( श्रीराधारानी का प्रथम प्रेमोन्माद )
जब तक तुम्हारा अन्तःकरण पिघलेगा नही तब तक आल्हादिनी का प्राकट्य कैसे होगा? याद रहे अन्तःकरण जितना कठोर होगा आप “प्रेम” से उतने दूर हो बहुत दूर और प्रेम से दूर का मतलब ब्रह्म से दूर ब्रह्म से दूर मतलब अपने आपसे दूरविचार करो हे वज्रनाभ प्रेम ही सर्वस्व है।
गंगा गंगा तभी है जब उसमें शीतलता, पवित्रता, और मधुरता हो और अगर ये तीनों चीजें नही हैं तो गंगा गंगा नही है अगर अमृत में माधुर्य नही हैं तो अमृत कैसे अमृत हो सकता है ऐसे ही कृष्ण रूपी ब्रह्म में अगर राधा नही है तो वह कृष्ण भी अधूरा ही है कहो – वह कृष्ण, पूर्ण कृष्ण नही है।
क्या ब्रह्म में आवश्यक नही कि आल्हाद हो वही आल्हादिनी शक्ति ही तो राधा के रूप में प्रकट है इस बात को स्पष्ट समझो हे वज्रनाभ प्रेम जब बढ़ता है तब एक उन्माद सा छा जाता है नहीं नहीं इस पथ में बुद्धि का प्रयोग निषेध है बुद्धि को छोड़ दो पहले फिर मेरी बात को समझोगे।
महर्षि शाण्डिल्य आज प्रेम की और गहराई में उतार रहे थे हाँ प्रेम का पागलपन एक अलग आनन्द प्रदान करता है, जो इस प्रेम के उन्माद में डूब गया वो मुक्त हो गया उसे मिल गया मोक्ष… पर नही प्रेमियों ने कब माँगी मुक्ति प्रेमियों ने कब माँगा मोक्ष अरे इन्हें तो अब इस प्रेम के बन्धन में ही इतना आनन्द आरहा है कि हजारों मुक्तियाँ न्यौछावर हैं इस प्रेम के बन्धन में।
वो सहज देहातीत हो जाता है वो प्रेमी बहुत उच्च कोटि का परमहंस हो जाता है।वो रोता है उसके आँसू गिरते हैं प्रेम के तो उन आँसुओं को अपने में पाकर पृथ्वी धन्य हो जाती है।
जब अपने प्रियतम का नाम लेकर वो प्रेमी ऊँची साँस छोड़ता है तो उन पवित्र साँसों से दिशाएँ पवित्र हो जाती हैं।
अरे वज्रनाभ इतना ही नही ऐसा प्रेमी जब गंगा स्नान को जाता है तो गंगा अपने को धन्य समझती है तीर्थ, सही में तीर्थ हो जाता है।वह गिरता है वो उठता है पर लड़खड़ाते हुए फिर अपने प्रियतम को पुकारने लगता है तो उस के आनन्द को, नीरस तर्क वितर्क में पड़े लोग क्या जाने?
हे वज्रनाभ सुनो अब – श्रीकृष्ण के प्रेम ने जो आकार लिया श्रीराधा के रूप में उनका ये प्रथम प्रेमोन्माद… महर्षि शाण्डिल्य आज स्वयं प्रेम उन्मादी लग रहे हैं।
बड़ी हो रही हैं श्रीराधारानी और उनकी सखियाँ भी।सखियों में ललिता विशाखा रँगदेवी सुदेवी इत्यादि अष्ट सखियाँ हैं।कुञ्जों में विहार करना कुञ्जों में फूल बीनना मोर का नृत्य देखनायही सब प्रिय हैं इन्हें।
आज चलते चलते बरसाने से कुछ दूरी पर एक दिव्य वन में सखियों के साथ “श्रीजी” पहुंचीं।
आहा कितना सुन्दर वन है ये नाच उठीं वो “कीर्ति कुमारी” देख ललिते इस वन की शोभा को नाना प्रकार के पुष्प खिले हैं और देख इनमें भौरों का गुँजार कितना मधुर लग रहा है और ये गुलाब , जूही वेला मालती।
और उधर देख उछल पडीं “भानु की लली” वो देख रँगदेवी मोरों का झुण्ड यहीं आरहा है।
और उधर देख सुदेवी वो रहे शुक कितने सुन्दर लग रहे हैं और उधर वो मैना आहा बता ना इस वन का क्या नाम है? मुझे तो ये वन बहुत प्रिय लग रहा है ललिते तू ही बता श्रीराधा रानी को नाम जानना है इस वन का।
तब ललिता सखी ने आगे बढ़कर बताया इस वन का नाम है “वृन्दावन”
वृन्दावन वृन्दावन वृन्दावन नाम लेने लगीं श्रीराधा जी।
सुना नाम लगता है कितना प्यारा नाम है ना ये कहते हुए नाच उठीं तभी-
राधे देखो उधर यमुना के किनारे ?
