!! जय श्री कृष्णा राधे राधे!! “छोटा बने सो हरि पावै”
भगवान श्री कृष्ण जी ने छोटी उंगली पर ही क्यों गोवर्धन पर्वत उठाया?
वैसे तो सभी जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत इंद्र के के अहंकार को तोड़ने के लिए पर्वत अपनी उंगली उठा लिया था।
अब दूसरी तरह से भी इसका सार समझते हैं वो क्या है आइए जानते हैं।
जब भगवान श्री कृष्ण जी गोकुल वासियों को इंद्र देव के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाना था तो उन्होंने अपनी उंगलियों से पूछा कि वे किस पर पर्वत को उठाएं।
सबसे पहले अंगूठा बोला,‘‘मैं नर हूं। बाकी उंगलियां तो स्त्रियां हैं अत:आप पर्वत मुझ पर ही उठाएं।
फिर श्री कृष्ण जी ने अंगूठे के साथ वाली उंगली (तर्जनी) से पूछा तो वह बोली, ‘‘किसी को अगर चुप कराना हो या कोई इशारा करना होता है तो मैं ही काम आती हूं, इसलिए आप सिर्फ मुझ पर ही पर्वत उठाएं।
इसके बाद यशोदा नंदन ने हाथ की बड़ी उंगली (मध्यमा) से पूछा तो वह बोली, ‘‘सबसे बड़ी होने के साथ-साथ ताकत भी रखती हूं। अत: आप पर्वत मेरे ऊपर ही उठाएं।’’
फिर देवकी नंदन ने बड़ी उंगली के साथ वाली उंगली, जिसे अनामिका कहते हैं, से पूछा तो वह बोली, ‘‘सभी पवित्र कार्य मेरे द्वारा ही सम्पन्न होते हैं, मंदिरों में देवी-देवताओं को मैं ही तिलक लगाती हूं, अत: आप मुझ पर ही पर्वत उठाएं।’
अब बारी आई सबसे छोटी उंगली की जिसे कनिष्ठा कहते हैं। वह रोते-रोते बोली, ‘‘भगवान, एक तो मैं सबसे छोटी हूं, मुझमें कोई गुण भी नहीं है और मुझमें इतनी ताकत भी नहीं कि मैं पर्वत उठा सकूं। मुझे सिर्फ इतना पता है कि मैं आपकी हूं। “छोटी उंगली की बात सुनकर भगवान श्री कृष्णजी ने कहा कि मुझे विनम्रता ही तो पसंद है। अगर कुछ पाना है तो विनम्र बनना पड़ेगा। तब श्री कृष्ण ने छोटी उंगली को सम्मान देते हुए उसी पर गोवर्धन पर्वत उठाया दिया।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए विनम्र और सरल बनिए तभी प्रभु आपके हो सकते हैं।
“छोटा बने सो हरि पावै”
!! राधे राधे जय श्री कृष्णा!!