मनुष्य शरीर से बहुमूल्य वस्तु संसार में कुछ हो ही नहीं सकता,
सृष्टि के निर्माण से लेकर ब्रह्मांड तक जितनी वस्तुएं हैं वह सब की सब मनुष्य शरीर में सदैव उपस्थिति रहती है,,
मनुष्य को पता चले या ना चले संसार के सभी देवी देवता, ज्ञान का खजाना, शक्तियों का खजाना, आत्मा की सारी शक्तियां, सब कुछ मनुष्य शरीर में उपस्थित रहता है, उसका सही ज्ञान न होने के कारण मनुष्य इसके महत्व को समझ ही नहीं पाता है,,
जो मनुष्य शरीर संसार के सभी देवताओं को दुर्लभ है इसका महत्व समझना तो चाहिए,
बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा,
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा,,
बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है (कठिनता से मिलता है)। यह साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पाकर भी जिसने परलोक न बना लिया उसका मनुष्य का जन्म लेना ही निरर्थक हो गया,,
क्योंकि यह शरीर नश्वर है इसका सबसे बड़ा महत्व इसके नश्वर होने में ही है,,
दूसरा महत्व यह है कि इस शरीर में ब्रह्मांड की सारी वस्तुएं तत्व रूप में विराजमान होती है,,
जो कुछ मनुष्य शरीर के पिंड में उपस्थित है,, वही संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है,, और इस सृष्टि में जो कुछ भी व्याप्त है वह सब कुछ मनुष्य शरीर में व्याप्त है,,
जो मनुष्य योग साधन या किसी भी साधन के द्वारा शरीर के सभी तत्वों को अपने नियंत्रण में कर सकता है वह सृष्टि पर पूरी तरह से नियंत्रण कर सकता है,, और यदि किसी ने अपने पिंड में छुपे हुए सभी तत्वों को जागृत कर लिया, या उनको अपने नियंत्रण में कर सका, संपूर्ण ब्रह्मांड पर उसका नियंत्रण हो जाता है,, जो जब चाहे जैसे चाहे सृष्टि को अपनी इच्छा के अनुसार चला सकते हैं,, ऐसे महापुरुषों को 108 कहा जाता है,, पिंड से लेकर पैर के अंगूठे के नाखून तक 108 अंगुल का मनुष्य शरीर होता है,, 84 अंगुल का शरीर 12 अंगुल का मुख के सामने का भाग मस्तक तक और 12 अंगुल मस्तक से पिंड तक होता है,, कुल मिलाकर 108 अंगुल का मनुष्य शरीर माना जाता है और इस शरीर में एड़ी से छोटी तक वह सब कुछ तत्व रूप में भरा पड़ा है जो कुछ इस ब्रह्मांड में है,, इन सबको जिसने तत्व रूप में देखा और जागृत किया वहीं महापुरुष 108 कहलाने के योग्य होते हैं,,
संसार में 108 तो जगह-जगह घूमते हुए नजर आते हैं और सब 108 ही लिखकर चलते हैं, परंतु जिस दिन जिस 108 का महत्व पता चल जाता है उसी दिन वह ईश्वर का भक्त बन जाता है,, ईश्वर ने इतनी खूबसूरती से ब्रह्मांड के सभी तत्वों को मनुष्य शरीर में भर दिया है इस खूबसूरती को या इस कला को या इस ज्ञान को अनुभव करने वाला व्यक्ति सदा सदा के लिए ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाता है,, क्योंकि जो कार्य संसार में कोई कर ही नहीं सकता है उसे इतनी खूबसूरती से ईश्वर ने बहुत आसान तरीके से संसार के हर मनुष्य में भर दिया है,,
फिर भी मनुष्य अपने आप को तुच्छ प्राणी ही समझता है,, यह उसका आज्ञान ही है जो अपने महत्व को समझ नहीं पाता है,, मनुष्य शरीर में रहकर मनुष्य वह सब कुछ कर सकता है जो संसार का कोई प्राणी चाहे वह देवता हो या कोई अन्य योनि का प्राणी हो कोई नहीं कर सकता है जो मनुष्य कर सकता है,, जब मनुष्य के शरीर में परमात्मा ने ब्रह्मांड की सारी वस्तुएं भर दिया कुछ भी छोड़ा नहीं फिर भी मनुष्य इधर-उधर भटक रहा है अपने कल्याण के लिए,, क्योंकि उसे कोई आत्मज्ञानी गुरु मिला नहीं जिस दिन कोई आत्मज्ञानी गुरु मिलेगा उसी दिन उसके अंतर में उपस्थित परमात्मा का दर्शन कर देगा,