रँगदेवी सखी ने उस ओर दिखाना चाहा।
क्या है बड़े भोलेपन से श्रीराधा नें चौंक कर पूछा।
अरे प्यारी उधर देखो यमुना में नील कमल के अनगिनत फूल
हाँ कितने सुन्दर हैं ना ये फूल कितने अच्छे लग रहे हैं ना ये नीलकमल श्रीराधा रानी ने दौड़ कर एक कमल तोड़ लिया।
जैसे इस नील कमल का रँग है ना… ऐसा ही रँग “कृष्ण” का भी है।
ललिता सखी ने सहजता में बोल तो दिया पर
क्या “कृष्ण” फिर बोल सखी क्या कहा – “कृष्ण”
आहा कितना प्यारा नाम है मैंने इस नाम को पहले भी कहीं सुना है कितना सुन्दर नाम है “कृष्ण”
पर ये क्या इस नाम को सुनते ही श्रीराधा रानी के नेत्र बरसने लगे मुखमण्डल में हास्य है और नेत्रों में आँसू?
ये क्या हो गया सखियाँ दौड़ी अपनी श्रीकिशोरी जी के पास।
पर सखियों ने जब सम्भाला तब तक देर हो चुकी थी ये प्रेमोन्माद श्रीराधा का बढ़ चुका था।
ललिते मुझे क्या हो रहा है देख ना, मैं इस तरह क्यों उन्मादग्रस्त हो रही हूँ।इस “कृष्ण” नाम में ऐसा क्या है।
अपनी गोद में सम्भाले श्रीराधा को जैसे तैसे वृन्दावन से बरसाना ले आईँ सखियाँ पर महल में आते ही सामने खड़ी थी एक और सखी जिसका नाम था चित्रा….
प्यारी देखो मैंने एक चित्र बनाया है बहुत सुन्दर चित्र है आपको दिखाने ही लाई हूँ और हाँ बड़ी ठसक से फिर छुपाया चित्र को चित्रा सखी ने। जिसका ये चित्र हैं ना उसी के सामने बैठकर मैंने ये बनाया है वो मेरे सामने था और मैं उसे देख रही थी। श्रीराधा रानी अपने पलंग में लेट गयीं और चित्रा उनसे बोले जा रही थी ललिता विशाखा रँग देवी सुदेवी ये सब वहीँ थीं।
तुम धीरे बोलो चित्रा देख नही रही हो “लाडिली” कितनी थक गयीं हैं।ललिता इत्यादि सभी सखियों ने चित्रा को समझाना चाहा हाँ हाँ तुम्ही चिपकी रहो “लाडिली” से मैं बस पाँच मिनट के लिये क्या आगयी कष्ट होने लगा तुम्हे?
