[20]हनुमान जी की आत्मकथा

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(मैंने अशोक वाटिका में रामकथा सुनाई – हनुमान )
भाग-20

रामचन्द्र गुन बरनैं लागा…
(रामचरितमानस)

कल एक विचित्र बात हो गयी… एक “आज के विचार” के पाठक ने मुझे कहा महाराज ! चलिए दो दिन के लिए मैं आपको “श्री लंका” घुमाकर ले आता हूँ…।

मैं हँसा… मुझे लगा ये विनोद कर रहे हैं…।

पर वह गम्भीर थे चलिए ना ! बताइये कब की टिकट लूँ… वो रहते हैं गाजियाबाद में… बारम्बार बोल रहे थे बस दो दिन के लिए… पर “पवनपुत्र की आत्मकथा” के बीच में ही ।

उन साधक से मैंने कहा क्षमा करें… मेरी कोई रूचि नही है श्री लंका जाने की ।

पर क्यों ?… उनका प्रश्न था… ।

मैंने कहा- वहाँ मैं जाकर क्या करूँगा ? वहाँ मेरी माँ मैथिली तो हैं नहीं !

पर पहले तो थीं ना… और आपके बड़े भाई हनुमान जी भी गए वहाँ तो… फिर आप क्यों नही जायेंगे ?

मैंने कहा- माँ मैथिली जो वहाँ थीं… वह अपनी ख़ुशी से नही थीं… उस भूमि में मेरी माँ मैथिली रोती ही रहीं हैं… फिर जहाँ श्री किशोरी जी रोई हों… वहाँ मेरी इच्छा कैसे हो सकती है… जाने की ?

आप तो विचित्र हैं… क्या कथा कहने के लिए भी नही जायेंगे ?

आपकी कथा मैं लगाऊं “श्री लंका” में तो नही जाएंगे ?

नहीं… मैं नहीं जाऊँगा… मैंने स्पष्ट कहा ।

क्यों कथा करने के लिए श्री लंका ही है क्या…?

नेपाल में जनकपुर धाम है… भारत में अन्य तीर्थ हैं… अनेक धाम हैं और वैसे भी मैं तो अपने श्री धाम वृन्दावन में ही राजी हूँ ।

“श्री लंका” मैं नहीं जाऊँगा… उन्हें शायद अच्छा नही लगा… मेरा इतना स्पष्ट कहना… उन्होंने मुझ से कहा बड़े-बड़े सन्त महात्मा लोग तो जाते हैं ? मैंने कहा जाते होंगे… मैं किसी की आलोचना क्यों करूँ… पर मैं नही जाऊँगा… क्यों कि मेरी किशोरी जी वहाँ बहुत रोई थीं… ये कहते हुए मेरी आवाज भर्रा गयी ।

साधकों ! ये बात मैं कोई अपने आपको बड़ा दिखाने के लिए नही लिख रहा… बस मैं ऐसा ही हूँ क्यों हूँ… पता नही

चलिये ! मेरी बात क्या सुनना उस अवध के उद्यान में चलते हैं… जहाँ आज देर रात तक हनुमान जी अपनी आत्मकथा सुना रहे हैं… और श्रोता के रूप में… आपको पता ही है… भरत जी, शत्रुघ्न कुमार जी, महामन्त्री सुमन्त्र उनके पुत्र और इन सबके मित्र जन ।

हनुमान जी कथा की धारा में बहते जा रहे हैं ।


भरत भैया ! रावण की तलवार पकड़ ली थी मन्दोदरी ने… जब रावण माँ मैथिली को मारने के लिए उद्यत हुआ था तब ।

स्वामी ! आपने बहुत भारी गलती कर दी है आप इस सीता को लेकर नही आये हैं आप तो लंका की मृत्यु ही पकड़ कर ले आये ।

हट् ! मृत्यु(काल) तो लंका के प्रवेश द्वार पर ही बन्दी बना हुआ है… मयतनया ! तुम कब से डरने लगी…?

