जीण माता शक्ति मंगल पाठ द्वितीय स्कन्द

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जीण जीण भज बारम्बारा,हर संकट का हो निस्तारा
नाम जापे माँ खुश हो जावे,संकट हर लेती है सारा

जय अम्बे जय जगदम्बे,
जा अम्बे जय जगदम्बे

माला बाबा अर्चन पूजा,मात जयंती की करते थे
पाराशर ब्राह्मण कुल-वंशी देवी की सेवा करते थे ||
माला बाबा के सेवा काल में,वाम मार्गी यहाँ पे आये
अखंड-धूनी सिद्ध पीठ के,निकट में ही चालु करवाये ||
कई वर्षो तक वाम-मार्गी जीण धाम में समय बिताये
पुरी सम्प्रदाय के महंत जी,उन सबके सरदार कहाये ||
जीण धाम से वाम-मार्गी,कालान्तर में कूच किये थे,
जाते हुए माला बाबा को अखंड-धूनी सौंप गए थे ||
कपिल मुनि भी उसी काल में जीण धाम में आन पधारे,
घोर तपस्या करी वहां पर,पर्वत से निकले जल धारे ||
कपिल धार की वह जल-धारा,कुण्ड रूप में आज विराजे,
उसी कुण्ड के जल से पुजारी,मईया को स्नान कराते ||
आदि काल की सच्ची घटना,भगतों तुमको आज सुनाऊँ,
जीवण बाई हर्षनाथ के जीवन का वृत्तांत सुनाऊँ ||
राजस्थान के जिला चुरू में,घांघू नाम का एक ग्राम था,
चौहानों के ठाकुर राजा गंगो सिंह का वहाँ राज था ||
माला पुजारी को दर्शन दे,मात जयंती इक दिन बोली,
जीण रूप में मैं प्रगटूंगी,उनसे सच्चा भेद ये खोली ||
जीवण-बाई नाम की कन्या,गंगो सिंह के घर जन्मेगी,
मेरी शक्ति से कलयुग में घर घर उसकी पूजा होगी ||
इक दिन राजा गंगो सिंह जी खेलन को शिकार गए थे,
वहाँ लोहागर जी के पास में परी से नैना-चार हुए थे ||
सुंदरता से मन्त्र-मुग्ध हो,गंगो सिंह जी परी से बोले,
शादी करना चाँहू तुमसे,तू मेरी अर्धांगिनी हो ले ||
परी ये बोली,सुनो हे राजा,मुझसे मेरा भेद ना लेना,
अगर भेद की बात करोगे,फिर पीछे तुम मत पछताना ||
शर्त ये मेरी ध्यान से सुन लो,जब भी मेरे कक्ष में आओ,
अंदर आने से पहले ही,शयन कक्ष को तुम खटकाओ ||
शर्त मान कर गंगो सिंह ने परी के संग में ब्याह रचाया,
प्रेम और विश्वास के बल पे अपना जीवन रथ चलाया ||
परी की कोख से जीवण बाई हर्षनाथ दोनों थे जन्मे ,
बड़ा प्रेम आपस में रखते,भाई बहना अपने मन में ||
मन की कोमल जीवण बाई,सच्ची सीधी भोली भाली,
हर्षनाथ ने निज बहना की कोई बात कभी ना टाली ||
इक दिन राजा गंगो सिंह जी परी से मिलने घर में आये ,
सीधे शयन कक्ष जा पहुंचे,बिना द्वार को ही खटकाए ||
शयन कक्ष के अंदर जाकर देख नजारा वो चकराए,
परी बनी थी वहां सिंघनी,गंगो सिंह जी मन में घबराये ||
परी यूं बोली,सुनो हे राजन,भेद मेरा तुम जान गए हो,
अब तुम मुझ से मिल ना सकोगे,वादा अपना भूल गए हो ||
शर्त तोड़कर तुमने राजन,वादे का अपमान किया है,
इतना कहकर परी ने झटपट इंद्र-लोक प्रस्थान किया है ||
कुछ दिन उनके साथ में रहकर,गंगो सिंह परलोक सिधारे,
बड़े हुए थे फिर वो दोनों,बन के इक दूजे के सहारे ||
हर्षनाथ ने ब्याह रचाया,सुन्दर भावज घर में आई,
प्यारी भाभी को पाकर वो मन में फूली ना समायी ||
भाई बहन का प्यार अनोखा,भाभी को बिलकुल ना भाया,
फूट डालने उनके मन में,भावज ने इक जाल बिछाया ||
जीण भवानी के उद्गम का सच्चा हाल कहूँ मैं सारा,
जीण जीण भज बारम्बारा,हर संकट का हो निस्तारा ||

सिद्ध पीठ काजल शिखर बना जीण का धाम,
नित की पर्चा देत है,पूरन करती काम ||

जयंती जीण माई की जय,हरष भैरू भाई की जय

मंगल भवन अमंगल हारी
जीण नाम होता हितकारी ||
कौन सो संकट है जग माहि,
जो मेरी मईया मेट न पाई ||

