परमात्मा दिल में 2

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परमात्मा जी तुम दिल में आ गए। मेरे प्रभु प्राण नाथ प्यारे की मै वन्दना करते करते मैं मै ना रही ये दिल दिल न रहा ये परमात्मा का धाम बन गया। ये शरीर भी शरीर न रहा। शरीर चल रहा है मन ने पुछा ये कोन चल रहा है। अन्तर्मन से अवाज आई ये परम पिता परमात्मा चल रहे हैं। ये आंखें आंखें न रही। नैनो में भगवान् समा गए। मैने पहले एक हाथ को आंखों के सामने किया अन्तर्मन ने कहा ये हाथ नहीं, ये कर्म इन्द्रीया नही ये परमात्मा है। दुसरा हाथ नैनो के सामने किया अन्दर से अवाज आई ये ज्ञान इन्द्रीया नहीं ये प्रभु प्राण प्यारे स्वामी भगवान् नाथ है।
दिल की दशा को शब्द रुप नही दीया जा सकता। दिल में एक अद्भुत शान्ति और आन्नद समा गया। तभी दिल ने कहा क्या ये परम आन्नद है। परमात्मा जी राम रुप में भी तुम मुझे आन्नद प्रदान करना चाहते थे। तब भी मैंने आपसे विनती की थी। कि हे भगवान् मुझे तुम्हारा क्षणिक आनंद नहीं चाहीए। हे परमात्मा जी आज फिर तुम मुझे क्षणिक आनंद प्रदान करना चाहते हो। हे परमात्मा जी ऐसे तो तुम मेरे साथ कितनी ही बार खेलने आते हो।। परमात्मा जी मै तुमसे प्रार्थना करती और वन्दन करते हुए कहती कि हे मेरे भगवान् मेरी मंजिल अभी पूर्ण नहीं हुई मुझे परम पिता परमात्मा से साक्षात्कार करना है। हे परमात्मा जी साक्षात्कार ही पुरणतः है।
हे मेरे ईश्वर, हे मेरे परमेशवर स्वामी भगवान् नाथ जी आत्मा ने तो कुछ और ही ठान रखी है। ये तो प्रभु स्वामी भगवान् नाथ जी आप जानते ही हैं कि आत्मा क्या चाहती है। ये कोठरी है तो आपकी ही। हे परमात्मा जी तुम एक दिन तो आत्मा को पूर्ण करोगे।
अनीता गर्ग



God, you have come in my heart. While worshiping my Lord Pran Nath beloved, I was no longer in my heart, it became the abode of God. This body is no longer a body. The body is moving, the mind asked what is going on. A voice came from within. This Supreme Father, the Supreme Soul, is walking. These eyes were not eyes. God was absorbed in Nano. I first put one hand in front of my eyes and my conscience said that this is not a hand, this action is not the senses, it is God. The second hand was done in front of Nano, the voice came from inside, this knowledge is not the senses, it is Prabhu Prana Pyare Swami Bhagwan Nath. The condition of the heart cannot be given in words. There was a wonderful peace and joy in my heart. Then the heart said, is this the ultimate bliss? Even in the form of Lord Ram, you wanted to give me happiness. Even then I begged you. That I do not want your momentary bliss, O Lord. Oh God, today again you want to give me momentary bliss. Oh God, how many times do you come to play with me like this? God, I would pray to you and praying to you, saying that my God my destination has not been completed yet, I have to interview the Supreme Father, the Supreme Soul. O God, only the realization is complete. O my God, O my Supreme Lord Swami Bhagwan Nath Ji, the soul has decided something else. This is Lord Swami Bhagwan Nath ji, you already know what the soul wants. This closet is yours. Oh God, you will complete the soul one day. Anita Garg

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