मत्तता छा रही थी ।
एक माह बरसाने में रहे कोकिल जी , फिर नन्दगाँव आगये ।
नन्दगाँव में “उद्धवक्यारी” स्थान कोकिल जी का प्रिय स्थान था ।
वहाँ ये अपने साधकों के साथ बैठकर लीला चिन्तन करते …एक दिन –
श्रीराधारानी दधि की मटकी लेकर नन्दगाँव आयीं …..वैसे ये स्वयं राजपुत्री हैं ….इनके पिता भानु जी का ही बरसाना ,नन्दगाँव , गोवर्धन वृन्दावन ये सब इन्हीं का ही है …..पर श्रीकृष्ण से प्रेम के चलते ये भी दधि बेचने निकलती हैं …..दधि की मटकी लेकर बरसाने से नन्दगाँव जा रही हैं …आज अकेली हैं , सखियाँ इनकी हैं नहीं इनके पास ।
तभी पीछे से बन्दर की तरह श्याम सुन्दर आगये ….कोकिल जी ध्यान में ही डर गये थे ये कौन आगया मेरी लाड़ली के पास ।
पर जब देखा तो ये श्याम सुन्दर थे …..मुस्कुराये । पर ये क्या दधि की मटकी छीननें लगे ….श्रीराधारानी दे नही रही हैं …पर इनको छीनना ही है ।
कोमलांगी किशोरी जू …..छीना झपटी शुरू हो गयी ……अब चिन्ता लगी है कोकिल जी को कि कहीं श्यामा जू को लग न जाये …..जब ज़्यादा ही हो गया …तो उठकर खड़े हो गये और दौड़े प्रिया जू के पास , और श्याम सुन्दर का हाथ पकड़ लिया …..पर श्याम सुंदर ने कोकिल जी का हाथ छुड़ाकर फिर …..तब पीछे से कमर पकड़ ली कोकिल जी ने श्याम सुन्दर की …और चिल्लाकर बोले …भागो ! लाली भाग जाओ मैंने पकड़ लिया है ये कुछ नही कर पायेंगे ।
श्रीजी तो भाग गयीं ……हंसते हुये….श्यामसुन्दर को अंगूठा दिखाते हुये …..पर कोकिल जी अभी भी पकड़े हुये हैं श्याम को ……उनके दिव्य श्रीअंग से सुगन्धी निकल रही थी ..उसी सुगन्ध के चलते वो अभी तक छोड़ नही रहे थे श्याम सुंदर को । अरे , अब तो छोड़ दे ….कीर्ति कुमारी चली गयीं ।
कोकिल जी ने छोड़ दिया ….”अब अइयो तू होरी में “…श्याम सुन्दर इतना बोलकर चले गये ।
जब ध्यान टूटा कोकिल जी का ….तब उनके देह से दिव्य सुगन्ध निकल रही थी …उनके साधक मानों भ्रमर ही बनकर उनके आस पास में बैठे हुये थे । कैसे सुगन्ध ना आती कोकिल जी के वस्त्रों से , अंगों से …पीताम्बर धारी को इन्होंने कस कर पकड़ जो लिया था ।
कोकिल जी से जब इस विषय पर पूछा तो उनका यही उत्तर था ….मारने वाली पूतना को तो अपनी सुगन्ध दे दी …..फिर मैं तो उनकी प्रिया के पक्ष में खड़ा था ….और उनसे भी भिड़ गया..मैं तो उनके प्रेम रस में डूबा हुआ एक फक्कड़ आशिक़ हूँ ….कोकिल जी हंस रहे थे ।
होली कब है ? नन्दगाँव में पूछा तो वहाँ पता चला …बरसाने की होली कल है और नन्दगाँव की परसों । साधकों ने पूछा होली मैं ऐसा क्या होगा ? तो कोकिल जी हंसते हुये बोले …ये तो वही बतायेंगे कि क्या होगा ….मुझे निमन्त्रण दिया है की “अब तू अइयो होरी में” …अब वही जाने इस कोकिल का क्या करेगा वो नटखट ।
उसी रात्रि ……बरसाने की होली की पूर्व सन्ध्या पर ही ।
रात्रि में ध्यान में जब डूबे कोकिल जी …..जब उठे …..तो उनके मुख में गुलाल उनके बालों में गुलाल …उनके वस्त्र गुलाबी हो गये थे ……
साधकों ने पूछा …साँई ! ये क्या लीला है ?
