प्रियतम से सम्बन्ध

हम भगवान  राम, कृष्ण, हरि, शिव, को कथाओं में ढुंढते है।भजन गाते हैं हम रामचरितमानस, भगवद्गीता, भागवत महापुराण को पढते है। मन्दिर मुर्ति सब कुछ प्रिय से सम्बन्ध बनाने के हृदय में प्रेम जगाने के साधन है। भक्ति मार्ग और ध्यान मार्ग को दृढ करने के साधन है। उपनिषद और अनेक ग्रथं पढकर भी पार नहीं पाते हैं।हम पढ कर अपने अन्तर्मन मे नही बिठाते है।


अध्ययन का अर्थ है।  एक विचार एक परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए उनकी गहराई को समझना है ।  शब्द, भाव और विचार  की धारा हमारे जीवन में कंहा तक परिवर्तन करते है।हमने  ग्रथों को पढकर ग्रथ के  भाव को हृदय मे कितना बिठाया  । या हम ग्रथों को तोते की तरह रटते है बहुत कुछ पढ कर बाहरी ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। बाहरी ज्ञान और अध्यात्म में बहुत अन्तर है। अध्यात्म आप के अन्दर की खेती है। पुजा मन्दिर में घंटी बजा कर एक बार की जाती है।  हम नियम में बंधकर परमात्मा का चिन्तन करते हैं। तब हम बाहर की घंटी बजा रहे हैं।  भाव उसे कहते हैं। जिसे हम अपने मन से अनगिनत बार करते हैं जो हृदय को छू जाता है। हमे भाव में रंगना होता है। पढते पढते हमारी उम्र बीत जाती है। हमे जंहा से जो भी मिलता है। आधा अधुरा पढते है।

ग्रथ पढते हुए भी हम ग्रंथ के रस को प्राप्त करने लगते हैं। ग्रथं के कुछ भाव को पकङते नहीं है।एक भाव  ही  हृदय में समा जाए। हम भाव में ढुब जाए। दृष्टि स्थिर हो जाए भाव मे इतना ढुब जाये, एक ही भाव में ठहर ठहर कर हृदय पर दस्तक देता है । नित नई उमंग जगती रहती है अपने आप को भुल जाता है । ग्रथं का लक्ष्य जागृति है। जिस दिन जागृती हो गई। ग्रथं से ऊठ जाते हैं हम। सम्बन्ध

प्रभु प्राण नाथ के प्रेम की लहर में ढुब जाएगे। हृदय के अन्दर बैठा हुआ एक शब्द ही बहुत है। दिल जिसमें आ जाता है। दिल से हम हजारों बार करते जाते हैं। दिल सुबह शाम दोपहर नहीं देखता है। दिल नियमों से ऊपर उठ जाता है। भगवान के  नजदीक  आ जाते हैं।प्रेम बंधनों को तोड़ देता है।

ऐसा क्यो होता है। हम अपने अन्तर्मन मे भगवान को नहीं बिठाते है। भगवान से बात दिल की गहराई से नहीं करते हैं। एक मां का पुत्र के सम्बन्ध में कोई दिखावा नहीं होता है। मां अपने बच्चों को दिल की आंखों से निहारती है। ऐसे ही हमे हमारे भगवान को दिल मे बिठाना है। दिल की तङफ और पुकार में परमात्मा चले आते हैं।

हमे होश ही नहीं है तब ग्रंथ कैसे पढे।ग्रथ का कार्य प्रभु प्राण नाथ से सम्बन्ध बनाने का साधन है। सम्बन्ध जब हरि से जुड़ जाता है। तब साधक के दिल की पुकार में हरि आते हैं दर्श दिखाने का अहसासं कराते हैं। हम जितने व्रत नियम मन्त्र जप ध्यान साधना करते हैं वे सब प्रीतम से सगाई के मार्ग है। जिस दिन गठबन्धन बंध जाता हैं।

जग के कण-कण में प्रियतम की झलक मे खो जाती हूँ।प्रीतम के रंग में रंग जाती हू। तब भक्त को अपना होश नहीं होता है। एक नव योवना की नई नई शादी होती है तब नव योवना अपने पति के रंग में रंग जाती है संसार की खबर नहीं रहती है। ऐसे ही भक्त अपने प्रियतम के रंग मे रंग जाता है। पल पल अपने स्वामी के सपने संजोते हुए मुझे ऐसा लगता है मै ही प्रियतम हूँ भगवान भक्त के हदय में समा जाते हैं तब मै मर जाता है मै मर गया तब तुम ही तुम हो। मुझ पर प्रिय का ऐसा रंग रंगा है। मुझे अपने में प्रभु प्राण नाथ ही दिखते हैं। ऐसे में मुझ बावरी से कुछ काज संवरता नहीं है। कुछ करने लगती हूं तब मेरा प्रीतम प्यारे आ जाते समझ नहीं पाती हूँ

प्रभु प्राण नाथ को निहारू की कार्य करू।प्रभु प्राण नाथ के प्रेम में खोई हुई कार्य करती कभी मटकती कभी प्रभु प्राण नाथ मे खों जाती हूँ । ऐसे में पुजा पाठ व्रत नियम कथा करना  भुल बैठी हूँ ठहर ठहर कर श्री हरि के प्रेम की उंमग में दिल धक धक करता है। कहीं कोई देख न ले। प्रेम प्रवान चढता है तब दिल में आनंद और दर्द दोनों लहर एक साथ चलती है। अब नैन खुलना नहीं चाहते हैं वे प्रीतम के रस में डूब गए हैं। अब नैनो को कुछ देखना शेष न रहा।परमानन्द का स्वाद के सामने सब स्वाद फीके है। मन आनंद सागर में गोते लगाता है।  इन्द्रियों  अन्तर्मुखी हो गई है।हर ध्वनि हरि ध्वनि बन गई है। जय श्री राम अनीता गर्ग

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