हम भगवान का नाम जप आसन पर बैठकर माला लेकर करते हैं। राम राम राम जपती रहती। जब भी समय मिलता राम राम मन ही मन जपते रहती थी।
मुझे नहीं मालूम था राम नाम को बैठकर जपते है। राम राम नाम जप मन से करती रहती जब भी समय मिलता राम राम राम नाम जप मन ही मन करती रहती।
फिर किसी को माला लेकर करते हुए देखा तब माला लेकर करने लगती थी। मेरे माला का भी अलग ही तरीका रहता राम राम की एक माला एक सांस में करने का दिल करता। दिल करता हर सांस राम नाम की बन जाए। फिर किसी ने कहा श्री लगा लो
श्री राम श्री राम जपते हुए मुझे राम श्री सुनता। जब नाम जप जल्दी जल्दी करते हैं तब हमें उल्टा मंत्र सुनाई देता है। मन्त्र जप को बैठकर करते हैं तब counting से करते हैं।
नाम जप के साथ हम भगवान को दिनभर में कितनी बार याद करते हैं। हम माला से मंत्र जप करते हैं तब एक बार भगवान का नाम जपते है। प्रेम और तङफ जिस दिल में पैदा हो जाता है। तब भक्त भगवान को जब भी समय मिलता है वह भगवान का सिमरण करता है ।भगवान को दिल मे बिठाना चाहता है।
मन में एक ही विस्वास रहता था राम भगवान हैं। भगवान को हमे याद करते रहना चाहिए राम राम मन्त्र जप जपते हुए आत्मविश्वास बढ़ता है। हमारे अन्तर्मन मे एक अद्भुत विस्वास होगा।
मुझे यह लगता क्या भगवान को माला के मनके में बांध कर रखते हैं। परमात्मा ने मुझे आंखों को देकर यह नहीं कहा आंखों से दो घंटे तीन पांच घंटे देखना। परमात्मा ने आंख कान दे दिए। तब हम आंखों और कान से जीवन भर देखते सुनते हैं। वह दाता है हमे भी भगवान को याद करने सिमरण स्मरण करने के लिए कोई समय सीमा नहीं हो दिल के सम्बन्ध में समय सीमा में भक्त बन्ध नहीं सकता है। उसका दिल अपने स्वामी भगवान् नाथ के पास है जंहा दिल है वहीं भक्त है। भक्त भगवान को हर क्षण सिमरण और स्मरण करता है दिल के तार स्वामी को ऐसे ही पुकारते पुकारते झंकार जाते हैं।
फिर परमात्मा को हम माला के मनके में क्यों बांधते है। मन में दिल में परमात्मा को बिठा लेते हैं। परमात्मा के नाम में समय सीमा क्यों है।
मन्त्र जप तो हमें उठते हुए बैठते हुए सुबह शाम हंसते हुए करना है। भोजन करते हुए स्नान करते हुए कार्य करते हुए भगवान का नाम जप करना चाहिए।
बच्चों को पढ़ाते हुए राम राम फिर एक दिन मन करा मै अंजुलि भर राम नाम लुगीं । ओफिस में सबके साथ बैठी मन ही मन श्री राम श्री राम जपते हुए तीन चार घंटे लगते हाथ के अंगुठे से शुरू करती सुई की नोक कि तरह ऊंगली को सरकाती श्री राम श्री राम मन्त्र जपती। प्रतिदिन निर्लेप भाव से करती बङा आनंद आता। मन्त्र जप मै क्यो और किसलिए कर रही हूं ऐसा मन में कोई विचार नहीं था। राम भगवान हैं राम का नाम लेना है। राम राम नाम श्री राम बाबा हनुमानजी को सुनाती बाबा हनुमानजी राम नाम से खुश होंगे।
मन्त्र को मोन करने लगी मोन आत्म ज्ञान का केंद्र है मौन जप में हमें जीभ को हिलाना नहीं है। मौन जप मे अन्दर के दर्शन है।
मन्त्र जप करते हुए मस्तक पर प्रकाश पुंज चमकने लगा। अन्दर कुछ बदलाव आ गया
