साधक अपने अन्दर स्थिरता कैसे देखता है साधक हर क्षण चोकना रहता है वह अपने अन्तर्मन के भाव पढते हुए स्थिर होता है।
संसार की दृष्टि में हंसता बोलता है साधारण बना रहता है। भीतर से वह साधारण नहीं है। वह हर किरया में ईश्वर को ढुंढता है देखता है महसुस करता है। उसे ज्ञात है यह जीवन ही अध्यात्म की कैसोटी है।
जीवन का हर पल ईश्वर की धरोहर है। बीता समय वापिस नहीं आता है। स्थिरता के लिए अपने विचारों को पढना है। विचार में प्रभु की खोज छुपी हुई है दृष्टि जितनी गहरी होगी मोती चुन कर ले आयेगी। जितने अन्दर उतरते जायेगी उतनी ही परमात्मा का चिन्तन कर पायेगी। बाहर से कुछ भी न करते हुए भीतर से अन्दर उतरना है।
नाम चिन्तन और स्वांस किरया के बैगर अधुरे रह जाओगे। अन्य सब छुटे नाम को भीतर बैठा ले हम।साधक के जीवन में एक रूपता का होना चाहिए। साधक के हृदय में हर होली और दिवाली है दीपक से रोशन ये हृदय होगा। तभी समरूप होंगे।
बाहर की खुशी और आनंद पुरण नहीं है बाहर की खुशी हवा के झोंके की तरह है। यह बाहर ही रह जाती है यह भीतर दस्तक नहीं देती है साधक हर पल परमात्मा के चिंतन मनन सिमरण और स्मरण मे है।जंहा कहीं भीतर निहार लेता है दीपक और बाती प्रभु का नाम है जय श्री राम अनीता गर्ग
How does a seeker see stability within himself? The seeker remains alert every moment and becomes stable while reading his inner feelings.
In the eyes of the world, he laughs and speaks and remains ordinary. Inside he is not ordinary. He searches for God in every aspect, see and feel. He knows that life itself is the test of spirituality.
Every moment of life is God’s heritage. The past does not come back. For stability you have to read your thoughts. The search for God is hidden in thoughts. The deeper the vision, the more pearls it will find. The more you go inside, the more you will be able to think about God. One has to move inwards without doing anything from outside.
You will remain incomplete without thinking about the name and breathing. We should include all the other missing names within. There should be uniformity in the life of the seeker. Every Holi and Diwali, the heart of the seeker will be illuminated with lamps. Only then will they be identical.
External happiness and joy are not pure, external happiness is like a breeze. It remains outside only, it does not knock inside. The seeker is in contemplation and remembrance of God every moment. Wherever he looks inside, the lamp and the wick are the name of the Lord, Jai Shri Ram, Anita Garg.