परमात्मा की कृपा दृष्टि

हम कितनी ही साधना करे, परमात्मा का चिन्तन मनन नाम जप करे। प्रभु कि कृपा के बैगर हम ठूठ के ठूठ ही है। जिस दिन परमात्मा की कृपा दृष्टि भक्त पर पङ जाती है तभी वह पुरण होता है। एक भक्त कहता है हे प्रभु प्राण नाथ तुझ बिन मै अधुरा ही हूं। थोथा चना हूं बाजता अधिक हूं मेरा मुझमे कुछ भी नहीं है फिर भी बङी आहे भरता हूं। प्रभु की ओर दृष्टि नहीं करता हूँ। हे प्रभु भगवान नाथ मेरी ओर दृष्टि कब करोगे। कब मुझे सार्थक करोगे हे नाथ एक बार मेरे हाथ को थाम लो। जन्म जन्मानतर की प्यास  प्रभु राम से मिलन की तङफ शान्त हो जाएगी।
तभी भक्त कहता है हे नाथ तुम आना आकर प्रभु मिलन की अनुकम्पा को थोड़ी और बढा जाना। अन्तर्मन की पुकार थोड़ी और बढा जाना।विरह वेदना बढा जाना। हे प्रभु प्राण नाथ तुम्हारी पल पल याद करते हुए खो जाने मे मै भुल जाती हूँ, मैं भी हूं क्या, फिर लम्बी सांस लेती फिर पुकारती तुम चुपके से आते फिर छुप जाते हृदय की धड़कन बढ़ जाती है जब तुम आते हो फिर देखती तुम दिखाई नहीं देते तब कंठ में प्राण आते हैं। इक झोका दर्द का उठता है टिस दे जाता है इक झोके में मै थोड़ी मुस्कराती दर्शन तुम्हारा पा अपने में खो जाती हूं भुल जाती हूँ बस तुम ही तुम दिखाई देते हो फिर छुप जाते हो, तुम्हारे यह लुका छुपी का खेल प्राण हर लेता है शक्ति अक्षीण हो जाती है फिर तुम्हारे चिन्तन में गहरी डुब जाती हूँ। एक भक्त को भगवान कृष्ण की इन लीलाओं में जो आनंद आता है उस आनंद रस को भक्त शब्द दे नहीं सकता है। दो होते तब कुछ बता पाते एक कैसे बताए। लीला में भक्त और भगवान एक हो जाते हैं। भक्त को जब भी भगवान के मिलन का अहसास होगा तभी नैन नीर बहायेगे विरह रस जागृत हो जाता है। परमात्मा का नाम चिन्तन मनन करते हुए भक्त भगवान मे समा जाना चाहता है। भक्त को चारो और भगवान ही दिखते हैं।
जय श्री राम अनीता गर्ग

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *