किसे कहते है आभामंडल-औरा -प्रभामंडल-प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति
औरा का लेटीन भाषा मे अर्थ बनता है “सदैव बहने वाली हवा”। औरा इसी अर्थ के मुताबिक यह सदैव गतिशील भी होती है। विभिन्न देशो मे इसे विभिन्न नामो से जाना जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित नाम औरा, प्रभामंडल, या ऊर्जामंडल है।
प्राणियों का शरीर दो प्रकार का होता है
1. स्थूल शरीर 2. शूक्ष्म शरीर
स्थूल शरीर जन्म के बाद जो शरीर सामने दिखाई देता है, वह स्थूल शरीर होता है, इसी स्थूल शरीर का नाम दिया जाता है, इसी के द्वारा संसारी कार्य किये जाते है, इसी शरीर को संसारी दुखों से गुजरना पडता है और जो भी दुख होते हैं | भौतिक शरीर के अतिरिक्त प्रकाषमय और ऊर्जावान एक शरीर और होता है जिसे सूक्ष्म शरीर अथवा आभामण्डल { औरा }कहते हैं। हमारे शरीर के चारों तरफ जो ऊर्जा का क्षेत्र है वही सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर ने हमारे स्थूल शरीर को घेर रहा है। इसे जीवनी शक्ति या प्राण शक्ति भी कहते हैं इसका कार्य सारे शरीर में एवं सूक्ष्म नाडियों में वायु प्रवाह को नियंत्रित करना तथा सूक्ष्म ऊर्जा प्रदान कर शरीर को क्रि्रयाशील रखना है प्राण के निकल जाने पर शरीर मृत हो जाता है एवं प्राण के कमजोर होने पर शरीर कमजोर होता जाता है तथा बीमारियों से लडने की शक्ति समाप्त होने लगती है।
अपने इष्ट देव की मूर्ति या पोस्टर सभी मनुष्य अपने घर या कार्यस्थल पर अवश्य रखते हैं। इन मूर्ति या पोस्टर में जो भी देव हैं उनके मस्तिष्क के बराबर पीछे की ओर सप्तरंगीय ऊर्जा तरंगे निष्कासित होती रहती है व एक गोलीय चक्र सा प्रतिबिंब रहता है वही उनका आभामण्डल या औरा चक्र होता है। यह आभामण्डल जीव मात्र- मनुष्य, जीव-जंतु, पशुओ, पेड़-पौधे, पदार्थों के इर्द-गिर्द एक प्रकाश पुंज रहता है। प्रत्येक मनुष्य का अपना एक आभामण्डल या औरा होता है। जिसके कारण से ही दूसरे अन्य मनुष्य उससे प्रभावित होते हैं। यह आभा मनुष्य के संपूर्ण शरीर से सतरंगी किरणों के रूप में अंडाकार रूप में उत्सर्जित होती रहती है।
हमारे शास्त्रों में वर्णित जो तथ्य हैं जैसे तुलसी की पूजा, पीपल की पूजा, ब़ड का महत्व, सफेद आक़डे का महत्व, गाय को पूजनीय बताना, आखे, नमक का महत्व आदि कई बातें सहज किवदन्तियां या कथानक की बातें नहीं हैं, ये सब वैज्ञानिक सत्य पर आधारित हैं। इन सबकी ऑरा ऊर्जा इतनी अधिक है कि ये सभी हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं। शारीरिक और मानसिक तौर पर हमें स्वस्थ रख सकते हैं। इनके सान्निध्य में आभा मण्डल का विकास होता है। वृक्षों में शास्त्रोक्त जिनका महत्व दर्शाया गया है जैसे ब़ड इसकी ऑरा एनर्जी 10.1 मीटर है, कदम्ब पे़ड की 8.4 मीटर है, तुलसी की 6.11 मीटर, नीम की 5.5 मी., आंवला की 4.3 मी., आम की 3.5 मी. पीपल की 3.5 मी., फूलों में ओलिएन्डर 7.2 मी., कमल 6.8 मी., गुलाब 5.7 मी., मेरीगोल्ड 4.7 मी., लिलि 4.1 मी. एवं आश्चर्यजनक तौर पर सफेद आक़डे के फूल (जो शिव भगवान को चढ़ाए जाते हैं) की ऑरा 15 मी., गाय के घी की 14 मी., गोबर की 6 मी., पंचकर्म की 8.9 मी., गाय के दूध की 13 मी., गाय दही की 6.9 मी., गाय की पूजनीयता स्पष्ट है। इसी तरह पूजन सामग्री में नारियल का महत्व इसकी ऑरा एनर्जी 10.5 मी. होने से है। अक्षत चावल 4.9 मी., कपूर 4.8 मी., क्रिस्टल नमक 4.8 मी., सफेद कोला 8.6 मी., कुमकुम 8 मी., अगरबत्ती सुगंध के अनुसार 5-15 मी.। जिनका महत्व हमारे दैनिक जीवन में है उन सबका ऑरा एनर्जी अधिक होने की वजह से उन्हें धर्मशास्त्रों में उल्लेखित किया है।
