हृदय का द्रवित होना ही परमात्मा के अवतरित होने का प्रमाण है,,
जिन महापुरुषों के ,, अंत:करण,, द्रवित होते हैं निश्चित मानना चाहिए कि उनके हृदय में परमात्मा का अवतरण होता है,,
द्रवित होने पर जो आंसू निकलते हैं उसी को संतमत के अनुसार ,,परम आनंद,,का रस कहते हैं,,
मनुष्य के आंसू भी दो प्रकार के होते हैं एक वह जो मन के दुखी होने के कारण निकलते हैं,, वह आंसू हमेशा गर्म ही होते हैं यदि आप चाहे तो उसे छू कर भी ज्ञात कर सकते हो,,
दूसरे आंसू वह होते हैं जो द्रवित होने से निकलते हैं वह आंसू ठंडे होते हैं,, आत्मा और परमात्मा के योग से उत्पन्न हुए आनंद के कारण निकलते हैं,, इन आंसुओं को ही परम आनंद रस कहते हैं,,
ऐसे महापुरुष जो द्रवित होते हैं उस समय उनके सामने जो भी व्यक्ति बैठा हो उसे भी द्रवित कर देते हैं,, और बार-बार द्रवित होने के कारण परमात्मा स्वयं ही हृदय में अवतरित होने लगते हैं,, इसका ज्ञान भी बहुत देर से पता चलता है,, जब तक वह व्यक्ति स्वयं परमात्मा से साक्षात्कार नहीं कर लेता तब वह इस आनंद से अनभिज्ञ ही रहता है,, द्रवित होने के कारण आनंद तो वह प्राप्त करता रहता है परंतु जब तक स्वयं परमात्मा का साक्षात्कार नहीं कर लेता है तब तक वह इस आनंद के कारण को समझ नहीं पता है,,
परंतु बार-बार द्रवित होकर वह आनंद का आनंद तो उठाता रहता है,,
इसी प्रकार धीरे-धीरे उसे सब कुछ ज्ञान हो जाता है,, और वह परमात्मा स्वरुप ही हो जाता है,,
जितनी देर हृदय में परमात्मा का अवतरण होता है उतनी देर वह मनुष्य परमात्मा स्वरुप ही होता है,, परंतु उस स्थिति में कोई ज्यादा देर तक नहीं रह पाता,, मनुष्य की स्थिति हर समय एक समान नहीं होती,, उस परम स्थिति से अलग होकर जब वह अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है तो वह स्थिति जाती रहती है,, और वह फिर से अपने सांसारिक रूप में आ जाता है,, कोई विचार कोई भाव ऐसे होते हैं जो एक सेकंड मात्रा में ही उसे फिर से इस स्थिति में पहुंचा देते हैं जहां वह फिर से द्रवित हो जाता है,, ऐसा बार-बार होते रहने से उसकी स्थिति संसार से उठकर परमात्मा में अधिक देर तक रहने लगती है,, और अभ्यास,, मन की निर्मलता,, विचारों की निर्मलता,, और अंतःकरण की शुद्धता बढ़ने के कारण एक दिन वह अपने इस आनंद स्वरूप में स्थित हो जाता है,,
जब वह महापुरुष परमात्मा स्वरूप हो जाता है,,
ऐसे पुरुषों को ही ,,समर्थ गुरु,,या ,,परमात्मा का साकार,,, रूप कहते हैं,,
The softening of the heart is the proof of the incarnation of God. Those great men whose hearts are filled with tears, it must be believed that God incarnates in their hearts. The tears that come out when they become liquid are called the essence of ultimate joy, according to the Santmat. There are two types of human tears, one which comes out due to sadness in the mind, those tears are always hot. If you want, you can detect it by touching it, The other tears are those which come out due to liquefaction, those tears are cold, they come out due to the joy arising from the union of soul and God, these tears are called supreme bliss juice, Such great men who are moved at that time also move whoever is sitting in front of them, and due to being moved again and again, God himself starts incarnating in the heart, the knowledge of this is also known very late. Until that person himself realizes God, he remains unaware of this joy. Due to being fluid, he continues to experience joy, but until he realizes God himself, he remains unaware of this joy. don’t know how to understand, But he continues to enjoy the joy by being moved again and again, In this way, gradually he comes to know everything, and he becomes the embodiment of God. As long as God incarnates in the heart, that man remains in the form of God, but no one can remain in that state for long, the state of man is not the same all the time, apart from that ultimate state when he is in his When he becomes established in his form then that state goes away and he comes back to his worldly form, there are some thoughts or feelings which in just a second take him back to this state where he again returns to his worldly form. By this happening again and again, his state begins to rise from the world and stay in God for a longer time, and due to increasing practice, purity of mind, purity of thoughts, and purity of conscience, one day he attains this state of consciousness. Becomes situated in the form of joy, When that great man becomes the form of God, Only such men are called capable gurus or incarnations of God.