परमात्मा हमारे अन्दर बैठा है मन्त्र जप कभी भी रूके नहीं मृत्यु के साथ मन्त्र हमारे अन्दर से निकले। मन्त्र को हम अपने अन्तर्मन मे स्थापित कर ले। हर किरया कर्म में नाम जप मन्त्र जप होता रहे। परमात्मा का नाम हम हर समय ले सकते हैं। परमात्मा के नाम में आपका प्रेम जाग्रत तभी होगा जब आप नाम भगवान को अपने अन्तर्मन मे बिठाओगे ।हमे परमात्मा का नाम समाज को दिखाने के लिए नहीं लेना है। हमे परमात्मा के नाम में सम्बन्ध बनाना है। परमात्मा हमारे अन्दर बैठा है। हम मन्त्र जप के अभ्यस्त हो जाते हैं तब मन्त्र को हम कार्य कर्म करते हुए भोजन करते हुए स्नान करते हुए अपने आप होने लगता है। हमारे पास अधिक कार्य है तब आप शरीर के किसी भी अंग हाथ की ऊंगली पैर के अंगुठे को मन्त्र जप के लिए बोल सकते हैं। आप कार्य कर रहे हैं मन्त्र जप हाथ की ऊंगली या पैर का अंगुठा हिल हिल कर कर रहा है। आप बाजार घुम कर आते हैं भोजन कर रहे हैं आप अन्दर झांक कर देखते हैं नाम अन्दर से चल रहा है।
मन्त्र जप इस तरह से करते हैं तब हमें मन्त्र की ध्वनि सुनने लगती है। हम बोल कर जीभ हिलाकर मन्त्र करते हैं। तब हमे वस्तु में आस पास मन्त्र ध्वनि सुनाई देती है। भक्त को अपने आस पास कपड़े बरूश से रगङते हुए बरूश में से नाम ध्वनि खाना बनाते हुए पास मे रखी वस्तुओं से नाम ध्वनि सुनने लगती है । सोऐ हुए मन्त्र जप करती मुझे ऐसे लगता पैखे में नाम ध्वनि गुंज रही हैं। दिल खुश होता है। हम सुबह शाम दोपहर मन्त्र जप करते हैं तभी मन्त्र जप सुनेगा। जब हम जीभ हिलाकर बोलकर मन्त्र जप करते हैं। तब हमे आसपास वस्तुओं से मन्त्र ध्वनि सुनाई देती है।आप जिस दिन गहरे मन्त्र से जुड़ेगे तभी आपको यह ध्वनि यह गुंज सुनाई देती है। आप मन्त्र जप नही करते हो तब आपको यह ध्वनि सुनाई नहीं देती है। रोम रोम से मन्त्र ध्वनि निकलती हुई सुनाई देती है। मन्त्र ध्वनि सुनते हुए ध्यान मार्ग में प्रवेश करते हैं। साधक के अन्दर अद्भुत प्रभु प्राण नाथ का प्रेम समा जाता है। परम पिता परमात्मा साधक को आनन्द से तृप्त करना चाहते हैं। साधक जानता है यदि आनंद को प्राप्त करती हूँ। तब मार्ग में यही पङाव आ सकता है। भक्त ध्वनि के अधीन नहीं होता है। हमारे अन्दर मन्त्र जप से ऊर्जा बढने लगती है।
हम परम पिता परमात्मा को जपे तो ऐसे जपे हमारे हर अगं से परमात्मा का नाम निकलने लगे। हरिदास जी प्रतिदिन तीन लाख जप करते थे। परमात्मा प्रकाश का पूंज है ।जितना हम जपते हैं। हमारे मस्तक के प्रकाश से मुर्ति में भगवान् दिखाई देते हैं। प्रकाश अधिक बढ जाता है तब मुर्ति बोलती है।जैसे मीराबाई भगवान् से बात करती थी।
भगवान का नाम अन्तर्मन मे चल रहा है। भक्त भगवान को सांस सांस से सिमरता हैं भक्त के दिल में इतनी विरह वेदना होती कि कैसे भगवान से मिल लु ।बस भगवान को नमन वन्दन के साथ प्रार्थना करता है फिर राम राम राम राम जपता है। भक्त के दिल में एक ही आरजु होती है भगवान का बनना। भक्त एक सांस में एक माला जप करना चाहता है ऐसे भगवान को पुकारते हुए बाहर नाम ध्वनि सुनाई देने लगतीं है। वस्तु विशेष से राम राम राम राम की ध्वनि लगातार बज रही है। टैप चल रहा है बहते हुए जल से राम राम राम राम की धुन बज रही है। जो भी आवाज होती है उसमें नाम ध्वनि बज रही है। नाम ध्वनि जितनी गहरी सुनाई देती है उतनी ही दिल की विरह वेदना बढती जाती है। बाहर की नाम ध्वनि कभी बजती और फिर बन्द हो जाती है। ऐसे में वह ध्वनि पकङाई में नहीं आती है।एक बार भक्त को ऐसा लगता है जो मैं जिस तरह से भगवान को भजती हू कथा करती हू ग्रथं पढती हू भगवान का सिमरण करते हुए भी पुरणता दिखाई नहीं देती है। भक्त सोचता है कि यह मार्ग दृढ नहीं है। और भक्त सबकुछ छोड़ देता है। कुछ समय मै मौन धारण कर लेता है । सब संगी साथी को छोड़कर भगवान को मन ही मन भजती रहती हूं। घर में सब कार्य वैसे ही होते बस भगवान को अन्तर्मन से भजती ।