हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥
नाम प्रभु का है सुखकारी,पाप काटेंगे क्षण में भारी।
नाम का पीले अमृत घोल
केशव माधव गोविन्द बोल
हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥
शबरी, अहिल्या, कबीर तुलसी
नाम जपन से मुक्ति पाई।नाम की महिमा है बेतोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥
सुवा पढ़ावत गणिका तारी,बड़े-बड़े निशिचर संहारी
गिन-गिन पापी तारे तोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥
हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥
नरसी भगत की हुण्डी सिकारी,बन गयो साँवलशाह बनवारी।
कुंडी अपने मन की खोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥
जो-जो शरण पड़े प्रभु तारे,भवसागर से पार उतारे।बन्दे तेरा क्या लगता है मोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोल
केशव माधव गोविन्द बोल॥राम-नाम के सब अधिकारी,बालक वृध्द युवा नर नारी।
हरी जप इत-उत कबहूँ न डोल,
केशव माधव गोविन्द बोल॥हरी बोल, हरी बोल, अर्जुन रथ आप चलाया,गीता कह कर ज्ञान सुनाया।बोल, बोल, हित-चीत से बोल,केशव माधव गोविन्द बोल॥हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोलकेशव माधव गोविन्द बोल॥हरी बोल, हरी बोल, हरी हरी बोलकेशव माधव गोविन्द बोल