शरीर के तत्वों को जागृत करने का सबसे सरल और आसान तरीका है तन और मन दोनों को स्थिर करके एकाकार की अवस्था में आना पड़ेगा तब जाकर आत्मा की शक्तियां मन में उतरती हैं और मन की शक्तियां शरीर में प्रवाहित होने लगती है, आत्मा बहुत शक्तिशाली होती है उसमें परमात्मा की सारी शक्तियां भरी होती है, इन शक्तियों को धीरे-धीरे मन में प्रवाहित किया जाता है और यह सिलसिला आगे बढ़ता है तो यही शक्तियां धीरे-धीरे मन से उतरती हुई शरीर में प्रवाहित हो जाती है, जिस शरीर में आत्मा की सारी शक्तियां उतर चुकी है वह शरीर साक्षात ईश्वर या परमात्मा का शरीर समझना चाहिए,, यह काम उतना ही कठिन है जितना अपनी मृत्यु को अपने बस में कर लेना,, परंतु ऐसे बहुत से महापुरुषों ने किया और आज भी कर रहे हैं इसमें कोई आश्चर्य नहीं है,,
मनुष्य शरीर में परमात्मा ने वह सब कुछ भर दिया है जिससे वह स्वयं परमात्मा का साक्षात रूप धारण कर सकता है, शरीर के सभी तत्व जिसके जागृत हो जाते हैं उसमें और परमात्मा में कोई अंतर शेष नहीं रह जाता है,,
मनुष्य शरीर नश्वर होने के कारण इसका बड़ा महत्व है ऐसे महापुरुष जिन्होंने शरीर में रहते हुए परमात्मा को प्राप्त कर लिया है वह जब चाहे इच्छा अनुसार शरीर को छोड़कर परमधाम जा सकते हैं इसमें कोई बंदिश नहीं होती है,,
इस प्रकार के महापुरुषों से कोई चाहे तो सहयोग लेकर वह भी परमधाम की यात्रा कर सकता है,,
स्वयं परमात्मा को जब भी संसार में आना होता है संसार के आनंद को लेने के लिए परमात्मा स्वयं जब भी धरती पर आते हैं मनुष्य शरीर में ही आते हैं,, देवताओं के शरीर में कभी नहीं आते,, क्योंकि मनुष्य शरीर ही प्रकृति और आत्मा की सारी शक्तियों के योग से उत्पन्न होता है,, इसलिए मनुष्य शरीर में रहकर प्रकृति और आत्मा दोनों का ही आनंद समान रूप से उठाया जा सकता है,,
मनुष्य शरीर में रहकर मनुष्य पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर जब चाहे आत्मा का आनंद ले सकता है जब चाहे प्रकृति के आनंद ले सकता है,, ऐसा समझना चाहिए कि उसके दो पैर दो तरफ होते हैं एक संसार में और दूसरा आत्मा में बीच में एक सीमा होती है एक तरफ प्रकृति है दूसरी तरफ आत्मा है, इसलिए वह जब चाहे प्रकृति में और जब चाहे आत्मा में दोनों का आनंद एक साथ उठा सकता है,
और संसार का यह सुख सिर्फ और सिर्फ मनुष्यों के लिए ही है,, इस आनंद पर सिर्फ और सिर्फ मनुष्य का ही अधिकार है,, देवताओं को इसकी आज्ञा नहीं होती,, यदि वह मनुष्य रूप में आते भी हैं तब भी उनको यह आनंद नहीं प्राप्त होता क्योंकि उन्हें पता होता है कि वह देवता है उन्हें इस नश्वर शरीर को त्यागने के बाद फिर से अपने इस देव रूप में जाना पड़ेगा,, इसलिए यह आनंद देवताओं के भी भाग्य में नहीं होता है,, मनुष्य को गर्व होना चाहिए कि उसको मनुष्य का शरीर मिला है,, जो मानव शरीर देवताओं के भी भाग्य में नहीं होता है, उस मनुष्य शरीर का मालिक आज्ञान के कारण अपने शरीर के महत्व को समझ नहीं पा रहा है,,
मनुष्य जीवन के उद्देश्य को नहीं समझ पा रहा है, मनुष्य शरीर के कर्तव्यों को भी समझ नहीं पा रहा है,,
संसार की सबसे बहुमूल्य वस्तु को मिट्टी समझकर उसे ऐसे ही निरर्थक बना रहा है,,
