श्रीराधाचरितामृतम्
भाग- 5

( गोकुल में प्रकटे श्यामसुन्दर )

आप क्या कह रहे हैं ब्रह्मा जी मैं और पुरोहित की पदवी स्वीकार करूँ ? आपनें ये सोच भी कैसे लिया?
चलो कोई राजा या चक्रवर्ती होता तो विचारणीय भी पर एक गोप ग्वालों के मुखिया का मैं महर्षि शाण्डिल्य पुरोहित बनकर जाऊँ?

मैं उस दिन विधाता ब्रह्मा से बहुत कुपित हुआ था हे वज्रनाभ।
मैं तो पवित्रता का विशेष आग्रही थास्वच्छ और पवित्र स्थान ही मेरे प्रिय थे थोड़ी भी गन्दगी मुझ से सह्य न थी।
उस दिन मैं अपनी तपः भूमिहिमालय में बैठ कर तपस्या कर रहा था मुझे तो हिमालय की भूमि प्रारम्भ से ही प्रिय थी।
प्रातः की बेलागोपी चन्दन का उर्ध्वपुण्ड्र मेरे मस्तक पर लगा था कण्ठ में तुलसी की माला।मैं प्रातः की वैष्णव सन्ध्या करनें के लिए तैयार ही था कि मेरे सामने विधाता ब्रह्मा प्रकट हो गए और उन्होंने मुझे कहा कि मैं बृज मण्डल में जाऊँ और वहाँ गोपों के मुखिया का पुरोहित बनूँ।
मुझे रोष नही आता पर पता नही क्यों उस समय हे वज्रनाभ मुझे क्रोध आया और मैने विधाता को भी सुना दिया।

रोष न करो वत्स शाण्डिल्य ब्रह्मा शान्त ही रहे ।
तुमने जैसे रोष किया है ऐसे ही मैने वशिष्ठ से भी जब रघुकुल का पौरोहित्य स्वीकार करनें की बात कही थी तब वो भी ऐसे ही क्रुद्ध हो उठे थे पर मैने जब उन्हें कहा कि परमात्मा अवतरित हो रहे हैं इस रघुकुल में तो उन्होंने अतिप्रसन्न हो मुझे बारम्बार वन्दन किया था।
तो क्या इन ग्वालों के यहाँ भी ईश्वर अवतार ले कर आरहे हैं?
मैने व्यंग किया था विधाता से पर मेरी और देखकर चतुरानन मुस्कुराये निकुञ्ज से अल्हादिनी श्रीराधा और श्याम सुन्दर अवतार ले कर आरहे हैं।

क्या हे वज्रनाभ मेरे आनन्द का कोई ठिकाना नही था मैं नाच उठा “क्या ऋषि वशिष्ठ जी जैसे मेरा भी भाग्योदय होने वाला है?
शायद उनसे ज्यादा क्यों की रामावतार एक मर्यादा का अवतार था पर ये अवतार तो विलक्षण है प्रेम की उन्मुक्त क्रीड़ा है इस अवतार में हँसे विधाता हे महर्षि शांडिल्य “रामावतार लीला” नायक प्रधान थी पर ये लीला नायिका प्रधान है क्यों की प्रेम की लीला में नायक गौण होता है।

विधाता ब्रह्मा ने मुझे सब कुछ समझा दिया था मथुरा मण्डल में ही महावन है जिसे गोकुल कहते हैं वहाँ आपको जाना है वहीं मिलेंगें आपको “पर्जन्य गोप” उनके गोकुल में ही आपको पौरोहित्य कर्म करना है यानि आपको उनका पुरोहित बनकर रहना है ।विधाता को इससे ज्यादा मुझे समझानें की जरूरत नही थी इसलिये वो वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए ।