आभा मंडल { औरा } का बीमारियो से सम्बन्ध
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वास्तव मे यह प्राणी के शरीर से निकलने वाली प्रज्वलित शक्ति किरणे है जिसकी ऊर्जा हर व्यक्ति में रहती है। इस प्रभामंडल का संचालन हमारे शरीर के 7 चक्र करते है, और ये चक्र हमारी मानसिक शारीरिक, भावनात्मक इत्यादि कई कडियो से जुडकर औरा के रूप मे हमारे वर्तमान वक्त के दर्पण को तैयार करते है। जिसे देखकर और उसमे जरूरत के अनुसार बदलाव लाकर हम आने वाली, या तत्कालिक समस्याओ से निजात पा सकते हैं।
इसको संचालित करने वाले चक्र हैं
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1. मूलादार चक्र- इसका रंग लाल है और इसका सम्बन्ध हमारी शारीरिक अवस्था से होता है, इस चक्र के ऊर्जा तत्व मे असंतुलन , रीढ की हड्डी मे दर्द होना, रक्त और कोशिकाओ पर तथा शारीरिक प्रक्रियाओ पर गहरा असर डालता है।
2.स्वधिष्ठान चक्र- इसला रंग नारंगी है और इसका सीधा संबन्ध प्रजनन अंगो से है, इस चक्र के ऊर्जा असंतुलन के कारण इंसान के आचरण, व्यवहार पर असर पडता है।
3.मणिपुर चक्र- इसका रंग पीला है और यह बुद्धि और शक्ति का निर्धारण करता है, इस चक्र मे असंतुलन के कारण व्यक्ति अवसाद मे चला जाता है, दिमागी स्थिरता नही रह जाती।
4. अनाहत चक्र- इसका रंग हरा है और इसका संबन्ध हमारी प्रभामंडल की शक्तिशाली नलिकाओ से है, इसके असंतुलित होने के कारण, इसान का भाग्य साथ नही देता, पैसो की कमी रहती है, दमा, यक्ष्मा और फेफडे से समबन्धित बिमारीयों से सामना करना पड सकता है।
5. विशुद्ध चक्र -इसका रंग हल्का नीला है और इसका सम्बन्ध गले से और वाणी से होता है, इसमे असंतुलन के कारण वाणी मे ओज नही रह पाता, आवाज ठीक नही होती,टांसिल जैसी बीमारियो से सामना करना पडता है।
6. आज्ञा चक्र- गहरा नीले रंग का ये चक्र दोनो भौ के बीच मे तिलक लगाने की जगह स्थित है, इसका अपना सीधा सम्बन्ध दिमाग से है, इस चक्र को सात्विक ऊर्जा का पट भी मानते है, मेरा ये मानना है कि अगर परेशानियाँ बहुत ज्यादा हो तो सीधे आज्ञा चक्र पर ऊर्जा देने से सभी चक्रो को संतुलन मे लाया जा सकता है।
7. सहस्रार चक्र- सफेद रंग से सौ दलो मे सजा ये चक्र सभी चक्रो का राजा है, कुडलनी शक्ति जागरण मे इस चक्र की अहम भूमिका है, आम जिन्दगी मे यह चक्र कभी भी किसी मे सम्पूर्ण संतुलन मे मैने नही देखा है, वैसे ये पढने मे आया है कि, जिस व्यक्ति मे यह चक्र संतुलित हो वो सम्पूर्ण शक्तियों का मालिक होता है।
प्रभामंडल को ऊर्जामान करके उपस्थित सभी विकारो को दूर किया जा सकता है। इन्सान की व्यक्तिगत अच्छाइयों, कर्मो से आभा मण्डल विकसित होता है। सद्पुरूषों, महापुरुषों , विशेषज्ञों के आभा मण्डल 30 से 50 मीटर तक पाये गये हैं।
आभा मंडल की कमी के कारण
