आध्यात्मिक महात्मा की पहचान


अध्यात्म में आज हर इंसान यह मानता है की उसे सब पता है और वो सबको अपना ज्ञान बांटना चाहता है उसे लगता है बड़े बड़े शब्द बोलकर ,सभी धार्मिक पवित्र ग्रंथों का प्रमाण देकर वो अपने ज्ञान को सही साबित कर सकता है और शब्दों के माया जाल में सबको फंसा सकता है पर जानकार जो स्वयं ईश्वरमय हो चुके होते हैं उन्हें कुछ भी कहने की जरूरत नहीं, ईश्वर का आनंद इतना भरपूर उस पर छा जाता है की शब्द गुम हो जाते है उसके शब्द शुक्राने से भर जाते है,आनंद ,प्रेम और मौन ही उसकी भाषा और अभिव्यक्ति बन जाते है।
उनका व्यक्तित्व चुंबक बन जाता है उनसे कोई दूर नहीं रह पाता है। उनका अस्तित्व इस असीम का अस्तित्व बन जाता है इसका वेग प्रेम बनकर प्रगट होता है हरेक जो उनके संपर्क में आता है वो असीम हो जाता है।
ऐसे महात्मा के शब्दो में करुणा, निश्छल प्रेम,शुक्र,दया के भाव ही सामने आते है वो शरीर की सीमाओं के पार रहता है वो अपने शारिरिक कर्तव्यों से विमुख नहीं होता पर वो इसमें लिप्त भी नहीं होता इसीलिए वो सामने होने के बावजूद पहचान में नहीं आता क्योंकि वो इतना साधारण होता है हम जैसा ही होता है उसे किसी के साथ की जरूरत नहीं होती वो इस ईश्वर के आनंद से परिपूर्ण होता है उसके नजदीक पहुंचते ही भाव शुद्ध हो जाते हैं,प्रेम से भर जाते हैं आनंद से शरीर पुलकित हो जाता है, शब्द खो जाते हैं वो स्वयं ईश्वरमय होता है और उसकी कृपा से ,उसकी दया से ईश्वरमय हुआ जा सकता है वो इस कुल अस्तित्व को ईश्वरमय ही देखता है और इसकी हर अवस्था का आनंद लेता है।
ऐसे आध्यात्मिक पुरुष जो जागृत है से ही इस संसार में रहने का असल मकसद समझ आता है जब यह ईश्वर प्रभु चाहता है तो वो प्रगट होता है अन्यथा ऐसे ही जीवन बिता कर इस संपूर्ण प्रभु में समा जाता है जो ढूंढते हैं और इस प्रभु से अरदास करते है उन्हे यह ईश्वर मौका देता है ऐसे पुरुष के समीप आने का ,इस अनूठे प्रेम को जानने का इस से सरोबार होने का पर फिर भी यह जरूरी नहीं की वो पहचाना जाए इसकी संभावना रहती है की उसका संग मिलने के बाद भी हमे यह ईश्वर की प्राप्ति न हो क्योंकि हम उसके शारीरिक संग के आनंद में ही खो जाएं उसी आनंद को सर्वप्रिय मानकर असल को प्राप्त ही न करें ।
इसलिए जाग जाइए ऐसे आध्यात्मिक महात्मा को ढूंढिए ,उससे इस ईश्वर को जानिए उसकी जीवनशैली आपको भ्रमित कर सकती है उससे पूछिए क्या वो इस परमसत्य से अवगत करा सकता है इस परमसत्य ईश्वर को जानकर इस संसार में कैसे जिया जाता है करम के प्रभाव से मुक्त कैसे हुआ जाता है वो स्वयं प्रकाश होता है आपको भी प्रकाशित कर देगा। ऐसे महात्मा को जान लेने के बाद भक्ति शुरू होती है क्योंकि आपका हर करम सेवा बन जाता है हर भाव परोपकार से पूर्ण हो जाता है आप ब्रह्म हो जाते है।
इस दयालु निराकार ब्रह्म से प्रार्थना और याचना है इसकी दया से सब जागृत हो ,सबका मन परपकार के भाव से भर जाएं ,सबमें प्रेम का भाव हो, सब आनंदित हो स्वस्थ रहे और सभी मुस्कुराते रहे और मुस्कुराहट ही बांटते रहे ।
मेरा सादर प्रणाम और अभिवादन स्वीकार कर मुझे अनुग्रहित करें।
धन्यवाद



