विरह रस अध्यात्मिक अवस्था


हम आनंद की प्राप्ति के लिए भगवान  की कथा करते हैं कीर्तन, नाम जप,  दर्शन करते हैं पाठ करते हैं तब हमे आनन्द रस की प्राप्ति होने लगती है हम समझते हैं मै तो बहुत कुछ भगवान की पुजा करता हूँ। मैं  भगवान की कितनी भक्ति करता हूँ  आनंद रस में हम रमते जाते हैं कुछ समय आन्नद रस प्राप्त होता है फिर हम अपने आप को खाली महसूस करते हैं जब खाली महसूस होता है तब दिल उदास हो जाता है समझ नहीं पाते है रस प्राप्त क्यों नहीं हो रहा है मन खाली है शरीर की शक्ति क्षीण लगती है। आनन्द रस हमारे शरीर में ओषधि का कार्य करता है।

हम कई बार सोचते हैं आनंद रस में पुरण डुबकी लगाले तृप्त हो जाये ऐसा होता नहीं है ऐसा क्यों नहीं होता है ऐसा इसलिए नहीं होता है हमने अपने अन्दर आनंद रस को बनाया उसे ही पुरण समझ बैठे।

आनन्द रस में तङफ रस की खोज नहीं की हमारे नैनो ने प्रभु प्राण नाथ से साक्षात्कार के लिए नीर नहीं बहाया। हम कथा कीर्तन पाठ के माध्यम से प्रभु भगवान को बाहर ढुढते रहे भगवान राम बाल्मिकी ऋषि से पुछते है मेरे रहने के लिए कोन सा स्थान उचित है तब बाल्मिकी ऋषि कहते हैं प्राणी के हृदय में तुम निवास करो।

भक्त के दिल में परमात्मा से साक्षात्कार की तङफ पैदा नहीं होती है तब तक भक्ति मार्ग पुरण नहीं है भगवान से मिलन के लिए  रात दिन नाम लेते हृदय में तङफ पैदा हो जाती है कब प्रभु भगवान हृदय  में आयेंगे
क्या कभी नैनो की प्यास बुझ पायेगी। कभी श्री हरि सोते हुए आये और मेरी नींद ही न खुले। अरी पगली यह सबसे प्रिय समय श्री हरि के चिन्तन कर श्री हरि ने देख नींद को भी भगा दिया है। तीन चार घंटे परमात्मा का चिन्तन करूँगी भक्त  रात को मन ही मन ईश्वर चिन्तन करता है उसे लगता ही नहीं वह सोया भी था क्या, खो जाता है प्रभु प्राण नाथ मे ।ऐसे दिन रात ईश्वर चिन्तन मनन करते हुए तङफ रस से आत्मिक चिन्तन में आ जाता है आत्मिक चिन्तन 10 ,15वर्ष करते हुए विरह रस तब तक विरह रस बनने लगता है।कण्ठ प्राण आवे तब विरह रस की जागृति है। भगवान कृष्ण ने महारास के लिए गोपियों को बुलाया सभी गोपियों पुरण मासी की रात को अपने अपने घर से प्रभु प्राण नाथ से साक्षात्कार करने चल पङती है झुण्ड की झुण्ड गोपियों आई राधे कृष्ण के साथ गोपियाँ एक साथ आयी है हर गोपी के दिल में एक ही अरमान है आज श्री हरि से एकाकार हो जाऊं भगवान कृष्ण राधा जी आये हैं भगवान देखते गोपियों में मै का कुछ अंश हर गोपी सोचती है आज श्यामसुन्दर मुझे ही वरण करेंगे मै बहुत सुन्दर हूं भगवान गोपियों के भाव जान जाते है। और अन्तर ध्यान हो जाते हैं। गोपियों के हृदय में असहनीय विरह वेदना जागृत हो जाती है वह भगवान को खोज रही सुध बुध खो बैठी है जैसे धनी व्यक्ति की बहुत बड़ी सम्पत्ति लुट गई हो, विरह वेदना में गोपियों का मै और मेरापन जल जाता है गोपियाँ के हृदय की शुद्धता से भगवान प्रकट होते हैं जितनी गोपी उतने ही रूप में भगवान प्रकट कर महारास लीला करते हैं। आनन्द रस में संसार है संगठन है शरीर है। तङफ में भक्त कुछ समय गोण है। परमात्मा से साक्षात्कार चाहता है। नैन नीर बहाते है आनंद रस का आनंद लेना नहीं चाहता है पूरण में समा जाना चाहता खोज रहा है नाम जप चल रहा है भगवान का अहसास भी है परमात्मा की प्रकाश रूप में झलक पाता है परमात्मा के पास होने का अहसास भी है पर अहसास पर दिल कंहा टिकता है भक्त भगवान मे समाये नहीं तब तक कैसे बात बने। नैन नीर बहाते है। जय श्री राम अनीता गर्ग

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