चित्रा ने जब तेज़ आवाज में ये सब कहा तब सब चुप हो गयीं फिर भोली श्रीराधिका ने भी कह ही दिया अच्छा बता बात क्या है? मुझे चित्र दिखाने आयी है ना चल दिखा
ना ऐसे नही पहले मेरी पूरी बात सुननी पड़ेगी उस चित्र को फिर छुपा लिया चित्रा सखी ने।
अच्छा बता क्या बात है बैठ गयीं उठकर श्रीराधा रानी।
मेरी बहुत इच्छा थी की मैं उनके दर्शन करूँ उस नीलमणी के
चित्रा सखी बताने लगी।
वो चोर है वो माखन चुराता है पर वो तो हृदय भी चुरा लेता है।
आज सुबह ही आगये थे हमारे यहाँ बृषभान बाबा और कहने लगे गोकुल जा रहा हूँ चित्रा बेटी तुम चलो मेरे साथ वहाँ नन्द नन्दन का चित्र बनाना है मुझे विशेष रूप से कहा है बृजपति नन्द नेचलो शाम तक आजायेंगे।
मैं खुश हो गयी मैं उनकी शकट में बैठगयी और
आँखें बन्दकर चित्रा बोली।
और क्या? श्रीराधा ने पूछा।
वो नन्द का छोरा मेरे सामने बैठ गया मुझे उसका चित्र बनाना था कितना सुन्दर है आहा
अच्छा अच्छा अब चित्र दिखा और जा… श्री राधा सोयेंगी।
ललिता ने फिर समझा कर कहा।
अच्छा देखो ये मैने बनाया है उस नन्द के छोरे का चित्र।
मटकती हुयी बोली चित्रा और श्रीराधा के सामने रख दिया चित्र।
ये? इसे मैं जानती हूँ ओह कितना सुन्दर है ये मेरा हृदय खींच रहा है ये तो… श्रीराधा फिर उन्माद से भर गयीं नेत्रों से अश्रु फिर बहने लगे… ये मेरे हृदय को चीर रहा है मेरे हृदय में ये अपनी जगह बना रहा है कौन है ये? श्रीराधा चीत्कार कर उठीं।
अपने आपको सम्भालो हे राधे विशाखा सखी आगे आईँ सम्भालो अपने आपको
कुछ देर के लिए शान्त हुयीं श्रीराधा पर
विशाखा मैं तो आर्य कन्या हूँ ना मुझे तो एक ही के प्रति प्रेम होना चाहिए ना तभी तो मैं पर ये राधा तो बिगड़ रही है देखो कृष्ण नाम सुना तो मैं पागल सी हो गयी और फिर इस दूसरे का चित्र देखा तो मैं फिर उन्मादी हो उठी ये गलत है ये ठीक नही है मैं तो पतिव्रता कीर्तिरानी की पुत्री हूँ ना फिर ऐसे मेरा मन दो दो पुरुषों में कैसे चला गया धिक्कार है मुझे।ये गलत हो रहा है मेरे साथ नहीं नहीं।
चित्रा सखी समझ गयी।अन्य सखियाँ भी समझ गयी कि “कृष्ण नाम” से प्रेम हुआ राधा का फिर इस चित्र के “नन्दनन्दन” से भी प्रेम हो गया, जिसे गलत मान रही हैं श्रीराधा रानी।
ताली बजाकर हँसीं सब सखियाँ। आप गलत कैसे हो सकती हो आप गलत हो ही नहीं अरी मेरी भोरी राधे जिनका चित्र आपने देखा है यही तो कृष्ण हैं इन्हीं का नाम कृष्ण है इसलिये आप ऐसा मत सोचो की आप दो अलग अलग व्यक्तियों से प्रेम कर बैठी हो कृष्ण इन्हीं का नाम है।
इतना सुनते ही चित्रा के हाथों से उस चित्र को लेकर श्रीराधा नें अपने हृदय से लगा लिया और आनन्दित हो उठीं।
हे वज्रनाभ प्रेम की गति टेढ़ी है इसे तुम सीधी चाल नही चला सकते ये है ही प्रेम ओह
अभी मिलन नही हुआ है अभी श्रीराधा रानी ने देखा नही कृष्ण को पर नाम सुनते ही चित्र में देखते ही प्रेम उछलनें लगा आल्हाद यानि “आनन्द की हद्द”
सुनो सुनो वज्रनाभ एक बात और सुनो, महर्षि शाण्डिल्य बोले प्रेमी रोते हैं पछाड़ खाते हैं चीखते हैं चिल्लाते हैं तो ऐसा मत सोचना कि ये बेचारे हैं।इन्हें कष्ट हो रहा है नही ये तो आनन्द की हद्द में जी रहे हैं, अरे “बेचारे” तो वे हैं जिन्हें प्रेम की एक छींट भी अभी तक नही पड़ी।
पूजनीय हरिशरणजी
क्रमशः
(Sri Radharani’s first love madness)
Unless your conscience melts, how will Alhadini appear? Remember, the harsher your conscience, the further away you are from “love”. Far away from love means far away from Brahma. Far away from Brahma means think far away from yourself. O Vajranabh, love is everything.