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हमारे जीवन में भौतिक सुख-सुविधा के साधनों में- मोबाईल, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक्स साधन है ये एक मैग्नेटिक ऊर्जा का निर्माण कर विकिरण पैदा करते हैं। मोबाईल, फ्रीज, एसी, टी.वी., कंप्यूटर आदि अन्य सभी से नेगेटिव ऊर्जा निकलती है जो हमें नुकसान पहुंचाती रहती है। यह सत्य है कि आभामण्डल, स्प्रिट एनर्जी आध्यात्मिक ऊर्जा व नकारात्मक ऊर्जा से यह तीसरी मैग्नेटिक ऊर्जा का प्रभाव मन्द गति होने की वजह से हमें प्रतीत नहीं होता है। धीरे-धीरे इस ऊर्जा का प्रभाव हमारे
शरीर व मन-मस्तिष्क पर होता रहता है।इनके अलावा भी घर, आॅंफिस, दुकान, फैक्ट्री में भी नकारात्मक ऊर्जा का एक कारण वास्तु दोष भी है। यदि भवन, आॅंफिस, व्यवसाय स्थल वास्तु के नियमों में नहीं है तो उससे भी नेगेटिव ऊर्जाओं का प्रभाव बना रहता है।काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार छः मनुष्य के शत्रु हैं। व्यक्ति द्वारा इन छः कर्मों में संलग्न होने से आभामण्डल क्षीण या कम होता जाता है। हम निरंतर एक दूसरे को भला बुरा कहते रहते है। एक दूसरे को डाँटते-फटकारते रहते है। निरंतर अपने नकारात्मक भाव व विचार क्रोध-आक्रोश भय चिंता,विवशता आदि-आदि दूसरों को संप्रेषित करते रहते है। आभामण्डल की ऊर्जा तरंगं टूट जाती है तथा आभामण्डल के कमजोर होते ही व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। एक साधारण इंसान का औरा या आभामण्डल 2 से 3 फीट तक माना जाता है। आभामण्डल का आवरण इस माप से नीचे जाने पर व्यक्ति मानसिक व भौतिक रूप से विकृत हो जाता है या टूटने लगता है। इस स्थिति में उसका आत्म बल भी कम हो जाता है। व्यक्ति की यह स्थिति जीवन में कष्ट या दुःख वाली कहलाती है। मृत व्यक्ति का औरा 0.5 या 0.6 रह जाता है।
आभा मण्डल सीधा अपने कर्मो से जु़डा रहता है। काम-क्रोध, मोह-माया, झूठ आदि जो मानव स्वभाव की प्रकृति के विपरीत हैं, उनमें संलग्न होने से आभा मण्डल क्षीण हो जाता है। एक साधारण स्वस्थ इंसान जिसका आभा मण्डल 2.8 से 3 मीटर तक माना जाता है, इससे भी नीचे जाने लगता है तब मानसिक एवं भौतिक तौर पर बीमार होकर मृत्यु की तरफ बढ़ता रहता है। तब मृत्यु पर ऑरा 0.9 मीटर जो मिट्टी या पंचभूत की अवस्था में पहुंच जाता है। आभा मण्डल के विकास के लिए हम धार्मिक स्थानों पर नियमित पूजा-पाठ, मन्त्रोच्चार, सत्संग आदि से सकारात्मक होते जाते हैं एवं जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आने लगता है। वहीं गलत साहित्य, आधुनिक तथाकथित नाच-गाने, फास्टफूड, कल्चर से negative वातावरण, negative विचार,विपरीत आहार से सब सीधे आपका आभा मण्डल का ह्रास करते हैं इसलिए यह घटता-बढ़ता रहता है। अगर आप अपना आभा मण्डल विकसित करते हैं तो सही समय पर सही निर्णय लेकर सही सलाहकार ढूंढ लेंगे एवं सही राय से आप सही दिशा में कार्य करेंगे।
What is called aura-aura-prabhamandal-pranaphakti or electric power
Aura means “always flowing air”. Aura is always dynamic according to this meaning. In different countries it is known by different names, but the most prevalent name is Aura, Purashan, or Energy.