तलवार से फिर मारने का प्रयास करने लगा था रावण… माँ मैथिली को ।

भरत भैया ! मैं क्रोध के कारण थर-थर काँप रहा था… मैंने पक्का विचार बना लिया था… ये तलवार लेकर अब अगर आगे बढ़ा तो जो होगा… होगा… पर मैं अभी इसी समय रावण को यहीं मार दूँगा ।

आप समझ क्यों नही रहे ये सती है… श्राप देने के लिए इसे जल की भी आवश्यकता नही होगी… और प्राणनाथ लंकेश ! अगर इसने श्राप दे दिया ना… तो !

ठीक है, ठीक है…

ये कहते हुए म्यान में तलवार को रख लिया था रावण ने ।

सुन ! सीते ! एक महिने का समय दे रहा हूँ… विचार कर ले… नही तो ये रावण तुझे मार देगा ।

आप भी ना ! राक्षस राज ! मुझे देखो ! मैं तो कितनी कामुक हूँ सुन्दरता में कम नही हूँ किसी से… ये तो सूखी लकड़ी के समान है… चलिये ! मेरे साथ विहार कीजियेगा… ये कहते हुए एक सुन्दरी राक्षसी ने अपने हाथों की माला दशानन के गले में डाल दी थी तब हँसा था दशानन ।

ए – तुम लोग सुन लो इसको ताड़ना दो… इसको मनाओ… जैसे भी हो… करो… अगर नही माने तो मार दो इसे

अशोक वाटिका में रह रहीं राक्षसियों को… ये कहता हुआ रावण लौट गया ।

ए – मानवी ! मान जा !… तेरे सौभाग्य हैं कि राक्षस राज तुझे अपनी महारानी बनाना चाहते हैं मान जा !

ये ऐसे नही मानेगी… एक राक्षसी ने तलवार की नोक सीता जी के वक्ष पर रख दिया… एक राक्षसी ने अपने आड़े टेड़े पीले काले दाँत दिखाते हुए सीता जी की नाक के नजदीक गयी… और अट्टहास करती हुयी बोली… खा जाऊँगी ! मज़ा आएगा !

माँ मैथिली हिलकियों से रो रही हैं… फिर एकाएक डरने लग जाती हैं… और डरकर चारों ओर देखती हैं ।

भरत भैया ! ये सब दृश्य देखकर मेरा रक्त खौल रहा था ।

तभी मैंने अनुभव किया… एक सात्विकता का झौंका-सा आया… मैं चौंका… ये ऐसा झौंका था जैसे कोई महात्मा या सन्त गुजरे हमारे पास से तो सम्वेदनशील व्यक्ति को शान्ति का अनुभव होने लग जाता है ।

मैंने पत्तों को हटाया… और नीचे देखने लगा

अरे ! ये क्या ? एक मोटी काली तीन चोटी की हुयी थी

पर इसके मुख मण्डल में शान्ति थी… त्रिजटा ! हाँ, सब यही नाम लेकर इसे बुला रहे थे… सब इसका सम्मान कर रहे थे… स्वयं माँ वैदेही भी इसका आदर कर रही थीं ।


क्यों परेशान कर रही हो मेरी सखी सीता को ?

ये कहते हुए त्रिजटा ने डाँटा था सब राक्षसियों को ।

राक्षसराज कहकर गए हैं… हम क्या करें ?

त्रिजटा के पास में आकर सब राक्षसियों ने कहा ।

अच्छा बैठो यहाँ

सब राक्षसियाँ त्रिजटा के कहने पर बैठ गयी थीं ।

पता है आज सुबह ही मैंने एक सपना देखा…

भरत भैया ! वो त्रिजटा तो सबको अपना स्वप्न सुनाने लगी…।

देखो ! सुबह का सपना सत्य होता है… मेरा तो सुबह का सपना सत्य होता ही है… औरों का वही जाने ।

सपना ये था कि… लंका में एक बन्दर आया है…

भरत भैया ! मैं तुरन्त छुप गया वृक्ष में ही… मुझे लगा कहीं इस त्रिजटा ने मुझे देख तो नही लिया ?