Ganga is Ganga only when it has coolness, purity and sweetness and if these three things are not there then Ganga is not Ganga. If there is no sweetness in nectar then how can nectar be nectar. Similarly, if Radha is not there in Brahma in the form of Krishna then he Krishna is also incomplete. Say – He is Krishna, not complete Krishna. Is it not necessary in Brahma that there should be bliss? The same blissful power is manifested in the form of Radha. Understand this clearly O Vajranabh, when love increases then it becomes like a frenzy. No no, the use of intelligence is prohibited in this path, except the intellect. Give first and then you will understand my point.
Today Maharishi Shandilya was taking us deeper into love. Yes, the madness of love provides a different joy, the one who drowned in the madness of love became free, he got salvation… but not when did the lovers ask for salvation? When did the lovers ask for salvation? Salvation, now they are enjoying so much in the bondage of this love that they have sacrificed thousands of freedoms in the bondage of this love. He easily transcends the countryside, that lover becomes a very high class Paramahamsa. He cries, his tears fall of love and the earth becomes blessed by having those tears within itself. When the lover exhales loudly after taking the name of his beloved, then the directions become pure with those holy breaths.
Hey Vajranabh, not only this, when such a lover goes to bathe in the Ganga, then the Ganga considers itself blessed, it becomes a pilgrimage, it actually becomes a pilgrimage. When he falls, gets up, but stumbles, and then starts calling his beloved, then his joy is What do people know who are engaged in monotonous arguments?
Hey Vajranabh, listen now – the shape that Shri Krishna’s love took, his first love ecstasy in the form of Shri Radha… Maharishi Shandilya himself seems to be in a love frenzy today.
Shri Radharani and her friends are also growing up. Among the friends, there are eight friends like Lalita, Vishakha, Rangdevi, Sudevi etc. Walking in the gardens, picking flowers in the gardens, watching the peacock dance, all these are dear to them.
Today, while walking, “Shriji” reached a divine forest at some distance from Barsana with her friends. Oh, what a beautiful forest this is, she danced, “Kirti Kumari” Lalita, looking at the beauty of this forest, different types of flowers have bloomed and look how sweet the hum of bees sounds in them and these roses, Juhi Vela Malti. And looking there, Bhanu’s daughter jumped and saw that Rangdevi, a flock of peacocks was coming here. And looking there Sudevi, those Shuks are looking so beautiful and on the other side they are mine Aha, tell me what is the name of this forest? I am liking this forest very much, Lalita, please tell me, Shriradha Rani wants to know the name of this forest. Then Lalita Sakhi came forward and told that the name of this forest is “Vrindavan”. Shriradha ji started chanting the name Vrindavan Vrindavan Vrindavan. When I heard the name, I thought it was such a lovely name, she started dancing saying this –
Radhe, look there on the banks of Yamuna? Rangdevi Sakhi wanted to show in that direction. What is this? Shri Radha asked in surprise with great innocence.
