एक भक्त का समर्पण भाव

हे भगवान नाथ, आज मैं तुम्हें कैसे नमन और वंदन करूं। आज ये दिल ठहर-ठहर कर भर आता है। ऐसे में मेरे स्वामी भगवान नाथ चिंतन हो तो कैसे हो। हे स्वामी, भगवान नाथ, आज दिल में एक ही विचार कौंधा जाता है कि मैंने भगवान नाथ श्री हरी को सच्चे रूप में ध्याया नहीं है और ये जीवन व्यर्थ ही गवां दिया। देखना तो यह है कि अंदर पवित्रता कितनी आई है। भगवान नाथ के चरणों में सच्चे तौर पर समर्पित हुई या मन के बहलाव में ही अटकी रही। आत्म चिंतन किया या नहीं परमात्मा के चरणों में समर्पित हुई या नहीं? अंदर परमात्मा से मिलन की तड़प जगी कि नहीं। भगवान नाथ से मिलन की दिल में तड़प जागृत ही नहीं हुई। श्री हरि के साथ प्रेम कैसे हो कि आंखों में दरस की प्यास जग जाए? हृदय अन्दर से शुद्ध नहीं हुआ है।अभी विकार ही भरे पड़े हैं। हे स्वामी भगवान नाथ, मैं तुमसे कर जोड़कर प्रार्थना करती हूँ- विकारों की मृत्यु हो जाए या विकार जल जाए। जब तक विकारों ने डेरा डाल रखा है, तब तक हे भगवान नाथ, तुमसे मिलन कैसे हो। हे नाथ, ये विकार तुम्हारे नाम के धन से ही जल सकते हैं। हे स्वामी भगवान नाथ, क्या कभी तुम मुझ दासी को अपनाएंगे। ये जीवन व्यर्थ ही चला जाएगा। हे भगवान नाथ, हे स्वामी, दिल में एक ही इच्छा जागृत होती है कि कब प्रभु प्राण नाथ से मिलन होगा। 

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