The body of creatures is of two types 1. gross body 2. Shooty body
स्थूल शरीर जन्म के बाद जो शरीर सामने दिखाई देता है, वह स्थूल शरीर होता है, इसी स्थूल शरीर का नाम दिया जाता है, इसी के द्वारा संसारी कार्य किये जाते है, इसी शरीर को संसारी दुखों से गुजरना पडता है और जो भी दुख होते हैं | भौतिक शरीर के अतिरिक्त प्रकाषमय और ऊर्जावान एक शरीर और होता है जिसे सूक्ष्म शरीर अथवा आभामण्डल { औरा }कहते हैं। हमारे शरीर के चारों तरफ जो ऊर्जा का क्षेत्र है वही सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर ने हमारे स्थूल शरीर को घेर रहा है। इसे जीवनी शक्ति या प्राण शक्ति भी कहते हैं इसका कार्य सारे शरीर में एवं सूक्ष्म नाडियों में वायु प्रवाह को नियंत्रित करना तथा सूक्ष्म ऊर्जा प्रदान कर शरीर को क्रि्रयाशील रखना है प्राण के निकल जाने पर शरीर मृत हो जाता है एवं प्राण के कमजोर होने पर शरीर कमजोर होता जाता है तथा बीमारियों से लडने की शक्ति समाप्त होने लगती है। अपने इष्ट देव की मूर्ति या पोस्टर सभी मनुष्य अपने घर या कार्यस्थल पर अवश्य रखते हैं। इन मूर्ति या पोस्टर में जो भी देव हैं उनके मस्तिष्क के बराबर पीछे की ओर सप्तरंगीय ऊर्जा तरंगे निष्कासित होती रहती है व एक गोलीय चक्र सा प्रतिबिंब रहता है वही उनका आभामण्डल या औरा चक्र होता है। यह आभामण्डल जीव मात्र- मनुष्य, जीव-जंतु, पशुओ, पेड़-पौधे, पदार्थों के इर्द-गिर्द एक प्रकाश पुंज रहता है। प्रत्येक मनुष्य का अपना एक आभामण्डल या औरा होता है। जिसके कारण से ही दूसरे अन्य मनुष्य उससे प्रभावित होते हैं। यह आभा मनुष्य के संपूर्ण शरीर से सतरंगी किरणों के रूप में अंडाकार रूप में उत्सर्जित होती रहती है। हमारे शास्त्रों में वर्णित जो तथ्य हैं जैसे तुलसी की पूजा, पीपल की पूजा, ब़ड का महत्व, सफेद आक़डे का महत्व, गाय को पूजनीय बताना, आखे, नमक का महत्व आदि कई बातें सहज किवदन्तियां या कथानक की बातें नहीं हैं, ये सब वैज्ञानिक सत्य पर आधारित हैं। इन सबकी ऑरा ऊर्जा इतनी अधिक है कि ये सभी हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं। शारीरिक और मानसिक तौर पर हमें स्वस्थ रख सकते हैं। इनके सान्निध्य में आभा मण्डल का विकास होता है। वृक्षों में शास्त्रोक्त जिनका महत्व दर्शाया गया है जैसे ब़ड इसकी ऑरा एनर्जी 10.1 मीटर है, कदम्ब पे़ड की 8.4 मीटर है, तुलसी की 6.11 मीटर, नीम की 5.5 मी., आंवला की 4.3 मी., आम की 3.5 मी. पीपल की 3.5 मी., फूलों में ओलिएन्डर 7.2 मी., कमल 6.8 मी., गुलाब 5.7 मी., मेरीगोल्ड 4.7 मी., लिलि 4.1 मी. एवं आश्चर्यजनक तौर पर सफेद आक़डे के फूल (जो शिव भगवान को चढ़ाए जाते हैं) की ऑरा 15 मी., गाय के घी की 14 मी., गोबर की 6 मी., पंचकर्म की 8.9 मी., गाय के दूध की 13 मी., गाय दही की 6.9 मी., गाय की पूजनीयता स्पष्ट है। इसी तरह पूजन सामग्री में नारियल का महत्व इसकी ऑरा एनर्जी 10.5 मी. होने से है। अक्षत चावल 4.9 मी., कपूर 4.8 मी., क्रिस्टल नमक 4.8 मी., सफेद कोला 8.6 मी., कुमकुम 8 मी., अगरबत्ती सुगंध के अनुसार 5-15 मी.। जिनका महत्व हमारे दैनिक जीवन में है उन सबका ऑरा एनर्जी अधिक होने की वजह से उन्हें धर्मशास्त्रों में उल्लेखित किया है।
Abha Mandal {Aura} related to diseases , In fact, it is the ignited power rays emanating from the body of the creature, whose energy lives in every person. This halo is operated by 7 cycles of our body, and these cycles prepare the mirror of our present time in the form of aura by connecting our mental physical, emotional etc. By seeing this and by changing it according to the need, we can get rid of the coming, or immediate problems.
