आत्मा और परमात्मा का महामिलन में न तो काम है, न गोपियों में परस्वार्थ ईर्ष्या है, न कुछ पाने की इच्छा है।यह कामनारहित प्रेम का शुद्ध तम रूप है जो भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्ति करने वाले भक्त पर प्रभु की अपरिमित कृपा है। भक्त से भगवान, आत्मा से परमात्मा, नर से नारायण के मिलन का नाम महारास है।
महारास भगवान कृष्ण और गोपियों की अद्भुत अविभूत कर देने वाली नृत्य संगीत की अनुपम लीला है जिसमें सदेह होकर विदेह का वर्णन मिलता है-चेतना का परम चेतना से मिलन, है।
भक्त का भगवान से, जीव का ब्रह्म से, साकार का निराकार से, ज्योति का परम ज्योति से, अस्तित्व का महा अस्तित्व से-महामिलन, महारास, एक ऐसा परम दिव्य सौंदर्य माँ कालिन्दी के तट पर बिखरा कि प्रकृति भी हतप्रभ रह गई, कल कल करता कालिन्दी का नीर भी अपनी लहरों को विस्मृत कर उस अविस्मरणीय छटा को निहारता रहा।
In the great union of the soul and the Supreme Soul, there is no lust, no selfish jealousy in the gopis, no desire to get anything. This is the pure Tama form of desireless love, which is the infinite grace of the Lord on the devotee who is doing exclusive devotion to Lord Shri Krishna. The name of the union of the devotee with the Lord, the soul with the Supreme Soul, Narayan with the male is called Maharas.
Maharas is a unique leela of wonderful dance music of Lord Krishna and the gopis, in which the description of Videha is found in the body – the union of consciousness with the Supreme Consciousness.