आत्म चिन्तन का अर्थ है हम अपने आप के नजदीक है हम जीवन में यह जान जाये मुझे परमात्मा ने पुरण रूप से बना कर भेजा है वह परमतत्व परमात्मा जिसके लिए तु हर क्षण तङफती पुकार लगाती है तेरे अन्दर बैठा है तू भीतर की आंख से देख बाहर की आंख से तुझे वह दिखाई नहीं देगा तु अन्दर के से क्षण भर भी बात कर लेती है तुझमे आनंद छा जाता है जिस झोपड़ी की तू रात दिन रखवाली करती है काया झोपड़ी में प्रभु प्राण नाथ बैठे हैं
आत्मा है तब तक प्राण है प्राण है तब तक शरीर है। प्राण के निकलते ही सब सिमट जायेगा। आत्मा रहती है आत्मा अजर अमर है प्रकाश रूप सर्वशक्तिमान है आत्मा प्रेम रूप है। आत्म चिन्तन निज को जानना है मै शरीर नहीं हूं मै चेतन हूँ ब्रह्म रूप हूँ मुझ में ब्रह्म बैठे हैं उस परमात्मा ने झोपड़ी को पूरण रूप में आत्म प्रकाश से रोशन किया उस प्रकाश मे झांकने के लिए मनुष्य योनि मिली है आत्म चिन्तन का मार्ग सत्य का मार्ग है, दृढ निश्चय का मार्ग है। भगवान को हम मंदिर में ढुढते है कथा में ढुढते है ग्रथं में ढुढते है अन्दर झांक कर नहीं देखते हैं बाहर का आनंद घंटे दो घंटे का है वह भी जरूरी नहीं है आनंद की सीमा तक पहुंचे और नहीं भी। आपके अन्दर सागर है सागर परमात्मा ने तुम्हे दे रखा है अ राही तुने सागर में एक बार ढुबकी लगा ली तब क्षण भर में तु परमात्मा का बन जायेगा। तेरे हर भाव और विचार में परम +आत्मा होंगे।
अपने अन्दर नहीं झांकोगे तब बाहर झांकोगे यही हमारे दुख का कारण है कि हम शान्त नहीं है चिन्ताओं से घिरे हुए हैं। ग्रथं हम क्यों पढते है मंदिर में बैठे भगवान को भगवान कहते हैं आत्मा परमात्मा का सुक्ष्म रूप है कभी यह नहीं सोचते हैं कि अन्दर परमात्मा की मनोहर झांकी है एक क्षण में वह आत्मा रूपी परमात्मा शरीर से ऊपर उठा देता है हर घडी नाद बज रही है घंटे बज रहे हैं प्रेम ही प्रेम है हम बाहर अनेक देवी देवता की पूजा करते हैं पार नहीं पाते हैं यह भी नहीं समझते हैं हृदय में शान्ति क्यों नहीं है संसारिक सम्बन्ध को जितना जोङने की कोशिश करता हूँ बिखराव ही दिखता है। इतनी पुजा भी करता हूँ मन में खालीपन मन कैसे भरे मन बाहरी संसार से किसी का भरा है क्या। मन तभी भरता है जब साधक जान जाता है मै शरीर नहीं हूं यह शरीर कठपुतली है मै शुद्ध चेतन आत्मा हूं मुझमे ईश्वर बसता है यह सम्पूर्ण जगत ईश्वर का स्वरूप है तेरी कोई भी किरया तेरी नहीं है तु अब समाज कल्याण के लिए भी प्रार्थना नहीं कर रही है पहले जब भी तकलीफ दिखती थी तब भगवान राम से बाबा हनुमान जी से प्रार्थना करती हे बाबा हनुमान जी महाराज हे प्रभु प्राण नाथ देखो मेरी ये थोड़ी सी साधना है मै तुम्हे नमन करते हुए प्रार्थना करती हू हे भगवान ये साधना तुम्हे समर्पित करती हूं चाहे तुम मुझे कष्ट दे देना मेरे देश की रक्षा कर देना। वह परम तत्व परमात्मा सबकुछ कर रहा है परमात्मा का नाम चिन्तन ही प्रार्थना है परमात्मा का सुक्ष्म रूप आत्मा है आत्माराम प्राणी के हदय में बैठा हैं हदय के गुप्त पिटारे में भगवान छुपे बैठे हैं ।अपने को निहारने में चिन्तन करने में कोई सीमा नहीं है जय श्री राम अनीता गर्ग
भीतर की आंख से देख
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