It is cycle to operate , 1. Muladar Chakra- Its color is red and it is related to our physical state, imbalance in the energy element of this cycle, pain in the spinal cord, on blood and cells and physical processes have a profound effect. 2. The script cycle- This color is orange and it is directly related to reproductive organs, due to the energy imbalance of this cycle, the behavior of human beings affects the behavior. 3.Manipur Chakra- Its color is yellow and it determines intelligence and power, due to imbalance in this cycle, the person goes into depression, there is no brain stability. 4. Anahata Chakra- Its color is green and it is related to the powerful tubes of our halo, due to its unbalanced, the fate of the Isan is not supported, there is a lack of money, you may have to face diseases related to asthma, tuberculosis and lungs. 5. Pure Chakra -Its color is light blue and it is related to the throat and speech, due to imbalance in it, the voice is not able to be cured, the voice is not cured, you have to face diseases like Tansil. 6. Command Chakra- This cycle of dark blue color is located in the middle of both the eye, it is directly related to the brain, it also consider this cycle as a satvic energy pat, I believe that if the troubles are too much, then all the cycles can be brought to balance by giving energy directly on the command cycle. 7. Sahasra Chakra- This cycle is the king of all the chakras decorated with white color, this chakra has an important role in Kudalani Shakti Jagran, in the common life, I have never seen this chakra in all balance in anyone, by the way, it has come to read that, the person in which this chakra is balanced is the owner of the entire powers. All the disorders present by energetic to the halo can be removed. The individual goodness and deeds of human beings develop the aura. Aura Mandal of Sadpurash, great men, experts has been found from 30 to 50 meters.
Due to lack of aura mandal , In our life, in the means of material amenities- mobile, electric and electronics are the means, they create radiation by producing a magnetic energy. Mobile, freeze, AC, TV, computer etc. come out of negative energy from all others, which keeps harming us. It is true that this third magnetic energy does not appear to be the impact of the third magnetic energy from the aura, spiritual energy and negative energy. Gradually the effect of this energy is our
Body and mind and mind continue to happen on the brain. Apart from these, Vastu defects are also a reason for negative energy in home, office, shop, factory. If the building, office, business place is not in the rules of Vastu, then the effect of negative energies remains. Kam, anger, fascination, greed, item, ego are enemies of six human beings. Due to attachment to these six deeds by the person, the aura is decaying or decreasing. We continue to call each other good and bad. They scold each other. Continuously, their negative feelings and thoughts, anger-anger, fear, anxiety, compulsion, etc.-are conveyed to others. The energy waves of the aura are broken and the power to think and understand in the person as soon as the aura is weakened. The aura or aura of an ordinary person is considered from 2 to 3 feet. The cover of the aura is mentally and physically distorted or breaks down when it goes down from this measure. In this situation, his self -strength also decreases. This condition of a person is called suffering or sorrow in life. The dead person’s aura remains 0.5 or 0.6.
Aura Mandal is directly related to its deeds. Aura Mandal is reduced by being attached to the nature of human nature, which is contrary to the nature of human nature. An ordinary healthy person whose aura is considered to be considered from 2.8 to 3 meters, then it starts going down, then it continues to move mentally and physically and moves towards death. Then on death, Ara 0.9 meters which reaches the state of soil or panchabhuta. For the development of Aura Mandal, we become positive with regular worship, mantra, satsang etc. at religious places and qualitative changes in life start. At the same time, wrong literature, modern so-called dance-song, fastfood, culture from negative environment, negative thoughts, all directly decline your aura board from the opposite diet, so it keeps on decreasing. If you develop your aura board, then after taking the right decision at the right time, you will find the right advisor and you will work in the right direction with the right opinion.












