रघुनाथ की शोभा देखन को तिहुं लोक की शोभा अवध चली।
शोभित नगरी शोभित डगरी शोभित कोशल की कुंज गली।।
शोभित पलकें शोभित अलकें शोभित रंगत कचनार कली।
शोभित कुण्डल शोभित कंकण चन्दन चर्चित शुभ गात भली।।
शोभित नैना शोभित बैना शोभित ओठन्हिं मुस्कान रजै।
शोभित ग्रीवा भुजमूल सुभग पर शोभित तीर कमान सजै।।
शोभित द्वौ कर शोभित भुज वर शोभित कटि पर कटिबन्ध सजै।
शोभित जंघा शोभित जिह्वा पर शोभित मधुकर छन्द भजै।।
शोभित शशिमुख स्मित शोभित पर मोहित त्रिभुवन लोक भये।
शोभित नयनन की द्युति चितवन पर बलि बलि नयन चकोर गये।।
भृकुटी शोभित त्रिकुटी शोभित पर शोभित ऊंच ललाट रहे।
शोभित उर पर श्रीवत्स ललित अरु शोभित हृदय विराट रहे।।
शोभित कन्धा शोभित जंघा शोभित पद में पदत्राण रहे।
शोभित पदतल में दास पड़ा शोभित चरणों में प्राण रहे।।
श्री हरि ॐ
रघुनाथ की शोभा देखन को तिहुं लोक की शोभा अवध चली।
- Tags: रघुनाथ शोभा
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