एक भगवान मे विश्वास

shining 3541649 6401795701513892048984

हमारे धर्म में राम जी को कृष्ण जी भगवान  है। हम भगवान् पर विश्वास करे तो भगवान् हमारी इच्छा होते ही इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार खङे है। हमारे अन्दर कमी क्या है कि हम भगवान् पर विश्वास नहीं करते। हम तो क्या करते हैं रोज नए देवता को प्रकट करेगे और उस दिन उस देवता की पूजा अगले दिन दुसरे की किसी एक को अपना माना ही नहीं तब कोई देवी देवता आपके कारज को कोन पूरण करेंगा। कोई भी दो बात धार्मिक कर ली सभी उनके पैर पुजने उनको छुने लगते हैं जैसे उसके शरीर से हमारा आज ही कल्याण हो जाएगा। मै अन्य किसी को नहीं जानती मेरा ये शरीर हाड मास का है इसमें कुछ भी पवित्रता दिखाई नहीं देती। जब तक साधु संत में आत्मज्ञान नहीं आता तब तक सभी एक से हैं। आत्मज्ञानी चरण स्पर्श करवाता नहीं। मुझे यदि विशेष ही बनना होता तब मैं यहाँ नहीं होती। मुझे रोज ही संस्थाए जुड़ने के लिए कहती हैं। लेकिन मुझे तो ऎसा ही भगवान् का चिन्तन करना अच्छा लगता है। मै भीड़ में गुम होना नहीं चाहती।मुझमे ऎसा विशेष कुछ भी नहीं कि मुझे छुआ जाए। मेरे द्वारा किसी का भला हो। हा मैंने भक्ति की है।मेरे भजनों में सब कुछ छुपा है। मै यंहा पर आती हु। जो मैंने लिखा होता है मै वैसे ही दिखा देती हूं। सच्चा अध्यात्म वाद कुछ भी छुपाता नहीं। आप सबसे प्रार्थना करती हूं कि यह स्पर्श करना एक मन का बहम है। हम बहम की वजह से भटक रहे हैं। हमें जो भी मिलता है अपनी मेहनत लगन श्रद्धा और विश्वास से मिलता है। भक्ती क्या है भक्ति दो भजन गाने से धार्मिक बात करने से नहीं आती भक्ति तन का मन का आत्मा का बलिदान है। हर क्षण परमात्मा का ही चिन्तन मन्न और वन्दन करते हुए कर्म करना भक्ति है। विचार की पवित्रता भक्ति है।सर्वस्व समर्पण का नाम भक्ति हैं एक भक्त परम पिता परमात्मा से इतना गहरा डुब जाता है कि उस का शरीर गोण हो जाता है। एक सच्चा भक्त परम पिता परमात्मा को वन्दन करते हुए कब परमात्मा की याद में आंसू बहा देता है और कब आनंद विभोर हो जाता है यह वह स्वयं भी नहीं जानता। भक्त से यदि कुछ मिलेगा तो विचारों की पवित्रता मिलेगी। विचारों की पवित्रता सबसे बड़ा धन है। भक्ती की रक्षा करना सबसे मुश्किल कार्य है पग पग पर पहरेदार खङे होते हैं। हमें हर कदम सोच समझ कर बढाना होता है। कि मेरे प्रभु प्राण नाथ का मै कितना अपना बन पाता हूँ। आज  उपासना और भक्ति पर धर्म का पहरा लगा है। एक उपासक भक्त साधक तपस्वी नियम से परे है। एक भक्त सो रहा है और उसकी अपने प्रभु प्राण नाथ प्यारे से जुड़ने की लगन लग गयी वह अपने भगवान् से जुड़े बैगर एक क्षण भी रह नहीं सकता। ऐसे में वह नियम में कैसे बंध सकता है । उसका भगवान सब में समाया है ।भक्त जब मन मन्दिर में भगवान को निहारता है। कई बार अन्तर्मन से छवि के पास चला जाता है। ऐसे में शरीर स्पर्श निशेध हैं। भक्त के अन्तर्मन के भाव में विघन आता है। भगवान् को निहारते हुए भजन गाता है। वाणी बस की रहती नहीं कभी निहारता कभी भजन गाता भगवान् को निहारना छोड़ नही सकता भजन की तर्ज चाहे बिगड़ जाए। एक भक्त भजन गाते हुए परमात्मा से जुड़ा हुआ है तब उसके मस्तक पर आज्ञा चक्र घुमने लगता है। आज्ञा चक्र प्रकाश का पूंज है।