आत्मा तु चेत जा

ऐ आत्मा! ये शरीर तेरा घर नहीं है।  ऐ आत्मा! तुझे परम तत्व परमात्मा से साक्षात्कार करना है। ऐ आत्मा, तू इस शरीर को अपना घर मान बैठी है। यह किराए का घर है। इसका मालिक परमेश्वर है। आत्मा तू चेतन का चिंतन कर। चेतन अन्तःकरण में है। तू सांसो का किराया देकर चुका रही है। आत्मा तुझे परमेश्वर श्री हरि के पास जाना है। आत्मा तू शरीर नहीं है, निराकार है। तू खाती, पीती या सोती नहीं है। तू ज्योति स्वरूप है। तुझमें सूर्य सा तेज है। तुझे सर्व अंतर्यामी सर्वेश्वर जगत के ईश्वर, जो सम्पूर्ण जगत की आत्मा है, उनमें समाना है।  आत्मा तू निराकार परमात्मा में समाकर एक रूप हो । आत्मा तू चेतन हैं। आत्मा तू चेत जा।  तुझे शरीर धारण की क्रिया से ऊपर उठना हैं । आत्मा तू चैतन्य है। तुझे परमात्मा में समाना है। आत्मा तेरी यात्रा परमात्मा से एकाकार की यात्रा है। आत्मा तू सुख-दुख और भूख-प्यास के अधीन नहीं है। आत्मा तू सर्वशक्तिमान है। तुझमे ईश्वर का निवास है। ऐ आत्मा, इस शरीर का तुझे त्याग करना है। यह तेरा घर नहीं है।
हमारी आत्मा परमात्मा का ही अंश है। आत्मा का ध्यान करेंगे, तो परमात्मा का ही ध्यान होगा। आत्मा  ईश्वर का ही अंश है, यानी ये भी ईश्वर ही है। ‘आत्मा ईश्वर है’ का तीन चार वर्ष तक चिंतन करने पर सब आत्म स्वरूप हो जाता है। सब कुछ ईश्वर का विधान है। मेरा कुछ नहीं है। आत्म तत्व के चिंतन में हमारी इंद्रियां अंतर्मुखी हो जाती है। अंतर्मुखी से तात्पर्य है कि हमारे कान बाहर का सुनते हैं। आंख बाहरी जगत के दृश्य को देखकर क्रिया करते हैं। कान को अंतर्मन की ध्वनि से तृप्ति मिलने लगती है, तब बाहर के शब्दों का मनुष्य के मन पर प्रभाव नहीं होता है। अंतर्मन की ध्वनि के रस से कान तृप्त है। नासिका और अन्य इन्द्रियों को अंतर्मन के रस के सामने बाहरी जगत का रस फीका लगता है। आत्मा को ज्योतिष शास्त्र में सूर्य से सम्बद्ध किया गया है। क्यों ? सूर्य का अर्थ है, जो स्वयं प्रकाशमान है और ज्योतिष के और किसी भी ग्रह में स्वयं का प्रकाश नहीं होता।
यदि तू सच्ची शांति चाहता है, तो स्वामी भगवान नाथ के पास जा। वो तुम्हे जाते ही गले से लगा लेंगे। आत्मा को समझा। तू यह ना सोच कि आत्मा परमात्मा से मिलने के लिए तुझे अन्य कोई मार्ग दिखाएगा। आत्मा तुझे स्वयं ही चलाएगा है। कंटीले रास्तों पर अकेले ही चलना पड़ता है। आत्मा तुझे, शरीर को मन को और बुद्धि को अपने साथ समेट कर रखना है। हम जीवन में आत्म तत्व का चिंतन किए बैगर शरीर तत्व से ऊपर उठ नहीं सकते हैं। हम जिस राम में समा जाना चाहते हैं, वह आत्मा राम हमारे अंदर ही बैठे हैं। इस शरीर से कर्म करते हुए साधना करते हैं, तब हमें शरीर के होने का भाव खत्म हो जाता है। हमें जीवित ही आत्मा का परमात्मा से मिलन महसूस होने लगता है । यह सब मैंने बैठकर ध्यान नहीं लगाया है। बैठ कर माला जप नहीं किया है।  ईश्वर का मन ही मन स्मरण और चिंतन किया है। स्मरण का सम्बन्ध दिल से है।  दिल में जो परमात्मा बैठा है, उसे अंदर झांक कर देखती, तो वह आत्मा राम राम धुन ईश्वर की धुन बजा रहा होता। साधना और भगवान की भक्ति मन में दिल में बिठानी होती है। आप मन में दिल में राम नाम को बिठा लेते हैं, तब यह ध्वनि हमारे रोम रोम में समा जाती है। ध्वनि को अंदर बिठाने पर आत्म तत्व को एक दो अंश समझते हैं।  सर्वरूप परमात्मा का आभास होने लगता है।

जय श्री राम अनीता गर्ग

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