सर्वज्ञ, तृप्त, परिपूर्ण, निस्पृह करता है तुम्हारा सामीप्य सांवरे
मैं पृथ्वीलोक से उठकर कर आती हूं परिक्रमा
सत्यलोक, क्षमालोक और शुचिलोक तक के हर भुवन की
या उससे भी परे चली जाती हूँ कालचक्र की सीमाएं बांधने/
तुम मिलते हो तो जागृत हो जाते हैं मंत्रों के सभी संस्कार
तुम छूते हो तो प्रवृत्तिमार्गी हो जाती हैं संसार की सब निवृत्तियाँ
मुझे अधरों के आनंद की छुअन तक पहुँचने दो मोहन
कि इसी को ऋषियों ने ‘प्रकर्षेण नयेत् युष्मान मोक्षम्’ कहा है
( बलपूर्वक मोक्ष तक पहुँचाना )
Omniscient, satisfied, complete and free from desires, your proximity makes me happy. I rise from the earth and go around Of every planet up to Satyalok, Kshamalok and Shuchilok. Or I go beyond that to limit the time cycle. When you meet, all the sanskars of mantras get awakened. When you touch me, all the things in the world become dependent on me. Let me reach the touch of bliss in the lips, Mohan. That this is what the sages have called ‘Prakarshen Nayet Yushman Moksham’
(to reach salvation by force)