हे वज्रनाभ मैने बिलम्ब करना उचित नही समझा और हिमालय से नीचे उतरते हुए बृज मण्डल की ओर चल पड़ा था।
महर्षि शाण्डिल्य आज अपनें बारे में बता रहे थे वज्रनाभ को कि कैसे वो “बृजपति नन्दराय” के कुल पुरोहित बने और इस का वर्णन करते हुए कितनें भाव में डूब गए थे महर्षि आज।
हे वज्रनाभ मैं मथुरा आया मुझे अच्छा लगा यहाँ आकर क्यों की मैं सोचता हुआ आरहा था कि नगर के वातावरण से मुझे घृणा है हर तरह का प्रदूषण फैला रहता है नगर में फिर कोलाहल तो है ही मुझे तो हिमालय की आबोहवा ही अच्छी लगती रही थीपर मथुरा नगरी में आकर मुझे अच्छा लगा।

महाराज उग्रसेन नें मेरा स्वागत किया था आचार्य गर्ग की कुटिया में मैं कुछ घड़ी ही रुका फिर गोकुल गाँव की ओर चल पड़ा।
ओह कितनी सुखद और प्रेमपूर्ण ऊर्जा थी इस गाँव की।
मेरा मन आनन्दित हो उठामोर नाच रहे हैं पक्षी बोल रहे हैं बन्दर उछल कूद कर रहे हैं वृक्षों में।
सुन्दर सुन्दर गौएँ सुवर्ण से उनकी सींगें मढ़ी हुयी थीं चाँदी से उनके खुर मढ़ दिए थे ये सब भाग रही थीं आनन्द से इधर उधर ग्वाले इनके पीछे इनको सम्भालनें के लिए चल रहे थे।

मेरे काँप उठा उस पवित्रतम भूमि में पैर रखते हुए कहीं इस भूमि की कोई चींटी भी न दव जाए आहा यहाँ की रज भी कितनी कोमल और सुगन्धित थी पवित्रतम।
वृक्षावली घनी थीं फलों से लदे वृक्ष धरती को छू रहे थे।

यमुना के किनारे बसा गाँव था ये गोकुलतभी मैने देखा सामनें एक सुन्दर से प्रौढ़ ग्वाल जो सुन्दर पगड़ी बाँधे हुए थे उनके साथ कई ग्वाले थे सबके हाथों में थाल थी उसमें क्या था ये मुझे नही पता था उस समय रेशमी वस्त्र से ढंका हुआ था वो थाल।

“मैं पर्जन्य गोप“मेरे साथ मेरे ये नौ पुत्र हैं और कुछ मेरे मित्र और सेवक हैं हे महर्षि आज हमारी विधाता नें सुन ली हम धन्य हो गए वर्षों से हम लोग यही आशा में थे कि हमें कोई दैवज्ञ पुरोहित मिले और आज हमें आप मिल गए।

कितने भोलेपन से कहा था पर्जन्य गोप नें और उन थालों को मेरे सामनें रख दिया था किसी में मुक्ता मोती किसी में मेवा इत्यादि किसी में भिन्न भिन्न मोरों के पंख किसी में सुवर्ण की और रजत की गिन्नियां थीं।
अपना परिचय भी कितनी जल्दी दिया था पर्जन्य ने।

” राजा देवमीढ़ के दो विवाह हुए एक क्षत्रिय की कन्या से और एक वैश्य कन्या से क्षत्रिय कन्या से सूरसेन हुए और वैश्य कन्या से मैं पर्जन्य।
मेरे पिता नें भाग बाँट भी दिया बंटवारा भी कर दिया गौ धन , कृषि कार्य ये सब मेरे भाग दे दिया और राज्य राजनीति सूरसेन को।
सूरसेन मेरे भाई हैं उनको तो अच्छा पुरोहित मिल गया आचार्य गर्ग पर हमें बड़ी चिन्ता थी कि हमारे पास कोई पुरोहित नही हैं अब आप आगये हैं हमारा मंगल ही मंगल होगा।

