वृंदावन में एक बांसुरी बनाने वाला वृद्ध रहता था। हर दिन वह नई बांसुरी गढ़ता, पर कोई भी वैसी धुन नहीं देती थी जैसी वह चाहता था। एक दिन थककर उसने कहा — कृष्ण, तुम ही बताओ, कौन-सी बांसुरी तुम्हें सबसे प्रिय है?
रात को स्वप्न में राधा और कृष्ण प्रकट हुए। कृष्ण मुस्कुराए और बोले —
जो बांसुरी भीतर से खोखली हो जाती है, वही मेरे अधरों पर स्थान पाती है।
राधा ने जोड़ा — “और जो अहंकार छोड़ देती है, वही सच्चा संगीत बनती है।
वृद्ध ने सुबह समझ लिया — असंतुलन बाहर नहीं, भीतर था। उसने क्रोध, अधीरता और तुलना छोड़ दी। धीरे-धीरे उसकी हर बांसुरी में मधुर स्वर गूँजने लगा, और लोग कहने लगे — यह बांसुरी नहीं, राधा-कृष्ण का आशीर्वाद है।
उसने कहा — “अब समझा, जब मन राधा की धैर्यता और कृष्ण की लय में संतुलित होता है, तभी जीवन संगीत बनता है।”
दुर्लभ राधा-कृष्ण मंत्र:
“राधा-कृष्ण प्रणय-युगलं नमामि।”
अर्थ: मैं राधा और कृष्ण के उस दिव्य युगल को नमन करता हूँ, जो प्रेम, धैर्य और संतुलन के अद्वितीय प्रतीक
शिक्षा :-
जीवन में हर कार्य का अपना समय है। राधा की तरह प्रतीक्षा करें, कृष्ण की तरह कर्म करें — तब परिणाम स्वयं मधुर बन जाता है।
शाम को जब वृद्ध बांसुरी बजाता, तो ऐसा लगता मानो हवा भी ठहर गई हो।
वह मुस्कुराता और कहता — अब मैं नहीं बजाता, राधा-कृष्ण मेरे माध्यम से संगीत रचते हैं।













