साधना का एक अत्यंत महत्वपूर्ण चरण यह है कि जैसे-जैसे साधना प्रगाढ़ होती जाती है, वैसे-वैसे साधक के मन में अबोधता के भाव भी प्रगाढ़ होने लगते हैं।
ऐसे साधक भगवान से सदैव यही याचना करते हैं कि हे प्रभु! साधना पथ पर में मैं शून्य हूँ। मैं तो केवल आप की दया के बल पर ही जीता हूँ। मुझमें तो तपस्या करने का सामर्थ्य ही नहीं है।
मुझमें तो आपके ज्ञान को समझने की शक्ति भी नहीं है। हे प्रभु! आप मुझे किसी तरह अपनी सेवा में लगाये रहें, मुझे सदा अपने चरणों में ही रखें। हे प्रभु जी! मेरी भक्ति की परीक्षा भी न लें क्योंकि उसमें मेरा अनुत्तीर्ण होना निश्चित है।
आप तो मुझे केवल अपनी आज्ञा के आधीन ही रखें। मुझे आपकी चरणधूलि सदा प्राप्त होती रहे। आपकी सान्निध्यता से मैं सदा सुवासित रहूँ। यदि आपकी दया हो जायेगी तो मेरा मन आपके चरणों में ही लग जायेगा और तभी मेरा कल्याण होगा…
श्री कृष्ण: शरणम मम्
A very important stage of Sadhana is that as the Sadhana deepens, the feelings of ignorance in the mind of the seeker also become stronger.
Such seekers always pray to God that O Lord! I am zero on the path of meditation. I survive only on the strength of your kindness. I don’t have the capacity to do penance.
I don’t even have the power to understand your knowledge. Oh God! You somehow keep me engaged in your service, always keep me at your feet. O Lord! Don’t even test my devotion because I am sure to fail in it.
You just keep me under your command. May I always receive the dust of your feet. May I always remain fragrant with your presence. If I have your mercy, my mind will fall at your feet and only then I will be well…
Sri Krishna: I take refuge in you