बांसुरी बजाय तुम व्रज बस कीन्हों।
तोहि बस करिबे को बांसुरी बजाइहौं।। भगवान ने देखा, मुरली नहीं है। समझ गये श्री राधिकाजी ले गईं। उधर जमुना किनारे कदम्ब वृक्ष के ऊपर श्री राधिका जी की मणिमाला थी। भगवान वह माला ले आए। श्री राधिका जी ने मुरली बजाई और श्री कृष्ण भगवान ने उस मणिमाला को पहना। थोड़ी देर में श्री राधिकाजी आईं-- कन्हैया हमें अच्छा नहीं लगता, हमारी मणिमाला दे दो। श्री कृष्ण बोले -- आप भी मुरली दे दो।
अब मैं कैसे रास रचाऊँ,
कैसे नाचूँ नाच नचाऊँ।
मुरली बिछुड़ गई,
काहे राधेरानी मेरी मुरली लई।
राय बतावो सही,
काहे राधेरानी मेरी मुरली लई।। उन्होंने उनकी मुरली दे दी, उन्होंने उनका हार दे दिया। पर इस आदान प्रदान में ऐसा कुछ हो गया। श्री राधिका जी प्रेम विह्वला हो गईं। एक गोपी के पास आईं और कहने लगीं--
मैं मुरली मुरलीधर की लई।
और मेरी लई मुरलीधर माला।
मैं मुरली अधरान धरी।
उर मांझ धरी मुरलीधर माला। यह तो आप लोगों में रोज होता है, इसमें नई बात क्या है? अरे नई बात तो सुनो--
मैं मुरली मुरलीधर की भई।
और मेरी भये मुरलीधर माला।। मैं उनकी मुरली हो गई और वे मेरी माला हो गये। जब भगवान भक्त के हृदयहार बन जायँ, और भक्त भगवान की मुरली बन जाय। ऐसा यह राधाकृष्ण मिलन का आनन्द है। गोपियाँ जमुना जी में जल भरने जाती हैं और जल भरने के बहाने प्यारे श्याम सुंदर का दर्शन पाने जाती हैं और मनमोहन नंदनंदन श्याम सुंदर उनको छेड़ते हैं। बड़ी मधुर लीला है। एक सखी कहती है--
आली हौं तो गई जमुना जल कौं।
सो कहा कहौं भीर बिपत्ति परी। एक गोपी उधर से अकेली आ रही है, तो सखियों ने पूछा -- तू कहां गई थी? तो कहने लगी--
आली हौं तो गई जमुना जल कौं। तो तुम्हारी मटकी कहाँ है?
कहा कहौं भीर बिपत्ति परी।। एक बिपदा का क्षण आ गया। कैसा? कहा --
उत ते एक कारी घटा उमरी।
इतने में ही गागर सीस धरी।। उधर से काली घटा उमड़ी और मैंने गागर जल से भरी अपने सिर पर रखी। अच्छा फिर क्या हुआ? कहा --
रपट्यो पग घाट चढ्यो न गयो। मेरा पांव फिसल गया, मैं घाट पर चढ़ न सकी। तो --
कवि मंडन है के बिहाल गिरी। मैं गिर गई, तो मटकी फूट गई, जल बह गया। तो ये तेरे शरीर में जो मिट्टी लगी, इसीलिए तो लगी है। अच्छा, फिर किसने उठाया? वह कहती है--
कवि मंडन है के बिहाल गिरी।
चिर जीबहु नंद को वारो अरी।
गहि बांह गरीबनि ठाड़ी करी।। प्यारे श्यामसुंदर ने मुझे उठा लिया, मैं तो गिर ही गई थी। पनघट की इतनी मधुर मधुर लीलाएं हम लोग मधुर विलास के माध्यम से सुन रहे हैं।
एक दिन पनघट यमुना के तट कान्हा आये।
सखा वृन्द चहुंओर देखि झषकेतु लजाए। एक दिन पनघट पर यमुना जी के किनारे भगवान श्री कृष्ण पधारे। चारों तरफ से सखा, और सखाओं के बीच में प्यारे श्याम सुंदर। देखि झषकेतु लजाए।
लाजहिं तन शोभा निरखि कोटि कोटि शत काम। अनेक काम लज्जित होते हैं जिन्हें देखकर। भगवान का नाम मदनमोहन है। मदन ने सारे संसार को मोहित कर लिया, लेकिन जिन्होंने उस मदन को भी मोहित कर लिया हो, मनोज को भी मोहित कर लिया हो, उनका नाम मदनमोहन है। इसलिए इनकी सुंदर शोभा देखकर काम लज्जित होता है।
सखावृंद चहुंओर देखि झषकेतु लजाए।
Instead of flute, you used Vraj. So let’s just play the flute for others. God saw, Murli is not there. Got it, Shri Radhikaji took it away. On the other side, there was a garland of Shri Radhika ji on the Kadamba tree on the banks of Yamuna. God brought that garland. Shri Radhika ji played the flute and Lord Krishna wore that garland. After some time, Shri Radhikaji came – Kanhaiya, we don’t like it, give us our Manimala. Shri Krishna said – You also give the Murli.
Now how do I create a raas? How should I dance? Murali got separated, Why did Radherani take my murli? Please tell me your opinion, Why did Radherani take my murli? He gave his flute, he gave his necklace. But something like this happened in this exchange. Shri Radhika ji became intoxicated with love. She came to a Gopi and started saying-
I took Murali Muralidhar. And my garland of Muralidhar. I listened to the flute. Ur Manj Dhari Murlidhar Mala. This happens everyday among you people, what is new in this? Hey, listen to the new thing-
I am the brother of Murali Muralidhar. And my dear Muralidhar Mala. I became his murli and he became my rosary. When God becomes the heartthrob of the devotee, and the devotee becomes the murli of God. Such is the joy of meeting Radha Krishna. Gopis go to fill water in Jamuna ji and on the pretext of filling water, they go to get darshan of beloved Shyam Sundar and Manmohan Nandanandan Shyam Sundar teases them. It is a very sweet play. A friend says-
If I am here, then where is the Yamuna water? So what should I say, O evil angel? A Gopi was coming alone from there, so her friends asked – Where did you go? Then she started saying-
I am Ali, so I went to the Jamuna water. So where’s your jug?
Where should I say, the evil angel? A moment of disaster has arrived. How? Said —
From that my age decreased by one day. Meanwhile Gagar started hissing. A dark cloud appeared from there and I placed a garg full of water on my head. Well then what happened? Said —
Rapatyo pag ghat chadhyo na gayo. My foot slipped, I couldn’t get on the ferry. so —
Poet Mandan Hai fell into disrepair. When I fell, the pot broke and the water flowed out. So, this is why there is soil on your body. Okay, then who picked it up? She says-
Poet Mandan Hai fell into disrepair. Chir Jibahu Nand Ko Varo Ari. The poor woman took her hand with her hand. Dear Shyamsundar picked me up, I had almost fallen. We are listening to such sweet and melodious Leelas of Panghat through sweet luxury.
One day Panghat came to Kanha on the banks of Yamuna. The group of friends looked around and felt ashamed. One day Lord Shri Krishna arrived on the banks of Yamuna at Panghat. Friends all around, and lovely Shyam Sundar among the friends. Look, Jashketu is ashamed.
There are millions of works without shame in the body and no beauty. Many things feel shameful when seen. The name of the god is Madanmohan. Madan has captivated the whole world, but the name of the one who has charmed that Madan and also Manoj is Madan Mohan. That’s why one feels ashamed after seeing their beautiful beauty.
Sakhabrind was shocked from all sides.