बडी विनम्रता से “पर्जन्य गोप” नें अपनी बात रखी।
नौ पुत्र थे “पर्जन्य गोप” केपर सबसे छोटे पुत्र थे पर्जन्य के “नन्द”।

मैने उन्हें ही देखा पाँच वर्ष के थे वो पर सबसे तेजवान मुस्कुराहट बहुत अच्छी थी
सबने मेरे पद छूये।
गोकुल गाँव के लोग कितनें भोले भाले थे ओह सब मेरा ही ख्याल रखते थे।

समय बीतनें में क्या देरी लगती है वो तो दीर्घजीवी होनें का वरदान मुझे मिला है नही तो सब अपनें समयानुसार वृद्ध और मृत्यु को प्राप्त हो ही रहे थे।
वृद्ध हो चले थे पर्जन्य गोप अब मुझे बुलाया था कुछ मन्त्रणा करनें के लिए मैं जब गया तो मुझे देखकर वहाँ बैठे बड़े बड़े सभ्य पुरुष खड़े हो गए।

ये हमारे प्रिय मित्र हैं “महिभान“पर्जन्य नें परिचय कराया ये बरसानें के अधिपति हैं और ये मेरा पुत्र “बृषभान” महिभान कितनें सरल और मृदु थे और ये इनके पुत्र मैने देखा तेज़ इतना था “बृषभान” के मुख मण्डल में कि मुझ से भी देखा नही गया मैं स्तब्ध था उस बालक को देखते हुये।

हे महर्षि आपको कष्ट देनें का कारण ये है कि मैं अब चाहता हूँ मेरे छोटे पुत्र जो नन्द हैं इनको मैं अपनी पगड़ी दे दूँ।
और आप ? मैने पूछा था।
हम तो जा रहे हैं भजन करनें बद्रीनाथ हम दोनों मित्र जा रहे हैं और ये भी अपनें पुत्र “बृषभान” को बरसानें का भार सौंप रहे हैं कन्धे में हाथ रखते हुए महिभान के, पर्जन्य नें कहा था।

कुशलता से जो कार्यभार को सम्भाल सके उसे ही गद्दी दी जानी चाहिए ये अच्छी सोच थी पर्जन्य की “नन्द गोप” कुशल थे गांव वाले भी इनकी बात का आदर करते थे नेतृत्व क्षमता थी नन्द गोप में इनका विवाह हुआ यशोदा नामक कन्या से जो बहुत भोली थीं और निरन्तर अतिथि सेवा में ही लगी रहती थीं।

उस दिन पर्जन्य गोप नें अपनी पगड़ी पहनाई गयी थी “नन्द” को सब आये थे राजासूरसेन के साथ वसुदेव भी आये थेमहिभान के साथ बृषभान भी बरसानें से विशेष मणि माणिक्य से सजी हुयी मोर पंख की कलँगी लगी हुयी पगड़ी लेकर आये थे और अपनें ही हाथों अपनें प्रिय मित्र नन्द को पहनाया था बृषभान ने।

“ब्रजपति” बन गए आप मेरे मित्र” बृषभान नें अपनें हृदय से लगा लिया था नन्द को आप “बृजरानी” होगयीं बृषभान आज अपनी पत्नी को भी ले आये थे “कीर्ति” रानी को वही यशोदा के गले लगते हुए बोलीं थीं “आप भी कुछ भी कहती हो” भोली बहुत हैं बृजरानी यशोदा।

काल की गति तो चलती ही रहती है हे वज्रनाभ मैं निष्काम भक्ति का आचार्य हूँ “निष्काम भक्ति ही सर्वोपरि है“यही मेरा सिद्धान्त हैमैं इसी सिद्धान्त का प्रचारक हूँ।
पर क्या होगया था मुझे उन दिनों मैं भी कामना कर उठा था भगवान नारायण से“नन्द गोप के पुत्र हो”।