मनुष्य शरीर से बहुमूल्य वस्तु संसार में कुछ हो ही नहीं सकता,
सृष्टि के निर्माण से लेकर ब्रह्मांड तक जितनी वस्तुएं हैं वह सब की सब मनुष्य शरीर में सदैव उपस्थिति रहती है,
मनुष्य को पता चले या ना चले संसार के सभी देवी देवता, ज्ञान का खजाना, शक्तियों का खजाना, आत्मा की सारी शक्तियां, सब कुछ मनुष्य शरीर में उपस्थित रहता है, उसका सही ज्ञान न होने के कारण मनुष्य इसके महत्व को समझ ही नहीं पाता है,
जो मनुष्य शरीर संसार के सभी देवताओं को दुर्लभ है इसका महत्व समझना तो चाहिए,
बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा,
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा,
बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है (कठिनता से मिलता है)। यह साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पाकर भी जिसने परलोक न बना लिया उसका मनुष्य का जन्म लेना ही निरर्थक हो गया,
क्योंकि यह शरीर नश्वर है इसका सबसे बड़ा महत्व इसके नश्वर होने में ही है,
दूसरा महत्व यह है कि इस शरीर में ब्रह्मांड की सारी वस्तुएं तत्व रूप में विराजमान होती है,
जो कुछ मनुष्य शरीर के पिंड में उपस्थित है, वही संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है, और इस सृष्टि में जो कुछ भी व्याप्त है वह सब कुछ मनुष्य शरीर में व्याप्त है,
जो मनुष्य योग साधन या किसी भी साधन के द्वारा शरीर के सभी तत्वों को अपने नियंत्रण में कर सकता है वह सृष्टि पर पूरी तरह से नियंत्रण कर सकता है, और यदि किसी ने अपने पिंड में छुपे हुए सभी तत्वों को जागृत कर लिया, या उनको अपने नियंत्रण में कर सका, संपूर्ण ब्रह्मांड पर उसका नियंत्रण हो जाता है, जो जब चाहे जैसे चाहे सृष्टि को अपनी इच्छा के अनुसार चला सकते हैं, ऐसे महापुरुषों को 108 कहा जाता है, पिंड से लेकर पैर के अंगूठे के नाखून तक 108 अंगुल का मनुष्य शरीर होता है, 84 अंगुल का शरीर 12 अंगुल का मुख के सामने का भाग मस्तक तक और 12 अंगुल मस्तक से पिंड तक होता है, कुल मिलाकर 108 अंगुल का मनुष्य शरीर माना जाता है और इस शरीर में एड़ी से छोटी तक वह सब कुछ तत्व रूप में भरा पड़ा है जो कुछ इस ब्रह्मांड में है, इन सबको जिसने तत्व रूप में देखा और जागृत किया वहीं महापुरुष 108 कहलाने के योग्य होते हैं,
संसार में 108 तो जगह-जगह घूमते हुए नजर आते हैं और सब 108 ही लिखकर चलते हैं, परंतु जिस दिन जिस 108 का महत्व पता चल जाता है उसी दिन वह ईश्वर का भक्त बन जाता है, ईश्वर ने इतनी खूबसूरती से ब्रह्मांड के सभी तत्वों को मनुष्य शरीर में भर दिया है इस खूबसूरती को या इस कला को या इस ज्ञान को अनुभव करने वाला व्यक्ति सदा सदा के लिए ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाता है, क्योंकि जो कार्य संसार में कोई कर ही नहीं सकता है उसे इतनी खूबसूरती से ईश्वर ने बहुत आसान तरीके से संसार के हर मनुष्य में भर दिया है,
फिर भी मनुष्य अपने आप को तुच्छ प्राणी ही समझता है, यह उसका आज्ञान ही है जो अपने महत्व को समझ नहीं पाता है, मनुष्य शरीर में रहकर मनुष्य वह सब कुछ कर सकता है जो संसार का कोई प्राणी चाहे वह देवता हो या कोई अन्य योनि का प्राणी हो कोई नहीं कर सकता है जो मनुष्य कर सकता है, जब मनुष्य के शरीर में परमात्मा ने ब्रह्मांड की सारी वस्तुएं भर दिया कुछ भी छोड़ा नहीं फिर भी मनुष्य इधर-उधर भटक रहा है अपने कल्याण के लिए, क्योंकि उसे कोई आत्मज्ञानी गुरु मिला नहीं जिस दिन कोई आत्मज्ञानी गुरु मिलेगा उसी दिन उसके अंतर में उपस्थित परमात्मा का दर्शन कर देगा,
