निकुञ्ज – प्रेम महासागर



साधकों ! मेरा ये सब लिखने का एक ही उद्देश्य है कि उस दिव्य निकुञ्ज की कुछ झलक आपको मिल सकें।हमारे रसिक जन कहते हैं – आनन्द और सुख की सर्वोपरि सीमा है निकुञ्ज प्रेम का लहराता हुआ महासागर है निकुञ्ज ।वहाँ भ्रम,तम,गम,विरह,मान,श्रम आदि का लवलेश भी नही है ।वर्ष, मास, पक्ष, प्रहर, पल अर्थात् काल की समस्त गणनाएं वहाँ व्यर्थ हैं…।

माया का वहाँ प्रवेश नही है।सत्व रज तम, त्रिगुण की वहाँ गति नही है,उस अत्यन्त गोप्य प्रेम समुद्र की अगाध तंरगों में आपको डूबना है,तो चलिये मेरे साथ।आहा ! निकुञ्ज की वो शोभा प्रेम के भी प्रेम, सुख के भी सुख, रूप के भी रूप, स्नेह के सागर, रस के भी रस,महा उदार युगल सरकार – राजा रानी हैं वहाँ के ।

पर अबोले होकर चलना पड़ता है उस ओर मौन होकर ऐसा बनना पड़ता है जैसे हम कुछ नही जानते। सच बताऊँ तो साधकों ! उस ओर ही परम शान्ति है।सखियाँ भी अपने प्राण प्रियतम की इस केलि को कुञ्ज रंध्रों से निहारती रहती हैं।और अपने नयनों को शीतल करती हैं ।वो रंगमहल वहाँ कोई शब्द नही पहुँचता।पक्षी भी मौन व्रत धारण करके बैठे रहते हैं।क्यों कि सुरत शय्या पर प्रेम के दो रूप परस्पर अंगों को अंग में, मन को मन में, प्राणों को प्राण में समाने का यत्न कर रहे हैं।प्रेम की अटपटी चाह रूप को पीये जा रही है।फिर भी नेत्र प्यासे के प्यासे हैं।रूप सौन्दर्य बढ़ता जा रहा है जैसे जैसे रात गहरी होती जा रही है।पर उस रूप को पान करने की चाह भी तो चौ गुनी होती जाती है।यह केलि चल रही है,इसका न आदि है न अंत है।यही तो है रसोपासना ।

रसिकों का चरम उपास्य तत्व यही सर्वोपरि है साधकों !चलिये अब चलिये ! निकुञ्ज की ओर,प्राणाधार नित्य किशोरी जोरी की जय हो !अलक लडैती सुकुमार की जय हो !श्रीराधा उर हार स्वरूप श्रीश्याम सुन्दर जु की जय हो !सखियों ने जय घोष किया।पूरा निकुञ्ज जय जयकार करने लगा ।सखियों ! अब युगल के नयनों में नींद भर आयी है।देखो तो प्रिया जु के अंग कैसे शिथिल हो रहे हैं आलस वश रंगदेवी ने सभी सखियों को सावधान किया।देखो तो ! अलक लड़ैते ये सुकुमार निद्रा के कारण कैसे दबे से जा रहे हैं।अब तो इनको ‘रंगमहल” में शयन कराओ सखियों !

हाँ सही कह रही हो रंगदेवी !

ललिता सखी ने हाथ जोड़कर युगलवर से कहा अब आप रंगमहल में पधारो और वहाँ सुखपूर्वक शयन करो।ठीक है सखी ! युगल ने एक ही बात दोहराई,सखियों ने सम्भाला युगल को।और लेकर चल दीं,दिव्य रंगमहल की ओर ।युगल धीरे धीरे चल रहे हैं।सखियों ने सम्भाला है दोनों को नींद में भरकर झूमते हुए चाल की अलग ही शोभा लग रही है युगलवर की… ऐसी अद्भुत शोभा देखकर सखियाँ मुग्ध हो रही हैं।युगल परस्पर कुछ कहना चाहते हैं।पर आलस के कारण मुख में ही वह बात रह जाती है।आँखों में नींद स्पष्ट दिखाई दे रही है।रंगदेवी की ओर प्रिया जु झुक गयी हैं।और ललिता की ओर श्याम सुन्दर झुक गए हैं।इस रूप माधुरी का दर्शन करके गदगद् हैं सब सखियाँ ।

दिव्य रंगमहल है।लाल हरे मणि के खम्भ हैं।उसमें युगल अनन्त रूपों में रूपायित हो रहे हैं।सुन्दर शैया है।युगल को सुख देने वाली कोमल शैया।सखियों ने उस शैया पर विराजमान कराया।मुकुट उतार दिए श्याम सुन्दर के बस मुकुट के उतारते ही घुँघराले केश मुख मण्डल में फैल गए।क्या छवि लग रही है उस समय की।चन्द्रीका श्रीजी का उतार दिया सखियों ने।चरणों को अपनी ओढ़नी से पोंछ दिया।और उस ओढ़नी को अपने नेत्रों से अपने सम्पूर्ण शरीर से लगाकर आनन्दित होती हैं सखियाँ ।

स्नेह रस में पगे प्रिया प्रियतम को अब सुला दिया है सखियों ने ऊपर से पीला चादर ओढ़ा दिया था।तब रंगदेवी सखी और ललिता सखी दोनों मिलकर युगल के चरण दबाने लगीं ।आहा ! कितने सुन्दर लग रहे हैं सोते हुए युगल सरकार।सखी ! देख तो ! कितने थक गए थे। बस शैया में पड़ते ही नींद कैसी गहरी आ गयी है इन्हें।तभी श्याम सुन्दर नींद में ही मुड़े श्रीजी की ओर और अपने हाथों का तकिया बना कर श्रीजी के सिर के नीचे लगा दिया है ।अपना हृदय श्रीजी के हृदय से लगाकर कितने आनन्दित हो रहे हैं।नींद में भी आनन्द झलक रहा है इनके मुख चन्द्र पर ।