मुझे अब हँसी आती है सन्तान गोपालमन्त्र के , मैने कितनें अनुष्ठान स्वयं किये थे मेरी हर समय यही प्रार्थना होती थी भगवान नारायण से की “नन्द के पुत्र हो”।
मेरे साथ सम्पूर्ण गोकुल वासी भी इसी अनुष्ठान में लगे रहते थे कि उनके नन्दराय को पुत्र हो।
जिस कामना के करनें से “श्याम सुन्दर पधारें“वो कामना तो निष्कामना से भी श्रेष्ठ है , है ना वज्रनाभ।

पर नन्द राय और यशोदा बहुत प्रसन्न थे उस दिन मुझे प्रणाम किया जब मैनें उनकी प्रसन्नता का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की बरसानें के अधिपति बृषभान के यहाँ एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ है हम वहीं जा रहे थे ।

दूसरों के सुख में सुखी होना ही सबसे बड़ी बात है वज्रनाभ मैं देखता रहा था इन दोनों दम्पतियों को बरसाने चले गए वहाँ जाकर खूब नाचे कूदे और बालक का नाम भी रख दिया“श्रीदामा ।
हे यदुवीर वज्रनाभ मैं ज्योतिष का कोई विद्वान नही हूँ पर “ब्रजपति नन्द राय के पुत्र हो” इसलिये मै रात रात भर ज्योतिष की गणना को खंगालता था पर ज्योतिष नें भी मेरा कोई समाधान नही किया ।

पर एक दिन वो समय भी आया जब मुझे ये सूचना मिली कि यशोदा गर्भवती हैं मैं एक विरक्त वैष्णव मुझे क्या? पर पता नही क्यों मुझे इतनी प्रसन्नता हुयी कि मैं उसका वर्णन नही कर सकता ओह देखो वज्रनाभ अभी भी मुझे रोमांच हो रहा है वो दृश्य अभी भी मेरी आँखों के सामनें नाच रहा है।
हाँ ये सूचना देनें वाले स्वयं बृजपति नन्द ही थे मुझे पता नही क्या हुआ ये सुनते ही मैं तो नन्दराय का हाथ पकड़ कर नाच उठा।

आश्चर्य प्रकृति प्रसन्न अति प्रसन्न हो रही थी यमुना का जल अमृत के समान हो गया था सुगन्धित जल प्रवाहित होनें लगा था यमुना में मोरों की संख्या बढ़ रही थी तोता कोयल ये सब गान करते थे ।
किसी को पता नही क्या होने वाला है “पुत्र ही होगा” मेरे मुख से बारबार यही निकलता था पर ज्योतिषीय गणना कह रही थी कि “पुत्री” होगी पर मेरा मन नही मान रहा था।

ब्राह्मणों को बुलवाया मेरे ही कहने पर नंदराय नें बुलवाया मैने विप्रों से मन्त्र जाप करनें की प्रार्थना की नित्य सन्तान गोपाल मन्त्र से सहस्त्र आहुति दी जाती थीं पूरा गोकुल गाँव आकर बैठता था बेचारे मन्त्र को तो समझते नही थे बस हाथ जोड़कर आँखें बन्दकर के यही कहते “नन्द के पुत्र हो”।
अब हँसी आती है मुझे मेरे मन्त्र या यज्ञ अनुष्ठान से “श्याम सुन्दर” थोड़े ही आते वो तो आये इन भोले भाले बृजवासियों की भोली प्रार्थना से प्रेम की पुकार से।

वो दिन भी आया भादौं कृष्ण अष्टमी की रात्रिवार बुधवार नक्षत्र रोहिणी।
किसी को पता नही चला कि कब क्या हो गया?

