मृत्यु का रहस्य जब सूक्ष्म शरीर देह से मुक्त होता है
साँसें थमती हैं नाड़ियों में प्राण स्पंदन खोने लगते हैं… और धीरे-धीरे एक अजीब-सा सन्नाटा समूचे शरीर में व्याप्त हो जाता है। यह क्षण सामान्य नहीं है—यह देह के लिए अंत है और आत्मा के लिए एक नई यात्रा का आरंभ। मृत्यु के इस अलौकिक क्षण में, सूक्ष्म शरीर स्थूल देह का परित्याग कर आगे बढ़ता है। विज्ञान इसे न्यूरोलॉजिकल घटना कहता है, और वेदांत इसे आत्मा का उच्च लोकों की ओर प्रयाण। दोनों दृष्टिकोणों में अद्भुत समानता है, मानो दो किनारे एक ही नदी के।
मस्तिष्क की न्यूरोनल गतिविधियाँ धीमी पड़ने लगती हैं। हृदय अपनी धड़कनों को विराम देने लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, मृत्यु के कुछ क्षणों के बाद भी मस्तिष्क चेतना की झलक बनाए रखता है। कई लोगों ने मृत्यु के करीब पहुँचकर “Out of Body Experience (OBE)” का अनुभव किया है—उन्होंने खुद को ऊपर से देखा, प्रकाशमय सुरंग से गुजरने की अनुभूति की, और कभी-कभी दिव्य उपस्थिति का एहसास भी किया।
चिकित्सकीय रूप से इसे “Near Death Experience (NDE)” कहा जाता है, जहाँ मस्तिष्क अंतिम क्षणों में अत्यधिक न्यूरोट्रांसमिटर और एंडोर्फिन छोड़ता है, जिससे व्यक्ति को शांति और प्रकाश का अनुभव होता है। लेकिन क्या यह केवल एक न्यूरो-रासायनिक प्रतिक्रिया है, या सच में आत्मा का प्रस्थान? विज्ञान इस पर मौन है, परंतु वेदांत इसकी व्याख्या हजारों वर्षों से करता आ रहा है।
वेदों में कहा गया है कि मृत्यु केवल शरीर का त्याग है, आत्मा की समाप्ति नहीं। कठोपनिषद में यमराज नचिकेता से कहते हैं—
“न जायते म्रियते वा कदाचिन्,
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो,
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”
(आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह अजन्मा, शाश्वत और सनातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी यह समाप्त नहीं होती।)
जब मृत्यु का क्षण आता है, तो सूक्ष्म शरीर स्थूल देह से मुक्त होने लगता है। वेदों के अनुसार, यह प्राणमय कोश (Vital Energy) के माध्यम से निकलता है और उसके कर्मों के अनुसार मार्ग निर्धारित होता है।
1 सुषुम्ना नाड़ी का मार्ग: यदि आत्मा सुषुम्ना नाड़ी से निकलती है, तो वह उच्च लोकों (मोक्ष या ब्रह्मलोक) में प्रवेश करती है।
2 इड़ा या पिंगला नाड़ी का मार्ग: यदि आत्मा कर्मों के अनुसार इड़ा या पिंगला से निकलती है, तो पुनर्जन्म चक्र में प्रवेश करती है।
3 यमदूत या देवदूत: वेदांत कहता है कि अच्छे कर्मों वाले को देवदूत मार्ग दिखाते हैं, और पाप कर्मों वाले को यमदूत कर्मफल भोगने हेतु अन्य लोकों में ले जाते हैं।
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अगर हम ध्यान दें, तो विज्ञान और वेदांत दोनों मृत्यु के समय प्रकाश, ऊर्जा और चेतना के अनुभव को स्वीकार करते हैं। विज्ञान इसे न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया कहता है, जबकि वेदांत इसे आत्मा की यात्रा। Near Death Experience के दौरान लोग जिस प्रकाश को देखते हैं, उसे वेदांत “ब्रह्म ज्योति” कहता है। विज्ञान आत्मा की पुष्टि नहीं करता, लेकिन Out of Body Experience और Near Death Experience के सैकड़ों प्रमाण इसे झुठला भी नहीं सकते।
मृत्यु का रहस्य केवल शरीर तक सीमित नहीं, बल्कि चेतना की एक गहन यात्रा है। विज्ञान इसे न्यूरोनल निष्क्रियता और रासायनिक प्रतिक्रियाओं के रूप में देखता है, जबकि वेदांत इसे आत्मा का परम सत्य मानता है। दोनों दृष्टिकोण मिलकर हमें बताते हैं कि मृत्यु केवल देह का अंत है, आत्मा की यात्रा तो अभी जारी है…!