और उस बन्दर की पूँछ में आग लगा दी गयी है… इसके बाद तो आश्चर्य ! वो बन्दर भागा… अपनी आग वाली पूँछ को लेकर ।

पूरी लंका में आग लगा दी उसने तो… धूं धूं धूं करके पूरी लंका जल उठी थी… ।

दशानन रावण तो तेल में नहाया हुआ था… रक्त वर्ण की माला गले में डाला हुआ था… और अट्टहास कर रहा था तभी एक तेल से भरे हुए गड्ढे में गिर गया ।

सब राक्षसियाँ ध्यान से सुन रही थीं… और अब डरने भी लगी थीं… भरत भैया ! मेरे मन में आया ये तो कोई साध्वी है ।

मैं अभी तो आया ही हूँ लंका में… और इसे स्वप्न भी आ गया ?

चलो ! त्रिजटा के कहने से अब तो मैं इस लंका को जलाऊँगा ही ।

ये सपना सत्य है मैं तुम सबको कह रही हूँ ये सपना पूर्ण सत्य है… बस दो-चार दिन में ही मेरा सपना पूरा होगा ।

इसलिये मैं तुम सबको कह रही हूँ… ये सब कष्ट सती सीता को मत दो… नहीं तो ! त्रिजटा ने जैसे ही इतना कहा…

सब राक्षसियाँ माँ मैथिली के चरणों में गिर गयी थीं ।

माँ मैथिली ने अरे ! ये क्या कर रही हो ? बस इतना ही कहा ।

कोई क्षमा माँग रही थीं… कोई कहने लगी पापी पेट के लिए ये सब करती हैं…।

अच्छा जाओ… अब तुम लोग जाओ… मैं बैठी हूँ यहाँ !

इतना कहकर त्रिजटा ने अन्य राक्षसियों को वहाँ से भेज दिया। ।


त्रिजटे ! सखी ! मुझे कहीं से अग्नि ला दो ना !

माँ सीता ने कहा था ।

नही है यहाँ अग्नि…? हम लोग राक्षस लोग अग्नि से दूर रहते हैं… ये कहते हुए त्रिजटा उठी और चलते हुए बोली मत डरो… ये राक्षस देखने में ही बलबान लगते हैं… पर होते बहुत डरपोक हैं… ।

हे सीते ! सब ठीक हो जाएगा… और मेरा सपना जो था ना उसे तो सत्य होना ही है… सपने में – गधे के ऊपर बैठ कर रावण दक्षिण दिशा की ओर जा रहा था… ओह ! अब तो विनाश निकट है इस लंका का…

ये कहते हुये त्रिजटा उठी… और बोली ! अब तुम कुछ देर आँखें बन्द करके विश्राम कर लो… सीते !

इतना बोलकर त्रिजटा चली गयी थी ।


अब अकेली बैठी माता सीता रोने लगीं…

फिर एकाएक उठकर खड़ी हो गयीं… अपने आँसू पोंछ डाले माँ सीता ने ।

भरत भैया ! मैं ध्यान से देख रहा था कि माँ वैदेही कर क्या रही हैं ।

सामने एक बरगद का वृक्ष था उसकी लम्बी जटायें जो धरती को छू रही थीं… एक जटा को तोड़ कर ले आयीं माँ वैदेही ।

और – हे मेरे प्राण धन ! हे मेरे करुणा निधान !… मैं अब इस शरीर को त्याग रही हूँ।

भरत भैया ! ये दृश्य देखते ही मैं तो काँप गया… ये क्या कर रही हैं मेरी माँ !

हे नाथ !
अब सहा नही जाता रावण की दृष्टि भी मुझ पर पड़ती है तो मुझे लगता है आपकी सीता अपवित्र हो गयी !

मुझे क्षमा करें प्राणनाथ !

इतना कहकर बरगद के वृक्ष की एक लम्बी जटा अपने गले में फंसाई… माँ सीता जी ने…

तभी…

इस धरती पर एक सुंदर राज्य है जिसका नाम है अयोध्या !

नरेश उसके थे चक्रवर्ती सम्राट श्री दशरथ जी ! तीन रानियाँ थीं उनकी एक कौशल्या, दूसरी कैकेई… और तीसरी सुमित्रा ।

इनके यहाँ पुत्र हुए थे चार…बड़े थे श्रीराम , भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न ।

भरत भैया ! मैंने राम कथा सुनानी शुरू कर दी थी

माँ मैथिली सब कुछ छोड़कर चारों ओर देखने लगी थीं… कि ये आवाज कहाँ से आ रही है… और मेरे प्रभु श्रीराम की चर्चा ! !