ऐसे एक वर्ष तक भगवान को भजते हुए ।नाम ध्वनि पुरण रूप से अन्दर बजने लगती है बाहर और भीतर दो ध्वनि में समझ नहीं आती थी कि किस ध्वनि पर दृष्टि टिकाऊ। धीरे-धीरे बाहर और भीतर की ध्वनि एक हो जाती है नाम ध्वनि चल रही है। नाम ध्वनि एक बार भक्त के अन्दर बजने लगती है। तब शरीर कुछ भी करे अन्तर्मन मे नाम ध्वनि बजती रहती है। भक्त की नज़र अन्तर्मन की नाम पर टिकती है तभी भक्त अन्दर की तरफ मुङता है। भक्त का दिल भगवान का बन जाता है। भक्त जानता है यह भगवान नाथ श्री हरी की विशेष कृपा है भक्त अपने भावो को समेट लेता है। वह जानता है बाहरी संसार में ये दिखाने का नहीं है मोन हो जाता है वाणी से भगवान को पुकारने पर पुकार में गहराई नहीं आ सकती है क्योंकि आनन्द प्रकट हो जाता है भक्त के दिल की वेदना होती है कि एक पल के लिए भी स्वामी से बिछडन न हो। इस लिए भक्त भगवान को मन ही नमन वन्दन और भगवान के नाम का सिमरण करता है। भक्त का दिल भगवान मे खो जाना चाहता है तब भगवान नाम अन्दर की दृष्टि को भगवान पर टिका देता है। बाहर की दृष्टि में संसार होता है अन्दर की दृष्टि निर्मल और स्वच्छ है। नाम जप से हमारा विश्वास दृढ होता है विस्वास की दृढ़ता में हम सफलतापूर्वक आगे कदम बढ़ाते हुए आत्मनिर्भर बनते हैं हमारे अन्दर का आत्मविश्वास आत्म तत्व की ओर ले जाता है। हम अपने आप से परिचित होते हैं हम जान पाते हैं आत्म शांति
भगवान नाम की ध्वनि के उजागर करने के लिए हमे प्रातः काल जैसे ही नींद से जागे। ध्यान अन्तर्मन की और ले जाओ। भगवान ने हमें दो कान दिए हैं एक कान हमारा अन्तर्मन की ध्वनि सुनने पर टिका दे। दुसरे कान से आप जगत की सुने। परम पिता परमात्मा ने हमे दो मन दिए हैं । हमे भगवान ने नैन दिए हैं कान अन्तर्मन का सुनने लगते तब नयन बाहरी संसार को देखना नहीं चाहते हैं।दृष्टि आत्म तत्व के चिन्तन पर टिक जाती है। नैन अन्दर की ओर होंगे तब संसार की रंगीनता से आकर्षित नहीं होओगे। सम भाव होगा। हम भगवान को मन्दिर और मुर्ति में खोजना छोड़ देंगे। बस सम भाव से नमन करेंगे। मन और अन्तर्मन एक मन को नाम ध्वनि में स्थित कर दे। अन्तर्मन की स्थिरता में गहराई हैं। अन्तर्मन की स्थिरता की तरफ दृष्टि टिका कर रखे। बाहर का कितना ही प्राप्त करो पुरण नहीं हो सकते हैं। तृप्ति और त्याग अन्तर्मन से प्रकट होगा। बाहर से भजते हुए हम प्राप्त करना चाहते हैं। अन्तर्मन का अध्यात्म कहता है किसको प्राप्त करोगे। जिस चीज को प्राप्त करना चाहते हो वह अन्दर झांक कर देखोगे तब जान पाओगे। मै था तब हरि नहीं मै नहीं तब सबकुछ हरि है।
अन्दर की नाम ध्वनि प्रात काल स्थिर हो जाती है तब दिन भर बजती रहती है। भक्त के अन्दर सम भाव का समावेश समाने लगता है। अन्तर्मन की नाम ध्वनि जितनी दृढ होती जाएगी। उतनी ही भक्त के अन्दर का संसार शान्त होता जाएगा। कोई कुछ भी करे मौन रहोगे।नाम ध्वनि की गहराई से आत्म विश्वास को strong होंगा
यह स्थिर आनंद है।आनन्द हैं इसे ग्रहण कोन करे इन्द्रिया आनंद ग्रहण करती है। यहां भक्त धीरे-धीरे शरीर रूप से अलग होने लगता है। तब समरूप होने लगता है।आनन्द को प्राप्त करने वाला हरि में समा जाता है।
मेरे पास बाहर का कुछ भी नहीं है मैंने जीवन मे करते हुए जो भाव विचार प्रकट हुए उन्हे शब्दों में पिरोया है।जय श्री राम अनीता गर्ग












