पिता ने अपने नन्हे बेटे को कुछ पैसे देकर फल लाने के लिए बाजार भेजा। बच्चे को रास्ते में कई गरीब लोग दिखे। जिनके बदन पर कपड़े भी पूरे नहीं थे। वह भूख से छटपटा रहे थे और लोगों से मदद मांग रहे थे। पर कोई उन पर ध्यान नहीं दे रहा था। बच्चे को उन पर दया आ गई। उसने उन गरीबों को पैसे दे दिए। उन गरीबों के चेहरों पर खुशी के भाव देखकर बच्चे को बेहद संतोष हुआ। वह प्रसन्न मन से घर लौटा। पिता ने बेटे को खाली हाथ आता देख कर कहा-बेटा फल नहीं लाए ?
बालक ने हंसकर उत्तर दिया- ‘लाया हूँ ना। पिता चौंक पड़े।’ उन्होंने कहा-पर कहाँ हैं? फल दिखाई नहीं दे रहे हैं।’ बालक ने कहा-‘आपके लिए अमरफल लाया हूँ पिताजी।’ पिता ने पूछा- ‘इसका क्या मतलब है ?
बालक बोला मैंने बाजार में जब अपने ही जैसे कुछ लोगों को भूख से तड़पते हुए देखा तो मुझसे रहा नहीं गया, मैंने अपने सारे पैसे उन्हें दे दिए ताकि वे भी कुछ खा सकें। उनकी भूख मिट गई। हम लोग फल खाते तो दो-चार क्षणों के लिए हमारे मुँह मीठे होते। पर भूखों को खिलाकर जो फल हमने पाया है उसका स्वाद और प्रभाव तो स्थायी रहेगा। वह अमर रहेगा। इस पल के आगे उस फल की बिसात ही क्या ?’
पिता भी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अपने बेटे की बात से वह आत्मविभोर हो गए। उन्होंने मन ही मन सोचा-‘ऐसा फल शायद ही कोई लेकर आता को दिया होगा।’ दूसरों की मदद करने की यह भावना उस लड़के में समय के साथ और मजबूत होती गई और आगे वश्याकर प्रयासन्त रंगदास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
The father gave his young son some money and sent him to the market to buy fruits. The child saw many poor people on the way. Who did not even have complete clothes on his body. He was suffering from hunger and was asking people for help. But no one was paying attention to them. The child felt pity for them. He gave money to those poor people. The child felt extremely satisfied after seeing the expressions of happiness on the faces of those poor people. He returned home with a happy heart. The father saw his son coming empty-handed and said – Son, didn’t he bring fruits?
The child laughed and replied – ‘I have brought it, right? The father was shocked. He said- But where are you? Fruits are not visible. The child said – ‘Father, I have brought Amarphal for you.’ The father asked- ‘What does this mean?’
The boy said, when I saw some people like me suffering from hunger in the market, I could not control myself, I gave them all my money so that they too could eat something. His hunger disappeared. If we had eaten fruits, our mouths would have been sweet for a moment or two. But the taste and effect of the fruit we have gained by feeding the hungry will remain permanent. He will remain immortal. What is the status of that fruit beyond this moment?
Father was also of religious nature. He became intoxicated by his son’s words. He thought in his mind – ‘Hardly anyone would have brought such a fruit and given it.’ This feeling of helping others became stronger in that boy with time and he became famous by the name of Vashyakar Prayasant Rangdas.