ऋषि विश्वामित्र लेने आये श्रीराम को… पर साथ में लक्ष्मण को भी ले गए ।

जनकपुर में विशाल धनुष यज्ञ का आयोजन था… शिव धनुष रखा था… और प्रतिज्ञा थी महाराज जनक की कि जो इस धनुष को तोड़ेगा उसे मेरी प्यारी पुत्री सिया सुकुमारी मिलेगी !

सबने प्रयास किया तोड़ने का धनुष… पर किसी से हिला तक नही तोड़ने की बात तो दूर की थी ।

तब श्रीराम उठे… और सबके सामने शिव धनुष को तोड़ दिया ।

विवाह हुआ… बड़े धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ ।

फिर वो सुकुमारी सिया आ गयीं अपने पिया के देश…

यानि अयोध्या ।

पर कैकेई के ईर्ष्या ने इस मधु में विष घोल दिया था ।

दो वरदान मांग लिए कैकेई ने… अपने पति दशरथ जी से… एक अपने पुत्र भरत को राज्य और दूसरा राम को वनवास ।

हँसते खेलते वनवास की ओर भी चल दिए थे श्रीराम

नही… नही नही केवल राम ही नही उनकी प्राण प्यारी मिथिलेश किशोरी भी गयीं थी वनवास में… और साथ में भाई लक्ष्मण भी ।

पर ये क्या हुआ… एक राक्षस आ गया सन्यासी का भेष बनाकर… और मांगने लगा भिक्षा !… भिक्षाम् देहि !

गए थे श्रीराम मृग के पीछे… और उनके पीछे लक्ष्मण भी गए थे ।

अकेली थी सीता !…।

कैसे मना कर दे… सन्यासी को भिक्षा देने से… सीता !

भिक्षा देने के लिए जैसे ही आई… कुटिया से बाहर…

हा हा हा हा हा हा अट्टहास कर उठा वह रावण…

और पुष्पक विमान में रख कर ले आया अपने राज्य लंका में ।

डरी-डरी रहती है सीता… रोती रहती है सीता

क्या करूँ कहाँ जाऊँ कुछ समझ नही पाती है सीता

आयेंगे मेरे प्राण धन !… पर कब ? कब ? कब ?

भरत जी रो रहे हैं… हिलकियों से… शत्रुघ्न कुमार रो रहे हैं… सुमन्त्र रो रहे हैं… कथा सुनाने वाले के तो आँसू ही नही रुक रहे ।

कुछ देर अवध के उद्यान में मौन छाया रहा…

फिर हनुमान जी बोले… भरत भैया ! मेरे आँसू गिरने लगे थे माँ सीता जी के ऊपर… मैं रोता जा रहा था और राम कथा को गाता जा रहा था मेरे मुख में थी वो राम नाम अंकित मुद्रिका… गिर गयी माँ के सामने

माँ ने मुद्रिका उठाई… देखा !

और सीधे बोल पड़ीं माँ मैथिली… “राम भक्त आ जाओ नीचे” ।

शेष चर्चा कल

रामचन्द्र गुन बरनै लागा
सुनतहि सीता कर दुःख भागा



(I narrated Ramkatha in Ashok Vatika – Hanuman) Part-20

Ramchandra Gun Barnain Laga… (Ramcharitmanas)

A strange thing happened yesterday… A reader of “Aaj ke Vichar” said to me Maharaj! Let me take you on a tour of “Sri Lanka” for two days….

I laughed… I thought he was joking….

But he was serious, come on! Tell me when should I get the ticket… He lives in Ghaziabad… He was repeatedly saying just for two days… But in the middle of “Autobiography of Pawanputra”.

I said sorry to that seeker… I have no interest to go to Sri Lanka.

But why?… His question was….

I said – what will I do there? Is my mother Maithili there?

But earlier it was there… and your elder brother Hanuman ji also went there… then why won’t you go there?

I said- Mother Maithili who was there… she was not of her own happiness… my mother Maithili has been crying in that land… then where Shri Kishori ji has cried… how can I wish… to go there?

You are so strange… won’t you go even to tell the story?