अध्यात्म में आज हर इंसान यह मानता है की उसे सब पता है और वो सबको अपना ज्ञान बांटना चाहता है उसे लगता है बड़े बड़े शब्द बोलकर ,सभी धार्मिक पवित्र ग्रंथों का प्रमाण देकर वो अपने ज्ञान को सही साबित कर सकता है और शब्दों के माया जाल में सबको फंसा सकता है पर जानकार जो स्वयं ईश्वरमय हो चुके होते हैं उन्हें कुछ भी कहने की जरूरत नहीं, ईश्वर का आनंद इतना भरपूर उस पर छा जाता है की शब्द गुम हो जाते है उसके शब्द शुक्राने से भर जाते है,आनंद ,प्रेम और मौन ही उसकी भाषा और अभिव्यक्ति बन जाते है। उनका व्यक्तित्व चुंबक बन जाता है उनसे कोई दूर नहीं रह पाता है। उनका अस्तित्व इस असीम का अस्तित्व बन जाता है इसका वेग प्रेम बनकर प्रगट होता है हरेक जो उनके संपर्क में आता है वो असीम हो जाता है। ऐसे महात्मा के शब्दो में करुणा, निश्छल प्रेम,शुक्र,दया के भाव ही सामने आते है वो शरीर की सीमाओं के पार रहता है वो अपने शारिरिक कर्तव्यों से विमुख नहीं होता पर वो इसमें लिप्त भी नहीं होता इसीलिए वो सामने होने के बावजूद पहचान में नहीं आता क्योंकि वो इतना साधारण होता है हम जैसा ही होता है उसे किसी के साथ की जरूरत नहीं होती वो इस ईश्वर के आनंद से परिपूर्ण होता है उसके नजदीक पहुंचते ही भाव शुद्ध हो जाते हैं,प्रेम से भर जाते हैं आनंद से शरीर पुलकित हो जाता है, शब्द खो जाते हैं वो स्वयं ईश्वरमय होता है और उसकी कृपा से ,उसकी दया से ईश्वरमय हुआ जा सकता है वो इस कुल अस्तित्व को ईश्वरमय ही देखता है और इसकी हर अवस्था का आनंद लेता है। ऐसे आध्यात्मिक पुरुष जो जागृत है से ही इस संसार में रहने का असल मकसद समझ आता है जब यह ईश्वर प्रभु चाहता है तो वो प्रगट होता है अन्यथा ऐसे ही जीवन बिता कर इस संपूर्ण प्रभु में समा जाता है जो ढूंढते हैं और इस प्रभु से अरदास करते है उन्हे यह ईश्वर मौका देता है ऐसे पुरुष के समीप आने का ,इस अनूठे प्रेम को जानने का इस से सरोबार होने का पर फिर भी यह जरूरी नहीं की वो पहचाना जाए इसकी संभावना रहती है की उसका संग मिलने के बाद भी हमे यह ईश्वर की प्राप्ति न हो क्योंकि हम उसके शारीरिक संग के आनंद में ही खो जाएं उसी आनंद को सर्वप्रिय मानकर असल को प्राप्त ही न करें । इसलिए जाग जाइए ऐसे आध्यात्मिक महात्मा को ढूंढिए ,उससे इस ईश्वर को जानिए उसकी जीवनशैली आपको भ्रमित कर सकती है उससे पूछिए क्या वो इस परमसत्य से अवगत करा सकता है इस परमसत्य ईश्वर को जानकर इस संसार में कैसे जिया जाता है करम के प्रभाव से मुक्त कैसे हुआ जाता है वो स्वयं प्रकाश होता है आपको भी प्रकाशित कर देगा। ऐसे महात्मा को जान लेने के बाद भक्ति शुरू होती है क्योंकि आपका हर करम सेवा बन जाता है हर भाव परोपकार से पूर्ण हो जाता है आप ब्रह्म हो जाते है। इस दयालु निराकार ब्रह्म से प्रार्थना और याचना है इसकी दया से सब जागृत हो ,सबका मन परपकार के भाव से भर जाएं ,सबमें प्रेम का भाव हो, सब आनंदित हो स्वस्थ रहे और सभी मुस्कुराते रहे और मुस्कुराहट ही बांटते रहे । मेरा सादर प्रणाम और अभिवादन स्वीकार कर मुझे अनुग्रहित करें। धन्यवाद

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