भक्त के भजन गाते हुए प्रकाश की वर्षा हो रही है। प्रकाश के बहुत महीन कण बिखर रहे हैं। ये प्रकाश पुंज सबमें ओज श्रद्धा विस्वास और भक्ति का भाव भरते हैं। भक्त की भक्ति इस प्रकाश पुंजो में छुपी है। हम यह समझते हैं कि शरीर के स्पर्श से कुछ मिलेगा ऐसा कुछ नहीं है। प्रकाश का झरना परम पिता परमात्मा की देन है। एक भक्त का सत्संग उसके प्राणो के साथ ही जाता है। भक्त चल रहा है अन्तर्मन से परम पिता परमात्मा को प्रणाम और वन्दन कर रहा है। भक्त भोजन करते हुए अपने प्राण प्रिय से बात करते हुए कहता है कि हे स्वामी भगवान् नाथ आज यही भोजन मै पका पाया हूँ। यदि मैंने तुम्हें भोजन पकाते हुए सच्चे मन से ध्याआ है तो हे स्वामी भोजन को ग्रहण करे हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ मुझमें में कुछ विशेषता नहीं है। प्रभु प्राण नाथ मेरा मन अभी पुरणतः पवित्र नही है। फिर भी मैं तुम्हें अन्तर्मन से भोजन करने के लिए पुकार रहा हूँ। भक्त सो रहा है। सोते हुए भगवान से प्रार्थना करता है कि हे मेरे नाथ क्या तुम मेरी पुकार सुनते हो। हे परम पिता परमात्मा मै तुम्हे हर क्षण दिल में बिठाकर तुम्हारा चिन्तन करता रहु । दिल की धड़कन में तुम्हें समा लु। हर सांस में तुम्हारी पुकार समा जाए। हे स्वामी भगवान् नाथ ये आंख ये दिल तुम्हारा ही बनाया हुआ है स्वामी भगवान् नाथ ये काया कोठरी  आपके चरणों की चेरी है। हे परमात्मा जी कब इस कोठरी को पवित्र करोगे।
अनीता गर्ग



हमारे धर्म में राम जी को कृष्ण जी भगवान है। हम भगवान् पर विश्वास करे तो भगवान् हमारी इच्छा होते ही इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार खङे है। हमारे अन्दर कमी क्या है कि हम भगवान् पर विश्वास नहीं करते। हम तो क्या करते हैं रोज नए देवता को प्रकट करेगे और उस दिन उस देवता की पूजा अगले दिन दुसरे की किसी एक को अपना माना ही नहीं तब कोई देवी देवता आपके कारज को कोन पूरण करेंगा। कोई भी दो बात धार्मिक कर ली सभी उनके पैर पुजने उनको छुने लगते हैं जैसे उसके शरीर से हमारा आज ही कल्याण हो जाएगा। मै अन्य किसी को नहीं जानती मेरा ये शरीर हाड मास का है इसमें कुछ भी पवित्रता दिखाई नहीं देती। जब तक साधु संत में आत्मज्ञान नहीं आता तब तक सभी एक से हैं। आत्मज्ञानी चरण स्पर्श करवाता नहीं। मुझे यदि विशेष ही बनना होता तब मैं यहाँ नहीं होती। मुझे रोज ही संस्थाए जुड़ने के लिए कहती हैं। लेकिन मुझे तो ऎसा ही भगवान् का चिन्तन करना अच्छा लगता है। मै भीड़ में गुम होना नहीं चाहती।मुझमे ऎसा विशेष कुछ भी नहीं कि मुझे छुआ जाए। मेरे द्वारा किसी का भला हो। हा मैंने भक्ति की है।मेरे भजनों में सब कुछ छुपा है। मै यंहा पर आती हु। जो मैंने लिखा होता है मै वैसे ही दिखा देती हूं। सच्चा अध्यात्म वाद कुछ भी छुपाता नहीं। आप सबसे प्रार्थना करती हूं कि यह स्पर्श करना एक मन का बहम है। हम बहम की वजह से भटक रहे हैं। हमें जो भी मिलता है अपनी मेहनत लगन श्रद्धा और विश्वास से मिलता है। भक्ती क्या है भक्ति दो भजन गाने से धार्मिक बात करने से नहीं आती भक्ति तन का मन का आत्मा का बलिदान है। हर क्षण परमात्मा का ही चिन्तन मन्न और वन्दन करते हुए कर्म करना भक्ति है। विचार की पवित्रता भक्ति है।