मेरे पास में ब्रह्ममुहूर्त के समय आये थे नंदराय
गुरुदेव गुरुदेव बाहर जोर जोर से बोले जा रहे थे।
मैं अपनें भजन में लीन था पर मेरा मन आज शान्त नही था उत्साह और उत्सव से भर गया था।

मैं उठा अपनी माला झोली रख दी, मै बाहर आया।
क्या हुआ ? मैने नन्द राय से पूछा।
गुरुदेव आपका अनुष्ठान पूरा हो गया आपकी कृपा बरस गयी।
आपनें हम सब को धन्य कर दिया बोले जा रहे थे नन्द।
पर हुआ क्या ? मैं हँसा।
साथ में कई ग्वाले थे वो बतानें जा रहे थे पर नंदराय नें रोक दिया “ये सूचना मैं ही दूँगा गुरुदेव को“

हाँ हाँ आप ही दो पर शीघ्र बताओ बृजराज मैने कहा।
गुरुदेव..
गिर गए मेरे पग में नन्द।

मेरे यहाँ एक नीलमणी सा सुन्दर, अत्यन्त सुन्दर बालक का जन्म हुआ है नन्द राय इससे आगे बोल न सके आनन्द के कारण उनकी वाणी अवरुद्ध हो गयी उनके आनन्दाश्रु बह चले थे नेत्रों से।

क्या..
मैने उछलते हुए बृजराज को पकड़ा
वो बार बार मेरे पैरों में गिर रहे थे मैने जबरदस्ती उन्हें उठाया और उनके हाथों को पकड़, मैं स्वयं नाच उठा हम दोनों नाच रहे थे।
ऊपर से देवों नें पुष्प बरसाने शुरू किये हमारे ऊपर फूल बरस रहे थे हमारे आस पास सब ग्वाले इकठ्ठे हो गए।
और सब बड़े जोर जोर से गा रहे थे।

“नन्द के आनन्द भयो , जय कन्हैया लाल की“

हे वज्रनाभ मैं उस उत्सव का वर्णन नही कर सकता।
वो आनन्द शब्दातीत है इतना कहकर महर्षि शाण्डिल्य प्रेम समाधि में चले गए थे।
क्रमश:



(Shyamsundar appeared in Gokul)

What are you saying, Lord Brahma, should I accept the post of priest? How did you even think of this? It may be worth considering if there was a king or a Chakraborty, but should I, Maharishi Shandilya, go as a priest to the head of a cowherd?

That day I was very angry with creator Brahma, O Vajranabh. I was particularly insistent on purity; clean and sacred places were my favorite; I could not tolerate even the slightest dirtiness. That day I was doing penance sitting in my penance land, the Himalayas, I was fond of the Himalayan land from the beginning. In the morning, the Urdhvapundha of Belagopi sandalwood was placed on my head, a Tulsi garland was placed around my neck. I was ready to perform Vaishnav Sandhya in the morning when Lord Brahma appeared in front of me and told me to go to Brij Mandal and worship the Gopas there. I will become the chief’s priest. I don’t get angry but I don’t know why at that time O Vajranabh, I got angry and I told this even to the creator.

Don’t be angry Vatsa Shandilya Brahma remain calm. Just like you got angry, when I told Vashishtha about accepting the priesthood of Raghukul, he too got angry but when I told him that God is incarnating in this Raghukul, he became very happy and told me again and again. Had worshipped. So, has God come in incarnation to these cowherds also? I had sneered at the creator, but looking at me, Chaturanan smiled. Alhadini Shriradha and Shyam are coming from Nikunj in beautiful incarnation.

Oh Vajranabh, there was no limit to my joy. I started dancing, “Am I also going to get good fortune like Rishi Vashishtha ji? Perhaps more than them because Ramavatar was an incarnation of dignity but this incarnation is unique, it is a free play of love. O Maharishi Shandilya, the creator laughed in this incarnation. “Ramavatar Leela” was hero dominant but this leela is heroine dominant because in the leela of love, the hero is Is secondary.

Creator Brahma had explained everything to me, there is a Mahavan in Mathura region itself which is called Gokul, you have to go there and you will meet “Parjanya Gop” in their Gokul only, you have to perform priestly duties, that is, you have to live as their priest. There was no need for me to explain much, so he disappeared from there.