बहुत हंसे कोकिल जी और बोले …मेरी क्या लीला ? लीला तो उसी ने की है …..
मैं तो घूम रहा था बरसाने की बीथिन में …..आनन्द मग्न था …तभी वो श्याम कहाँ से आया और मुझे रंग डालने लगा …मैं जितना बचने की कोशिश करता वो उतना ही रंगता जाता …..
फिर तो मैंने बचना ही छोड़ दिया …….कोकिल साँई इसके बाद क्या हुआ ये बता भी नही पाये ….वो भाव में पूरी तरह से डूब गये थे ।
“ब्रजरज रानी की जय हो”
जब जब आनन्द आता ये कोकिल जी यही बोलते ।
होली के रंग में रंगे थे ये आज …..बरसाने की भूमि को दिखाते हुये बोल रहे थे …देखो – धरती गुलाल से लाल है , वृक्ष गुलाल के कारण लाल हैं , आकाश लाल है …..और आश्चर्य ये कि कोकिल जी जिस जिस को बता रहे थे उन सबको लाल ही लाल दिखाई दे रहा था ….कितनी होली खेली है श्याम प्यारे ने …देखो तो ….अद्भुत । ये कहते हुये कोकिल जी के द्वारा पद अपने आप प्रकट होने लगे थे ।
आप सुनाइये !
उन सिन्धी भक्त ने गौरांगी को कोकिल साँई की किताब से होली का पद सुनाने को कहा ।
ये नही , ये पद , इसी को बरसाने में रचा था कोकिल साँई ने ।
गायन बहुत मीठा है गौरांगी का ………
“रंग उमंग समाई रहे , रस भोरी रहें बृज की यह गोरी ।
शील सनेह सनी सरसानी , रहे सदा राधिका श्याम की जोरी ।
बाल गुपाल बिहार करें नित, कुँज कुटीर छए बृज खोरी ।
पौरी सदा रंग घोरी रहे, चिरजीवी रहे बृज की यह होरी ।।”
शेष कल –
ahead of speed
Dad ! Won’t you go to rain? A little girl had asked Kokil Sai.
Rain ? Kokil ji was thrilled on hearing this name… “Go, you must go there”…. saying this the girl went away. Kokil ji got emotional…..this is my Kishori Joo…..who ordered me! It was evening time, at the same time Kokil ji started to rain…. His devotees asked – Where are you going Sai! But he was still cut off from the outside world.
As soon as he reached the limit of rain….Kokil ji had left the vehicle……prostrated to the limit of rain…..offered some flowers too and then crying Ha Swamini Ju! Saying this, he started running in the rain…. Any girl who met him would fall at his feet….
He did not sleep in the night…..he kept going round the Gahvar forest…..his devotees also said…..Sai would have taken some rest…..but he used to say….no till I do not get Shyama Shyam what kind of rest! After going to a place, they forgot the path…..the devotees also forgot…..now they were reaching back where they started…..this happened for a long time…..no one could understand and the night It was too dense… what to do? Only then a peahen and a peacock came there…..they started walking….then Kokil ji spoke softly to his sadhaks…this is Shyama Shyam…look how peacocks are deceiving us in the form of peahens….that peacock couple by showing the way Didn’t see again.
Kokil ji said…. Now find out where did that peacock couple go! Look, it is raining…there is no animal, no bird….everybody is Shyam Shyam….there they are everywhere.
Kokil ji was jumping with joy while saying this.
It was about to dawn…..then she had a slight splash……that’s why a girl is carrying butter in her head…..Cooked came to ji and said with great love…Baba eat butter! Baba eat butter.
Kokil ji had never heard such a sweet voice… He got up and sat down…
Baba eat butter, that redness again spoke.
Kokil ji washed his hands and mouth and started brushing his teeth.
“Baba to Babro hai, Makhan nay khairo… dry wood kuchay rahao hai”… As soon as the girl moved forward after saying this… Kokil ji ran away leaving Datun… and bowing down to that girl said… Give me butter, lady! Give butter, Shriradhika appeared at the same time, she fed butter to Kokil Sai ji and disappeared.
