दोहा: सदा पापी से पापी को तुम भव सिंदु तारी हो |
कश्ती मझधार में नैया को भी पल में उभारी हो ||
ना जाने कोन ऐसी भूल मेरे से हो गयी मैया |
तुमने अपने इस बालक को मैया मन से विसारी हो ||
बिगड़ी मेरी बनादे ए शेरों वाली मैया |
अपना मुझे बनाले ए मेहरों वाली मैया ||
दर्शन को मेरी अखियाँ कब से तरस रहीं हैं |
सावन के जैसे झर झर अखियाँ बरस रहीं हैं |
दर पे मुझे बुला ले, ए शेरों वाली मैया ||
आते हैं तेरे दर पे, दुनिया के नर और नारी |
सुनती हो सब की विनती, मेरी मैया शेरों वाली |
मुझ को दर्श दिखा दे, ए मेहरों वाली मैया ||स्वरलखबीर सिंह लक्खा
Doha: From always the sinner to the sinner, you are always sindu tari.
The boat should also be raised in the middle of the boat in a moment.
Don’t know why such a mistake happened to me, Maya.
You have spread this child of yours through your mind.
Badi Meri Banade-e-Sheron Wali Maiya |
Make your me a mehar wali maiya ||
Since when have my eyes been craving for Darshan.
Akhiyas are raining like a savanna.
Call me at the rate, a lion wali maiya ||
The men and women of the world come at your door.
You hear everyone’s request, my love for lions.
Show me the vision, A Mehron Wali Maiya || Swarlakhbir Singh Lakha