शरीर के तत्वों को जागृत करने का सबसे सरल और आसान तरीका है तन और मन दोनों को स्थिर करके एकाकार की अवस्था में आना पड़ेगा तब जाकर आत्मा की शक्तियां मन में उतरती हैं और मन की शक्तियां शरीर में प्रवाहित होने लगती है, आत्मा बहुत शक्तिशाली होती है उसमें परमात्मा की सारी शक्तियां भरी होती है, इन शक्तियों को धीरे-धीरे मन में प्रवाहित किया जाता है और यह सिलसिला आगे बढ़ता है तो यही शक्तियां धीरे-धीरे मन से उतरती हुई शरीर में प्रवाहित हो जाती है, जिस शरीर में आत्मा की सारी शक्तियां उतर चुकी है वह शरीर साक्षात ईश्वर या परमात्मा का शरीर समझना चाहिए, यह काम उतना ही कठिन है जितना अपनी मृत्यु को अपने बस में कर लेना, परंतु ऐसे बहुत से महापुरुषों ने किया और आज भी कर रहे हैं इसमें कोई आश्चर्य नहीं है,
मनुष्य शरीर में परमात्मा ने वह सब कुछ भर दिया है जिससे वह स्वयं परमात्मा का साक्षात रूप धारण कर सकता है, शरीर के सभी तत्व जिसके जागृत हो जाते हैं उसमें और परमात्मा में कोई अंतर शेष नहीं रह जाता है,
मनुष्य शरीर नश्वर होने के कारण इसका बड़ा महत्व है ऐसे महापुरुष जिन्होंने शरीर में रहते हुए परमात्मा को प्राप्त कर लिया है वह जब चाहे इच्छा अनुसार शरीर को छोड़कर परमधाम जा सकते हैं इसमें कोई बंदिश नहीं होती है,
इस प्रकार के महापुरुषों से कोई चाहे तो सहयोग लेकर वह भी परमधाम की यात्रा कर सकता है,
स्वयं परमात्मा को जब भी संसार में आना होता है संसार के आनंद को लेने के लिए परमात्मा स्वयं जब भी धरती पर आते हैं मनुष्य शरीर में ही आते हैं, देवताओं के शरीर में कभी नहीं आते, क्योंकि मनुष्य शरीर ही प्रकृति और आत्मा की सारी शक्तियों के योग से उत्पन्न होता है, इसलिए मनुष्य शरीर में रहकर प्रकृति और आत्मा दोनों का ही आनंद समान रूप से उठाया जा सकता है,
मनुष्य शरीर में रहकर मनुष्य पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर जब चाहे आत्मा का आनंद ले सकता है जब चाहे प्रकृति के आनंद ले सकता है, ऐसा समझना चाहिए कि उसके दो पैर दो तरफ होते हैं एक संसार में और दूसरा आत्मा में बीच में एक सीमा होती है एक तरफ प्रकृति है दूसरी तरफ आत्मा है, इसलिए वह जब चाहे प्रकृति में और जब चाहे आत्मा में दोनों का आनंद एक साथ उठा सकता है,
और संसार का यह सुख सिर्फ और सिर्फ मनुष्यों के लिए ही है, इस आनंद पर सिर्फ और सिर्फ मनुष्य का ही अधिकार है, देवताओं को इसकी आज्ञा नहीं होती, यदि वह मनुष्य रूप में आते भी हैं तब भी उनको यह आनंद नहीं प्राप्त होता क्योंकि उन्हें पता होता है कि वह देवता है उन्हें इस नश्वर शरीर को त्यागने के बाद फिर से अपने इस देव रूप में जाना पड़ेगा, इसलिए यह आनंद देवताओं के भी भाग्य में नहीं होता है, मनुष्य को गर्व होना चाहिए कि उसको मनुष्य का शरीर मिला है, जो मानव शरीर देवताओं के भी भाग्य में नहीं होता है, उस मनुष्य शरीर का मालिक आज्ञान के कारण अपने शरीर के महत्व को समझ नहीं पा रहा है,
मनुष्य जीवन के उद्देश्य को नहीं समझ पा रहा है, मनुष्य शरीर के कर्तव्यों को भी समझ नहीं पा रहा है,
संसार की सबसे बहुमूल्य वस्तु को मिट्टी समझकर उसे ऐसे ही निरर्थक बना रहा है,