When everyone saw Kokil Sai eating butter without taking bath, without even brushing his teeth…. then asked… Sai! Where have all the rules gone today? Kokil ji said… It is going to rain here, our rule will not work….. This is a city of love… The Maharaj here is Shriradharani… Everyone has to follow her orders. Sadhaks saw that there was a different intoxication in the eyes of Kokil ji.
Kokil ji stayed in Barsana for a month, then came to Nandgaon.
“Uddhavkyari” place in Nandgaon was the favorite place of Kokil ji.
There he used to sit with his devotees and meditate on Leela… One day –
Shriradharani came to Nandgaon with a pot of curd…..by the way, she herself is a princess….her father Bhanu ji’s Barsana, Nandgaon, Govardhan Vrindavan all belong to her only….but because of her love for Shri Krishna, she also goes out to sell curd. …..She is going to Nandgaon after taking a pot of curd… Today she is alone, she does not have her friends.
That’s why Shyam Sundar came from behind like a monkey… Kokil ji was scared in meditation, who has come to my dear.
But when I saw this Shyam was handsome…..smiled. But did they start snatching the pot of curd….Shri Radharani is not giving…but they have to be snatched.
Komlangi Kishori Ju…..the snatching started……now Kokil ji is worried that Shyama Ju may not get hurt…..when it was too much…he stood up and ran to Priya Ju, and Caught Shyam Sundar’s hand…..but Shyam Sundar released Kokil ji’s hand and then…..then Kokil ji held Shyam Sundar’s waist from behind…and shouted…run! Lali, run away, I have caught them, they will not be able to do anything.
Shreeji ran away……laughing….showing thumb to Shyamsundar…..but Kokil ji is still holding Shyam……fragrance was emanating from his divine body…due to the same fragrance he is still not leaving Shyam Sundar Ko. Arey, leave it now…Kirti Kumari has gone.
Kokil ji left….”Ab aiyo tu hori mein”…Shyam Sundar left after saying so much.
When the attention of Kokil ji was broken… then divine fragrance was emanating from his body… His devotees were sitting around him as if in illusion. How could the fragrance not come from the clothes of Kokil ji, from the organs… He had held the Pitambar Dhari tightly.
When Kokil ji was asked about this, his answer was the same….I gave my fragrance to the killer Putna….Then I was standing by the side of his beloved….and also clashed with him….I was his love. I am a cocky lover drowned in juice…. Kokil ji was laughing.
When is Holi? When I asked in Nandgaon, I came to know there… Holi of Barsana is tomorrow and Nandgaon is the day after tomorrow. Sadhaks asked what will happen in Holi? So Kokil ji said laughing… He will only tell what will happen….I have been invited that “Ab tu aiyo hori mein”… Now only he knows what that mischievous will do with this cuckoo.
The same night……on the eve of Barsane Holi.
When Kokil ji drowned in meditation at night…..when he woke up…..there was gulal in his mouth, gulal in his hair…his clothes had turned pink……
Sadhaks asked… Sai! What is this Leela?
Kokil ji laughed a lot and said… What is my leela? Leela is done by him only.
I was roaming in the middle of rain…..I was happy…that’s why that Shyam came from where and started coloring me…the more I tried to escape, the more he used to paint…..
Then I stopped avoiding….Kokil Sai could not even tell what happened after that….He was completely immersed in emotion.
“Victory to Brajraj Rani”
Kokil ji used to say this whenever there was joy.
He was colored in the colors of Holi today…..showing the land of rain he was speaking…look – the earth is red with gulal, the trees are red because of gulal, the sky is red…..and the wonder is that Kokil ji They were telling everyone that red was visible to all of them….How much Holi has been played by Shyam Pyare…look then….wonderful. Saying this, the posts started appearing automatically through Kokil ji.
You tell!
That Sindhi devotee asked Gaurangi to recite the verse of Holi from Kokil Sai’s book.
Not this, this post, Kokil Sai had created it to rain.
The singing of Gaurangi is very sweet.
“May the colors be full of enthusiasm, May this beauty of Brij be full of rasa. Modesty affection Sunny Sarsani, May Radhika always be Shyam’s companion. Bal Gupal Bihar should do daily, Kunj Kutir Chaye Brij Khori. May Pauri always be bright in color, may this Hori of Brij live forever.
rest of tomorrow