If I tell your story, will you not go to “Sri Lanka”?

No… I will not go… I said clearly.

Why is Sri Lanka the only place to narrate…?

There is Janakpur Dham in Nepal… there are other pilgrimages in India… there are many Dhams and anyway I am satisfied in my Shri Dham Vrindavan only.

′′ Sri Lanka ′′ I will not go… He probably did not like it… I said so clearly… He said to me that big saints and Mahatma people do go? I would have gone somewhere… why should I criticize someone… but I will not go… because my Kishori ji had cried a lot there… my voice choked while saying this.

Seekers! I am not writing this thing to show myself big… I am just like that, why am I… I do not know

Move ! What to listen to me, let’s go to the garden of Awadh… where Hanuman ji is narrating his autobiography till late night… and as a listener… you already know… Bharat ji, Shatrughan Kumar ji, General Secretary Sumantra, his son and all of them Friends.

Hanuman ji is flowing in the stream of the story.

Brother Bharat! Mandodari had caught Ravana’s sword… when Ravana was ready to kill Maithili.

owner ! You have made a big mistake, you have not brought this Sita, you have brought the death of Lanka.

Hut! Death (Kaal) has become a prisoner at the entrance of Lanka itself… Mayatnaya! When did you start getting scared…?

Ravana had again started trying to kill Maa Maithili with his sword.

Brother Bharat! I was trembling because of anger… I had made up my mind… If I go ahead with this sword now, whatever will happen… will happen… but I will kill Ravana here right now.

Why are you not understanding that this is Sati… It will not even need water to curse… And Prannath Lankesh! If he has cursed, hasn’t he?

OK OK…

Saying this, Ravana had kept the sword in its sheath.

Listen ! Sit! I am giving one month’s time… think about it… otherwise this Ravan will kill you.

You also ! Monster Raj! see me ! I am so sensual, I am not less than anyone in beauty… It is like dry wood… Let’s go! Take a walk with me… Saying this, a beautiful demon had put the garland of her hands on Dashanan’s neck, then Dashanan laughed.

A – You guys listen, chastise him… convince him… whatever you want… do it… if you don’t agree then kill him

Ravana returned saying this to the demons living in Ashok Vatika.

A – Manvi! Agree! You are fortunate that the demon king wants to make you his queen, agree!

She will not agree like this… A demon put the tip of the sword on Sita ji’s chest… A demon showing her crooked yellow black teeth went near Sita ji’s nose… and jokingly said… I will eat it! Have fun!

Mother Maithili is crying hysterically… then suddenly starts getting scared… and looks around in fear.

Brother Bharat! My blood was boiling seeing all these scenes.

That’s why I experienced… a whiff of goodness came… I was startled… it was such a whiff as if a Mahatma or a saint passes by, a sensitive person starts feeling peace.

I removed the leaves…and looked down

Hey ! What is it ? had a thick black triple braid

But there was peace in its face… Trijata! Yes, everyone was calling him by this name… Everyone was respecting him… Mother Vaidehi herself was also respecting him.

Why are you troubling my friend Sita?

Saying this, Trijata scolded all the demons.

Rakshasaraj has gone saying… what should we do?

All the demons came near Trijata and said.

nice sit here

All the demons sat down at the behest of Trijata.

You know, this morning I had a dream…

Brother Bharat! That Trijata started narrating her dream to everyone….

See ! Morning dreams come true… My morning dreams always come true… Others don’t know the same.

The dream was that… a monkey has come to Lanka…

Brother Bharat! I immediately hid in the tree itself… I felt that this Trijata has seen me somewhere?

And that monkey’s tail has been set on fire… After that, wonder! That monkey ran… with his fiery tail.

He set fire to the whole of Lanka… The whole of Lanka was burnt to ashes….

Dashanan Ravana was bathed in oil… a garland of blood color was put around his neck… and was laughing when he fell into a pit filled with oil.

All the demons were listening carefully… and now they were also scared… Bharat Bhaiya! It came to my mind that she is a sadhvi.

I have just come to Lanka… and has he also had a dream?

Let us go ! At the behest of Trijata, now I will definitely burn this Lanka.

This dream is true, I am telling you all that this dream is completely true… My dream will be fulfilled in just two-four days.