सखी ! देखो पीला चादर कैसे खिसकता जा रहा है।धीरे धीरे और दोनों युगल एक दूसरे के कितने निकट आते जा रहे हैं। नींद में विघ्न हो ऐसा जानकर सखियाँ चरण दबाना बन्द कर देती हैं।और चुपके से बाहर की ओर चली जाती हैं ।और कुञ्ज रन्ध्र से देखती हैं।क्या सुन्दर झाँकी है युगल की आज। अपने बाहु का तकिया देकर प्यारी को प्यारे कितने गदगद् हो रहे हैं।ऐसा लग रहा है,जैसे काले बादलों में बिजली चमकती हो।सखियाँ देखते हुए कहती हैं,ऐसा लग रहा है जैसे काली अंधियारी रात में पूर्ण चन्द्र उग गया हो।ऐसी छवि तो आज तक हमनें न देखी न सुनी।बस अपलक देखती रहती हैं सखियाँ।युगल सो रहे हैं । || युगल सरकार की जय हो ||



Seekers! I have only one purpose of writing all this so that you can get some glimpse of that divine Nikunj. Our lovers say – Nikunj is the supreme limit of joy and happiness, Nikunj is the waving ocean of love. There is no confusion, darkness, sorrow, separation. There is not even a trace of honor, labor etc. All calculations of year, month, side, prahar, moment i.e. time are useless there….

Maya has no entry there. There is no movement of Satva, Raja, Tam, Triguna. If you want to drown in the deep waves of that very secret ocean of love, then come with me. Aha! The beauty of Nikunj is the love of love, the happiness of happiness, the form of form, the ocean of affection, the essence of juice, the great generous couple Sarkar – the king and queen are there.

But we have to walk silently and act like we don’t know anything. To tell you the truth, seekers! There is ultimate peace on that side only. Even the friends keep looking at this body of their beloved from the narrow pores and cool their eyes. No words reach that theater. Even the birds keep sitting there keeping a fast of silence. Why That the two forms of love on the bed of beauty are trying to merge each other’s body parts, mind into mind, life into life. The strange desire of love is drinking the form. Still, the eyes are thirsty for thirst. Form The beauty is increasing as the night is getting darker. But the desire to enjoy that beauty also keeps increasing fourfold. This is just going on, it has neither beginning nor end. This is Rasopasna.

This is the supreme element of ultimate worship of Rasikas, seekers! Let’s go now! Towards Nikunj, Hail to Nitya Kishori Jori, who is the life support! Hail to Alak Ladaiti Sukumar! Hail to Shri Radha and the embodiment of defeat, Shri Shyam Sundar Ju! Friends shouted Jai. The whole Nikunj started chanting Jai. Friends! Now the eyes of the couple are filled with sleep. Look how Priya Ju’s body parts are becoming weak due to laziness. Rangdevi cautioned all the friends. Look! How come these bright warriors are getting buried due to soft sleep. Now make them sleep in ‘Rangmahal’, friends!

Yes, you are right Rangdevi! Lalita Sakhi folded her hands and said to the couple, now you come to the theater and sleep happily there. Okay friend! The couple repeated the same thing, the friends took care of the couple and took them towards the divine theater. The couple is walking slowly. The friends have taken care of both of them, making them sleepy and dancing. The couple’s gait is different. That… The friends are mesmerized after seeing such amazing beauty. The couple wants to say something to each other. But due to laziness the thing remains in their mouth. Sleep is clearly visible in the eyes. Priya has bent towards Rangdevi. And Shyam Sundar has bent towards Lalita. All the friends are happy to see Madhuri in this form.

There is a divine theater palace. There are pillars of red and green gems. In it the couple is getting transformed into infinite forms. There is a beautiful bed. A soft bed that gives pleasure to the couple. The friends made them sit on that bed. The crown was removed just for Shyam Sundar to wear the crown. As soon as she took it off, her curly hair spread across her face. What a picture of that time. Chandrika Shreeji’s friends took her off. She wiped her feet with her cover. And she felt happy by applying that cover to her eyes and her entire body. Friends.

Priya, intoxicated with love, has now put her beloved to sleep. Her friends had covered her with a yellow sheet. Then both Rangdevi Sakhi and Lalita Sakhi together started pressing the couple’s feet. Aha! The sleeping couple looks so beautiful, Sarkar.Sakhi! Look! How tired he was. As soon as they fell into the bed, how deep their sleep fell. Then Shyam Sundar turned towards Shreeji in his sleep and made a pillow with his hands and placed it under Shreeji’s head. How happy he was feeling by touching his heart to Shreeji’s heart. Even in sleep, joy is visible on the moon’s face.

Friend! Look how the yellow sheet is slipping away. Slowly and gradually the two couples are coming closer to each other. Sensing that there is a disturbance in their sleep, their friends stop pressing their feet and go outside secretly and look through the bower hole. What a beautiful glimpse of the couple today. How happy the beloved is feeling after giving the pillow of his arm to his beloved. It seems as if lightning is flashing in the dark clouds. While watching, the friends say, it seems as if the full moon has risen in the dark dark night. Such an image. So till date we have neither seen nor heard anything. The friends just keep looking at us. The couple is sleeping. , Jai Yugal Sarkar ||

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