यही आशा लेकर आती हूं , हर बार तुम्हारे मंदिर में , कभी नेह की होगी मुझपर भी बौछार तुम्हारे मंदिर में
हे राधेश्वरगोपी वल्लभ तुम त्रिभुवन के आकर्षण हो , पट तो हर दिन खुलते लेकिन जब भाग्य खुले तब दर्शन हो ,यही आशा लेकर आती हूं हर बार तुम्हारे मंदिर में
होता है तुम्हारा नित नूतन शृंगार तुम्हारे मंदिर में , कभी नेह की होगी मुझ पर भी बौछार तुम्हारे मदिर में , बौछार तुम्हारे मंदिर में .यही आशा लेकर आती हूं हर बार तुम्हारे मंदिर में
हे मुरली धार कृष्णा कन्हाई राधा रास बिहारी दर्शन भिख्शा मांग रहे है , नैना दर्श भिखारी यही आशा लेकर आती हू, हर बार तुम्हारे मंदिर में
राधा भी नही , मीरा भी नही, मैं ललिता हूं न विशाखा हूं , हे बृजराज तुम्हारे बृजत्रु की मैं कोमल सी इक शाखा हूं ,यही आशा लेकर आती हूं हर बार तुम्हारे
इतना ही मिला आने का अधिकार तुम्हारे मंदिर में , कभी नेह की होगी मुझ पर भी बौछार तुम्हारे मंदिर में यही आशा लेकर आती हूं हर बार तुम्हारे मंदिर में