जय अम्बे जय जगदम्बे,
जा अम्बे जय जगदम्बेस्वरसौरभ मधुकर

जीण जीण भज बारम्बारा,हर संकट का हो निस्तारा
नाम जापे माँ खुश हो जावे,संकट हर लेती है सारा
जय अम्बे जय जगदम्बे,
जा अम्बे जय जगदम्बे
माला बाबा अर्चन पूजा,मात जयंती की करते थे
पाराशर ब्राह्मण कुल-वंशी देवी की सेवा करते थे ||
माला बाबा के सेवा काल में,वाम मार्गी यहाँ पे आये
अखंड-धूनी सिद्ध पीठ के,निकट में ही चालु करवाये ||
कई वर्षो तक वाम-मार्गी जीण धाम में समय बिताये
पुरी सम्प्रदाय के महंत जी,उन सबके सरदार कहाये ||
जीण धाम से वाम-मार्गी,कालान्तर में कूच किये थे,
जाते हुए माला बाबा को अखंड-धूनी सौंप गए थे ||
कपिल मुनि भी उसी काल में जीण धाम में आन पधारे,
घोर तपस्या करी वहां पर,पर्वत से निकले जल धारे ||
कपिल धार की वह जल-धारा,कुण्ड रूप में आज विराजे,
उसी कुण्ड के जल से पुजारी,मईया को स्नान कराते ||
आदि काल की सच्ची घटना,भगतों तुमको आज सुनाऊँ,
जीवण बाई हर्षनाथ के जीवन का वृत्तांत सुनाऊँ ||
राजस्थान के जिला चुरू में,घांघू नाम का एक ग्राम था,
चौहानों के ठाकुर राजा गंगो सिंह का वहाँ राज था ||
माला पुजारी को दर्शन दे,मात जयंती इक दिन बोली,
जीण रूप में मैं प्रगटूंगी,उनसे सच्चा भेद ये खोली ||
जीवण-बाई नाम की कन्या,गंगो सिंह के घर जन्मेगी,
मेरी शक्ति से कलयुग में घर घर उसकी पूजा होगी ||
इक दिन राजा गंगो सिंह जी खेलन को शिकार गए थे,
वहाँ लोहागर जी के पास में परी से नैना-चार हुए थे ||
सुंदरता से मन्त्र-मुग्ध हो,गंगो सिंह जी परी से बोले,
शादी करना चाँहू तुमसे,तू मेरी अर्धांगिनी हो ले ||
परी ये बोली,सुनो हे राजा,मुझसे मेरा भेद ना लेना,
अगर भेद की बात करोगे,फिर पीछे तुम मत पछताना ||
शर्त ये मेरी ध्यान से सुन लो,जब भी मेरे कक्ष में आओ,
अंदर आने से पहले ही,शयन कक्ष को तुम खटकाओ ||
शर्त मान कर गंगो सिंह ने परी के संग में ब्याह रचाया,
प्रेम और विश्वास के बल पे अपना जीवन रथ चलाया ||
परी की कोख से जीवण बाई हर्षनाथ दोनों थे जन्मे ,
बड़ा प्रेम आपस में रखते,भाई बहना अपने मन में ||
मन की कोमल जीवण बाई,सच्ची सीधी भोली भाली,
हर्षनाथ ने निज बहना की कोई बात कभी ना टाली ||
इक दिन राजा गंगो सिंह जी परी से मिलने घर में आये ,
सीधे शयन कक्ष जा पहुंचे,बिना द्वार को ही खटकाए ||
शयन कक्ष के अंदर जाकर देख नजारा वो चकराए,
परी बनी थी वहां सिंघनी,गंगो सिंह जी मन में घबराये ||
परी यूं बोली,सुनो हे राजन,भेद मेरा तुम जान गए हो,
अब तुम मुझ से मिल ना सकोगे,वादा अपना भूल गए हो ||
शर्त तोड़कर तुमने राजन,वादे का अपमान किया है,
इतना कहकर परी ने झटपट इंद्र-लोक प्रस्थान किया है ||
कुछ दिन उनके साथ में रहकर,गंगो सिंह परलोक सिधारे,
बड़े हुए थे फिर वो दोनों,बन के इक दूजे के सहारे ||
हर्षनाथ ने ब्याह रचाया,सुन्दर भावज घर में आई,
प्यारी भाभी को पाकर वो मन में फूली ना समायी ||
भाई बहन का प्यार अनोखा,भाभी को बिलकुल ना भाया,
फूट डालने उनके मन में,भावज ने इक जाल बिछाया ||
जीण भवानी के उद्गम का सच्चा हाल कहूँ मैं सारा,
जीण जीण भज बारम्बारा,हर संकट का हो निस्तारा ||
सिद्ध पीठ काजल शिखर बना जीण का धाम,
नित की पर्चा देत है,पूरन करती काम ||
जयंती जीण माई की जय,हरष भैरू भाई की जय
मंगल भवन अमंगल हारी
जीण नाम होता हितकारी ||
कौन सो संकट है जग माहि,
जो मेरी मईया मेट न पाई ||
जय अम्बे जय जगदम्बे,
जा अम्बे जय जगदम्बेस्वरसौरभ मधुकर

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