O Vajranabh, I did not consider it appropriate to delay and started descending from the Himalayas towards Brij Mandal. Today Maharishi Shandilya was telling about himself to Vajranabh, how he became the family priest of “Brajpati Nandarai” and while describing this, Maharishi was immersed in so much emotion today. Hey Vajranabh, I came to Mathura. I felt good after coming here because I had come thinking that I hate the environment of the city. Every kind of pollution is spread in the city. There is noise in the city. I always liked the climate of the Himalayas, but Mathura. I felt good coming to the city.

Maharaj Ugrasen had welcomed me, I stayed in the hut of Acharya Garg for a few hours and then started towards Gokul village. Oh what a pleasant and loving energy this village had. My heart is filled with joy, peacocks are dancing, birds are talking, monkeys are jumping in the trees. Beautiful cows, their horns were covered with gold, their hooves were covered with silver, they were all running happily here and there, the cowherds were walking behind them to take care of them.

I trembled while setting foot in that most sacred land, lest even an ant of this land should get crushed, oh how soft and fragrant the blood here was, the purest. The groves were dense, trees laden with fruits were touching the ground.

Gokul was a village situated on the banks of Yamuna. That’s why I saw in front of me a beautiful mature cowherd wearing a beautiful turban. Along with him there were many cowherds. Everyone had a plate in their hands. I did not know what was in it. At that time, that plate was covered with a silk cloth. .

“I am Parjanya Gop.” I have these nine sons with me and some of my friends and servants. O Maharishi, today our creator has listened to us. We have been blessed. For years we were hoping that we would get some divine priest and today we have found you. Went.

Parjanya Gop had said so innocently and had placed those plates in front of me, some containing free pearls, some dry fruits etc., some containing different types of peacock feathers, some containing gold and silver coins. Parjanya had introduced herself so quickly.

“King Devamidh had two marriages, one to a Kshatriya’s daughter and one to a Vaishya girl. Surasena was born to a Kshatriya girl and Parjanya was born to a Vaishya girl. My father also divided the inheritance, he gave the cow wealth, agricultural work, all this to me and the state politics to Surasena. Surasena is my brother, he has found a good priest, Acharya Garg, but we were very worried that we do not have any priest, now you have come, our blessings will only be auspicious.

“Parjanya Gop” expressed his views with great humility. “Parjanya Gop” had nine sons and the youngest son was “Nand” of Parjanya.

I saw him only, he was five years old but had the brightest smile. Everyone touched my feet. The people of Gokul village were so innocent, everyone took care of me only.

What is the delay in the passage of time? It is because I have been blessed with a long life, otherwise everyone would have been growing old and dying at their own time. Parjanya Gop had grown old and had now called me for some advice. When I went, seeing me, the very civilized men sitting there stood up.

This is our dear friend “Mahibhan” Parjanya introduced him, he is the lord of the rains and this is my son “Brishabhan” Mahibhan was so simple and soft and I saw his son was so sharp in the face of “Brishabhan” that even me I was shocked to see that child.

O Maharishi, the reason for troubling you is that I now want to give my turban to my younger son, Nand. And you ? I had asked. We are going to perform bhajan of Badrinath, both of us friends are going and they are also handing over the responsibility of rains to their son “Brishbhan”, Parjanya had said, placing her hand on Mahibhan’s shoulder.

It was a good thought of Parjanya that “Nand Gop” was skilled. The villagers also respected him. Nand Gop had leadership qualities. He was married to a girl named Yashoda who was very innocent. She was there and was constantly engaged in guest service.

On that day, Parjanya Gop had worn his turban. Everyone had come to Nand. Along with Rajasursen, Vasudev had also come, along with Mahibhan, Brishabhan had also brought a turban adorned with a special gem from Barsane, Ruby, with a turban decorated with peacock feathers and with his own hands. Brishbhan had dressed his dear friend Nand.