Oh dear, look over there, the countless blue lotus flowers in the Yamuna. Yes, how beautiful these flowers are, how nice these blue lotuses look. Shri Radha Rani ran and plucked a lotus. Just like the color of this blue lotus…similar is the color of “Krishna” too. Lalita Sakhi spoke spontaneously but
Did you say “Krishna” again? What did your friend say – “Krishna” Aha what a lovely name I have heard this name somewhere before. What a beautiful name “Krishna” But what is this? As soon as Shriradha Rani heard this name, her eyes started watering. There is humor on her face and tears in her eyes. What happened, my friends ran to their wife Shri Kishori ji. But by the time the friends took care of it, it was too late and Shriradha’s love ecstasy had increased. Lalita, look at what is happening to me, why am I going crazy like this? What is there in this name “Krishna”.
My friends somehow brought Shriradha from Vrindavan to Barsana, holding Shriradha in their lap, but as soon as they reached the palace, there was another friend standing in front of them whose name was Chitra. Look dear, I have made a picture, it is a very beautiful picture, I have brought it to show you and yes, Chitra Sakhi then hid the picture with great force. I have made this while sitting in front of the person whose picture these are, he was in front of me and I was looking at him. Shriradha Rani lay down on her bed and Chitra was speaking to her, Lalita, Vishakha, Rang Devi, Sudevi, all these were there.
You speak slowly, Chitra, “Ladili” is not looking, she is so tired. All the friends like Lalita etc. tried to explain to Chitra, yes yes, you stick to “Ladili”, I just stayed for five minutes. What further pain did you start having?
When Chitra said all this in a loud voice, everyone became silent and then innocent Shri Radhika also said, ok, tell me what is the matter? You have come to show me the pictures, come on, show me No, it’s not like that, first you will have to listen to my entire story, then Chitra Sakhi hid that picture. Okay, tell me what is the matter, Shriradha Rani got up and sat down.
I had a great desire to have darshan of that blue sapphire. Chitra Sakhi started telling. He is a thief, he steals butter but he also steals the heart. Brishabhan Baba had come to our place this morning itself and said, I am going to Gokul, Chitra daughter, you come with me there, I have to draw a picture of Nand Nandan. I have been specially told by Brijpati Nand Nechlo to come by evening.
I became happy, I sat in his lap and Chitra said closing her eyes. What else? Shriradha asked. That Nand’s son sat in front of me, I had to draw his picture, it is so beautiful, aha! Okay, now show the picture and go… Shri Radha will sleep. Lalita explained again and said. Well look, I have made a picture of that Nand’s son. Chitra spoke bitterly and placed the picture in front of Shri Radha.
These? I know this, oh how beautiful he is, he is pulling my heart… Shri Radha again became filled with ecstasy, tears started flowing from her eyes again… he is tearing my heart, he is making his place in my heart. Who is this? Shriradha woke up screaming. Take care of yourself, O Radhe, Vishakha Sakhi came forward, take care of yourself. Shri Radha remained silent for some time.
Vishakha, I am an Arya Kanya, I should have love for only one, that’s why I am, but this Radha is getting spoiled. Look, when I heard the name Krishna, I went crazy and then when I saw the picture of this other one, I went crazy again. This is wrong, this is not right, I am the daughter of a devoted Kirtirani, then how did my mind wander between two men, shame on me. This is wrong with me, no no.
Chitra Sakhi understood. Other friends also understood that Radha fell in love with “Krishna Naam” and then she also fell in love with “Nandanandan” of this picture, which Shri Radha Rani is considering wrong.
All the friends clapped and laughed. How can you be wrong, you are not wrong, oh my dear Radhe, whose picture you have seen is Krishna, his name is Krishna, so do not think that you are in love with two different people, Krishna is his name. . On hearing this, Shriradha took the picture from Chitra’s hands and hugged it to her heart and became happy.
Oh thunderbolt, the speed of love is crooked, you cannot make it move straight, this is love itself oh The meeting has not yet taken place, Shriradha Rani has not yet seen Krishna, but as soon as she heard his name and saw the picture, she felt a surge of love. Alhad means “limit of joy”.
Listen, listen Vajranabh, listen to one more thing, Maharishi Shandilya said, lovers cry, get beaten, scream, shout, so do not think that they are poor. They are suffering, otherwise they are living within the limits of happiness, oh “poor” So there are those who have not received even an iota of love yet. Respected Harisharanji
respectively