That’s why I am telling you all… don’t give all these troubles to Sati Sita… otherwise! As soon as Trijata said this…

All the demons had fallen at the feet of Maa Maithili.

Mother Maithili said Hey! What are you doing? That’s all said.

Some were apologizing… some started saying that the sinner does all this for the stomach….

Ok go… Now you guys go… I am sitting here!

Saying this, Trijata sent other demons away from there. ,

Trijte! Friend! Bring me fire from somewhere!

Mother Sita had said.

There is no fire here…? We demons stay away from fire… Saying this, Trijata got up and while walking said don’t be afraid… these demons look strong only to see… but they are very timid….

Hey Sita! Everything will be fine… And my dream has to come true… In the dream – Ravana was going towards the south side sitting on a donkey… Oh! Now the destruction of this Lanka is near.

Saying this, Trijata got up… and said! Now you close your eyes for some time and take rest… Sita!

After saying this, Trijata went away.

Now Mother Sita sitting alone started crying…

Then all of a sudden she stood up… Mother Sita wiped her tears.

Brother Bharat! I was carefully watching what Maa Vaidehi was doing.

There was a banyan tree in front of it, its long coiffures were touching the ground… Maa Vaidehi broke a coiffure and brought it.

And – O my life wealth! O my abode of compassion!… I am leaving this body now.

Brother Bharat! I was shocked to see this scene… what is my mother doing!

Hey Nath! Now I can’t tolerate even Ravana’s sight falls on me, so I think your Sita has become impure!

Pardon me Prannath!

Having said this, she tied a long hair of the banyan tree around her neck… Mother Sita ji…

Only then…

There is a beautiful kingdom on this earth whose name is Ayodhya!

His king was Chakravarti Samrat Shri Dashrath ji! There were three queens, one was Kaushalya, the second was Kaikeyi… and the third was Sumitra.

Four sons were born to him…the eldest were Shri Ram, Bharat, Lakshman and Shatrughan.

Brother Bharat! I started telling Ram Katha

Mother Maithili left everything and started looking around… where is this voice coming from… and the discussion of my Lord Shriram! ,

Sage Vishwamitra came to take Shriram… but took Laxman along with him.

A huge Dhanush Yagya was organized in Janakpur… Shiv Dhanush was kept… and Maharaj Janak had promised that the one who breaks this bow would get my beloved daughter Siya Sukumari!

Everyone tried to break the bow… But the matter of not breaking it was far removed from anyone.

Then Shriram got up… and broke Shiva’s bow in front of everyone.

The marriage took place… The marriage took place with great fanfare.

Then that Sukumari Siya came to her beloved’s country…

That is, Ayodhya.

But Kaikeyi’s jealousy mixed poison in this honey.

Kaikeyi asked for two boons… from her husband Dasharatha… one kingdom to her son Bharat and second exile to Ram.

Shriram had also gone towards exile while laughing.

No… no no not only Ram but his soulmate Mithilesh Kishori also went into exile… and along with brother Laxman too.

But what happened… A demon came disguised as a monk… and started begging!… Bhiksham dehi!

Shri Ram went after the deer… and Lakshman also went after him.

Sita was alone!

How to refuse… from giving alms to a monk… Sita!

As soon as I came to give alms… out of the cottage…

Ha ha ha ha ha ha laughing up that Ravana.

And Pushpak brought it to his kingdom Lanka by keeping it in the plane.

Sita is scared… Sita is crying

What should I do, where should I go, Sita does not understand anything.

My life and wealth will come!… But when? When ? When ?

Bharat ji is crying… with a sigh… Shatrughan Kumar is crying… Sumantra is crying… the one who is telling the story cannot stop shedding tears.

For some time there was silence in the garden of Awadh.

Then Hanuman ji said… Brother Bharat! My tears started falling on Maa Sita ji… I kept on crying and kept on singing the story of Ram, I had a ring inscribed with the name of Ram in my mouth… Fell down in front of my mother.

Mother picked up the ring… saw!

And mother Maithili spoke straight… “Ram bhakt come down”.

rest of the discussion tomorrow

Ramchandra began to describe the virtues Hearing this, Sita’s suffering fled

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