“Brajpati, you have become my friend.” Brishbhan had hugged Nand to his heart. You became “Brijrani”. Today Brishbhan had also brought his wife. “Kirti” had said to the queen while hugging Yashoda, “You too. You also say, “Brijrani Yashoda is very innocent.”

The speed of time keeps on moving, O Vajranabh, I am the teacher of selfless devotion, “Selfless devotion is supreme”, this is my principle, I am the propagator of this principle. But what happened to me, in those days I too had wished to Lord Narayana to “be the son of Nand Gop”.

Now I feel like a child of Gopal Mantra, how many rituals I had performed myself, I always used to pray to Lord Narayana to “be the son of Nanda”. Along with me, all the people of Gokul were also engaged in this ritual to ensure that their Nandarai had a son. The wish by which “Shyam becomes beautiful” is better than having no desires, isn’t it Vajranabh.

But Nand Rai and Yashoda were very happy and greeted me that day. When I asked the reason for their happiness, they told that a beautiful child was born to the lord of Barsana, Brishabhan, and we were going there.

The biggest thing is to be happy in the happiness of others, Vajranabh, I had been watching these two couples go to Barsaan, went there and danced a lot and also named the child “Sridama. Hey Yaduveer Vajranabh, I am not a scholar of astrology, but “Brajpati is the son of Nand Rai”, that is why I used to search the astrological calculations all night long, but even astrology did not give me any solution.

But one day the time came when I got the information that Yashoda was pregnant, what should I do as a detached Vaishnav? But I don’t know why I felt so happy that I can’t describe it. Oh look, Vajranabh, I am still thrilled, that scene is still dancing in front of my eyes. Yes, it was Brijpati Nand himself who gave this information. I don’t know what happened. As soon as I heard this, I started dancing holding Nandarai’s hand.

Nature was very happy. The water of Yamuna had become like nectar. Fragrant water started flowing. The number of peacocks was increasing in Yamuna. Parrots and cuckoos used to sing all these songs. No one knows what is going to happen, “It will be a son”, this was coming out of my mouth again and again, but the astrological calculations were saying that it would be a “daughter”, but my mind was not agreeing.

Brahmins were called on my request. Nandaray called them. I requested Vipras to chant the mantra. Every day, thousands of children were sacrificed with the Gopal mantra. The entire Gokul village used to come and sit. The poor people did not understand the mantra, they just folded their hands and closed their eyes and said this. “You are the son of Nand”. Now I laugh, “Shyam Sundar” would rarely come through my mantras or Yagya rituals, they came because of the call of love and through the innocent prayers of these innocent Brijvasis.

That day also came on the night of Bhadaun Krishna Ashtami, Wednesday Nakshatra Rohini. No one knew what happened when?

Nandaray came to me at the time of Brahmamuhurta. Gurudev Gurudev was being said loudly outside. I was engrossed in my bhajan but my mind was not calm today, it was filled with enthusiasm and celebration.

I got up, kept my rosary bag and came out. What happened ? I asked Nand Rai. Gurudev, your ritual has been completed and your blessings have been showered. You have blessed all of us, it was being said, Nand. But what happened? I laughed. There were many cowherds along with him who were going to tell but Nandarai stopped him, “I will give this information to Gurudev only.”

Yes yes, you two but tell me quickly Brijraj, I said. Gurudev.. Nand fell at my feet.

A beautiful, very beautiful child like a sapphire has been born here. Nand Rai could not speak further, his speech was blocked due to joy, tears of joy flowed from his eyes.

What.. I caught Brijraj while jumping He was falling at my feet again and again, I forcefully picked him up and held his hands, I myself started dancing, both of us were dancing. From above, the gods started showering flowers. Flowers were showering on us. All the cowherds gathered around us. And everyone was singing loudly.

“Nand’s joy, Jai Kanhaiya Lal.”

O Vajranabh, I cannot describe that festival. That joy is beyond words, saying this, Maharishi Shandilya went into love samadhi. respectively

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