सखी झूला झूले राधा प्यारी,
झूला खींचे मेरे बाँके बिहारी मेरो रमन बिहारी।
चहूँ दिश साबन मास है छाया, झूलन उत्सब का रंग है आया।
झूलन लग गए कदम्ब की डारी, झूला खींचे मेरे बाँके बिहारी ।
पुष्प लता चहु ओर खिले हैं, सब में पिय के रस से मिले हैं।
हुआ है आज सगरी उजियारी, झूला खींचे मेरे बाँके बिहारी।
यमुना तीर आजु झूलन हैं लागे, सखियन सबरी पिय झुलाबे।
बहत हैं शीतल मन्द मन्द बयारी, झूला खींचे मेरे बाँके बिहारी।
झूला झूले मेरी राधा प्यारी, मल्हार गाबै “बिरहनी” प्यारी,
होबै नित हिय से बलिहारी, झूला खींचे मेरे बाँके बिहारी।