सर्वस्व समर्पण का नाम भक्ति हैं एक भक्त परम पिता परमात्मा से इतना गहरा डुब जाता है कि उस का शरीर गोण हो जाता है। एक सच्चा भक्त परम पिता परमात्मा को वन्दन करते हुए कब परमात्मा की याद में आंसू बहा देता है और कब आनंद विभोर हो जाता है यह वह स्वयं भी नहीं जानता। भक्त से यदि कुछ मिलेगा तो विचारों की पवित्रता मिलेगी। विचारों की पवित्रता सबसे बड़ा धन है। भक्ती की रक्षा करना सबसे मुश्किल कार्य है पग पग पर पहरेदार खङे होते हैं। हमें हर कदम सोच समझ कर बढाना होता है। कि मेरे प्रभु प्राण नाथ का मै कितना अपना बन पाता हूँ। आज उपासना और भक्ति पर धर्म का पहरा लगा है। एक उपासक भक्त साधक तपस्वी नियम से परे है। एक भक्त सो रहा है और उसकी अपने प्रभु प्राण नाथ प्यारे से जुड़ने की लगन लग गयी वह अपने भगवान् से जुड़े बैगर एक क्षण भी रह नहीं सकता। ऐसे में वह नियम में कैसे बंध सकता है । उसका भगवान सब में समाया है ।भक्त जब मन मन्दिर में भगवान को निहारता है। कई बार अन्तर्मन से छवि के पास चला जाता है। ऐसे में शरीर स्पर्श निशेध हैं। भक्त के अन्तर्मन के भाव में विघन आता है। भगवान् को निहारते हुए भजन गाता है। वाणी बस की रहती नहीं कभी निहारता कभी भजन गाता भगवान् को निहारना छोड़ नही सकता भजन की तर्ज चाहे बिगड़ जाए। एक भक्त भजन गाते हुए परमात्मा से जुड़ा हुआ है तब उसके मस्तक पर आज्ञा चक्र घुमने लगता है। आज्ञा चक्र प्रकाश का पूंज है।भक्त के भजन गाते हुए प्रकाश की वर्षा हो रही है। प्रकाश के बहुत महीन कण बिखर रहे हैं। ये प्रकाश पुंज सबमें ओज श्रद्धा विस्वास और भक्ति का भाव भरते हैं। भक्त की भक्ति इस प्रकाश पुंजो में छुपी है। हम यह समझते हैं कि शरीर के स्पर्श से कुछ मिलेगा ऐसा कुछ नहीं है। प्रकाश का झरना परम पिता परमात्मा की देन है। एक भक्त का सत्संग उसके प्राणो के साथ ही जाता है। भक्त चल रहा है अन्तर्मन से परम पिता परमात्मा को प्रणाम और वन्दन कर रहा है। भक्त भोजन करते हुए अपने प्राण प्रिय से बात करते हुए कहता है कि हे स्वामी भगवान् नाथ आज यही भोजन मै पका पाया हूँ। यदि मैंने तुम्हें भोजन पकाते हुए सच्चे मन से ध्याआ है तो हे स्वामी भोजन को ग्रहण करे हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ मुझमें में कुछ विशेषता नहीं है। प्रभु प्राण नाथ मेरा मन अभी पुरणतः पवित्र नही है। फिर भी मैं तुम्हें अन्तर्मन से भोजन करने के लिए पुकार रहा हूँ। भक्त सो रहा है। सोते हुए भगवान से प्रार्थना करता है कि हे मेरे नाथ क्या तुम मेरी पुकार सुनते हो। हे परम पिता परमात्मा मै तुम्हे हर क्षण दिल में बिठाकर तुम्हारा चिन्तन करता रहु । दिल की धड़कन में तुम्हें समा लु। हर सांस में तुम्हारी पुकार समा जाए। हे स्वामी भगवान् नाथ ये आंख ये दिल तुम्हारा ही बनाया हुआ है स्वामी भगवान् नाथ ये काया कोठरी आपके चरणों की चेरी है। हे परमात्मा जी कब इस कोठरी को पवित्र करोगे। अनीता गर्ग

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *