भक्ति के संप्रदाय, प्रार्थना को मूल्य देते हैं, तो तीन शब्द समझ लेना, तो ही वात्सल्य समझ में आयेगा-
१- प्रार्थना,
२- प्रेम और,
३- वात्सल्य।
प्रार्थना होती है, जो अपने से बड़ा है- परमात्मा, उसके प्रति।
प्रार्थना में एक मांग होती है। प्रार्थना शब्द में ही मांग छिपी है। इसलिए मांगनेवाले को हम प्रार्थी कहते हैं। मांगा उससे जा सकता है जिसके पास हमसे ज्यादा हो, अनंत हो, तो प्रार्थना सिर्फ भगवान से की जा सकती है। लेकिन महावीर की व्यवस्था में भगवान की कोई जगह नहीं है- प्रार्थना की कोई जगह नहीं।
दूसरा शब्द है- ‘प्रेम’
प्रेम होता है सम अवस्था, सम स्थितिवाले लोगों में- एक स्त्री में, एक पुरुष में, दो मित्रों में, मां-बेटे में, भाई-भाई में। परमात्मा ऊपर है, प्रार्थी नीचे है, लेकिन प्रेमी साथ-साथ खड़े हैं। परमात्मा से सिर्फ मांगा जा सकता है, उसको दिया तो क्या जा सकता है! देने को हमारे पास कुछ भी नहीं है। उसके सामने हम निपट भिखारी हैं, समग्ररूपेण भिखारी, देंगे क्या ? देने को कुछ भी नहीं है। अपने को भी दें तो भी वह देना नहीं है, क्योंकि हम भी उसी के हैं, तो देना क्या है ?
उससे हम सिर्फ मांग सकते हैं, सिर्फ मांग सकते हैं। उसके सामने हम सिर्फ भिखारी हो सकते हैं, इसलिए महावीर कहते हैं, परमात्मा की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि परमात्मा के कारण सारा संसार भिखारी हो जाता है। प्रेम में हम लेते हैं, देते हैं, क्योंकि दोनों समान हैं। जिसको तुम प्रेम करते हो, तुम देते भी हो; लेकिन देते तुम इसीलिए हो कि मिले। जो तुम्हें प्रेम करता है, वह भी देता है; लेकिन देता इसीलिए है कि मिले, वापस हो। तो प्रेम में लेन-देन है। परमात्मा की तरफ से इकतरफा है; सिर्फ मिलता है; देने को हमारे पास कुछ भी नहीं है। प्रेमी लेते-देते हैं।
और तीसरा- ‘वात्सल्य’
यह ठीक प्रार्थना का उलटा है। वात्सल्य का अर्थ है- ‘तुम दो’
इसलिए कहते हैं, मां का वात्सल्य होता है, बेटे की तरफ। बेटा क्या दे सकता है ? छोटा-सा बेटा है, अभी पैदा हुआ, चल भी नहीं सकता, बोल भी नहीं सकता, कुछ लाया भी नहीं, बिलकुल नंग-धड़ंग चला आया है। हाथ खाली है। वह देगा क्या ? इसलिए समान तल तो है नहीं, मां का और बेटे का। और मांग भी नहीं सकता, क्योंकि मांगने के लिए भी अभी उसके पास बुद्धि नहीं है, तो मां का वात्सल्य है। मां उसे जो प्रेम करती है वह सिर्फ देने-देने का है। मां देती है, वह लौटा भी नहीं सकता। उसको अभी होश ही नहीं लौटाने का। वात्सल्य का अर्थ है- ‘तुम दो जैसे मां देती है।’
तो महावीर कहते हैं, प्रार्थना नहीं, प्रेम नहीं बस वात्सल्य। तुम तो लुटाओ, जो तुम्हारे पास है, दिये चले जाओ, इसकी फिक्र ही मत करो कि किसको दिया। बस इसकी फिक्र करो कि दिया। तो जो तुम्हारे पास हो, वह तुम देते चले जाओ, कुछ तुम्हारे पास बाहर का देने का न हो तो भीतर का दो। वस्तुएं न हों तो अपना प्राण बांटो, अपना अस्तित्व बांटो, पर दो और देते रहो! तो जैसे भक्ति के रास्ते पर प्रार्थना सूत्र है, ठीक उससे विपरीत, ध्यान के रास्ते पर वात्सल्य सूत्र है।
भक्ति के रास्ते पर तुम भिखारी होकर भगवान के मंदिर पर जाते हो; ध्यान के रास्ते पर तुम सम्राट होकर, तुम बांटते हुए जाते हो, तुम देते हुए जाते हो! तुम मांगते नहीं। क्योंकि मांग में तो आकांक्षा है- वह तो पहले ही चरण में समाप्त हो गई। अब तुम्हारे पास जो कुछ है, तुम उसे बांटते हो, और जब तुम बांटते हो, तब तुम पाते हो कि और आने लगा! अनंत ऊर्जा उठने लगी! तुम्हारे सब जलस्रोत खुल जाते हैं, तुम्हारे झरने सब फूट पड़ते हैं, जितना तुम्हारे कुएं से पानी उलीचा जाता है, तुम पाते हो। उतना ही नया पानी आ रहा है। सागर तुममें अपने को उंडेलने लगता है। तो लुटाओ ! ‘दोनों हाथ उलीचिए, यही सज्जन को काम।’ कबीर ने कहा है- उलीचो! महावीर का वात्सल्य वही है, जिसको कबीर कहते उलीचना कहते हैं। ।। जय जय सियाराम ।।
The sects of devotion give importance to prayer, then understand these three words, only then will you understand Vatsalya-
1- Prayer, 2- Love and, 3- Affection.
Prayer is done to the one who is greater than oneself – God. There is a demand in prayer. The demand is hidden in the word prayer itself. That’s why we call the one who asks, a applicant. The demand can be made from someone who has more than us, if he is infinite, then prayer can be made only to God. But in Mahavira’s system there is no place for God – no place for prayer.
The second word is- ‘love’
Love happens between people of equal status, between a woman, a man, two friends, mother and son, brother and brother. God is above, the seeker is below, but the lovers are standing together. One can only ask from God, what can be gained if given to Him? We have nothing to give. In front of him we are complete beggars, complete beggars, what will we give? There is nothing to give. Even if we give to ourselves, that is not giving, because we also belong to Him, so what is there to give?
We can only ask from him, only ask. In front of Him we can only be beggars, that is why Mahavir says, there is no need of God, because because of God the whole world becomes beggar. In love we take and give, because both are equal. To whom you love, you also give; But you give so that you get. He who loves you also gives; But it is given so that we get it and get it back. So there is give and take in love. It is one-sided from God’s side; Just get; We have nothing to give. Lovers give and take.
And third- ‘Vatsalya’
This is the exact opposite of prayer. Vatsalya means ‘you give’ That is why it is said that a mother has affection for her son. What can the son give? He is a small son, just born, can’t even walk, can’t even speak, hasn’t even brought anything, has come completely naked. The hand is empty. Will he give? That’s why there is no equal status for the mother and the son. And he cannot even ask, because he does not yet have the intelligence to ask, so he has mother’s affection. The love that his mother gives him is only of giving and giving. Mother gives, he cannot even return. He has yet to regain consciousness. The meaning of Vatsalya is – ‘Give you the way your mother gives.’
So Mahavir says, no prayer, no love, just affection. You just spend what you have, give it away, don’t worry about who you gave it to. Just worry about it. So whatever you have, keep giving. If you don’t have anything to give from outside, then give from within. If you don’t have things, share your life, share your existence, but keep giving more! So just as there is a prayer sutra on the path of devotion, just the opposite, there is a vatsalya sutra on the path of meditation.
On the path of devotion you go to God’s temple as a beggar; On the path of meditation, you become an emperor, you go by distributing, you go by giving! You don’t ask. Because there is aspiration in the demand – it has already ended in the first phase. Now whatever you have, you share it, and as you share, you find that more is coming! Infinite energy started rising! All your water sources open, all your springs burst, you get as much water as is poured from your well. Equal amount of new water is coming. The ocean begins to pour itself into you. So spend it! ‘Wrapped both hands, this is the job of a gentleman.’ Kabir has said- Ulicho! Mahavir’s love is the same which Kabir calls Ulichana. , Hail hail Sita Ram ..