वृंदावन की गली में एक छोटा सा मगर साफ़ सुथरा,सजा संवरा घर था।
एक गोपी माखन निकाल रही है और मन ही मन अभिलाषा करती है कि : आज कन्हैया अपनी टोली के साथ उसके घर माखन चोरी करने पधारे तो कितना ही अच्छा हो।
आज “कन्हैया” आये और मैं अपनी आँखों से कान्हा की वो माखन लीला निहार सकूँ।
उसके सांवरे सलोने मुखड़े पर लिपटा सफ़ेद माखन कितना मनोहर दिखाई देगा ? काश आज कान्हा मेरे घर आ जाये।
ऐसा करती हूँ, आज माखन में थोड़ा केसर मिला देती हूँ, थोड़ा बादाम, इलायची और किशमिश, मिश्री भी मिलाती हुं।
कान्हा को कितना भायेगा न। माखन की सुवास और स्वाद उसे कितना अच्छा लगेगा। लो, अब तो माखन भी तैयार हो गया।
अब ऐसा करती हूँ कि मटकी में थोड़ा शीतल जल डाल कर माखन का पात्र उसमें रख देती हूँ। इससे माखन पिघलेगा नहीं।
अब गोपी सोचती है कि कान्हा को कैसे बुलाऊँ ? कौन सी तरकीब लगाऊं कि वो आ जाये ? क्या करूँ ? और गोपी का विरह बढता जाता है।
चलो गली में देखती हूँ, शायद कोई बात बन जाए..
तभी मनसुखा दिखाई देता है। अरे ; यह मनसुखा कहाँ भागा जा रहा है ? ज़रूर कान्हा संग खेलने जा रहा होगा। इसे बुलाती हूँ।
मनसुख!! ओ मनसुखा!! तनिक यहां तो आ। मेरा एक काम कर दे।
अरे तुझे माखन दूँगी आज मैंने बहुत अच्छा माखन निकाला है। तनिक आ तो।
मनसुखा के दिमाग में तुरंत नयी क्रीड़ा आई, दौड़ते दौड़ते बोला मुझे देर हो रही है, और वहां कान्हा खेलने के लिए इंतज़ार कर रहा होगा।
अब यह गोपांगना क्या करे ? कैसे बुलाये कान्हा को ? लेकिन आज इस गोपी का बाँवरा मन कह रहा है कि वो छलिया ज़रूर आएगा।
.
यहाँ से छुप के उसकी लीला देखूँगी। बस अब आ जाये..।
आ जा न कान्हा — देख अब ज़्यादा सता मत…।
और गोपी की आंखों से विरह के अश्रृ निकलने लगते हैं।
अब बाँवरी गोपी सोचती है कि जरा देखूं , बाहर कहीं आया तो नहीं ? फिर मन में सोचने लगती है।
अरे, वो क्यों आएगा.. मैं गरीब जो हूँ .. वो तो अच्छे अच्छे घरों में जाता होगा .. मेरा माखन भला उसे कहाँ भायेगा
क्या करूँ, यह तड़प तो बढ़ती ही जाती है .. सुन ले न कान्हा मेरी पुकार…
अरे…. अब यह क्या हो गया , गोपी तो रुदन करते करते कान्हा जी के बारे में सोचते सोचते ही सो गयी।
और हमारा लाला कन्हैया भी इसी अवसर की ताक में था। सारी बाल गोपाल मंडली चुपके चुपके आँगन से भोजन शाला की ओर बढने लगी और माखन की खोज शुरू हो गयी।
कान्हा जी ने कहा : अरे मनसुखा !! तू तो कह रहा था कि गोपी ने बड़ा अच्छा माखन निकाला है। यहाँ तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा।
अरे – अरे- वो देखो, एक सुन्दर सी मटकी पड़ी है उसमें देखो .. अरे वाह!! मिल गया मिल गया…
आओ आओ सभी आओ !! ढक्कन खोलो .. अहा कितनी सुन्दर सुवास है। तनिक खा कर तो बताओ कैसा है
अरे स्वाद का तो कोई जवाब ही नहीं .. ऐसा माखन तो मैया ने भी कभी नहीं बनाया ..
भक्तो… अब कान्हा जी का मनोरथ भी देखिए।
अरे :आज तो मन यह कर रहा है कि यह गोपी अपनी गोद में बिठा कर अपने हाथों से यह माखन खिलाये।
ज़रा कोयल की आवाज तो निकालो या ताली लगाओ ताकि गोपी आ जाये।
सखा बोले कि मार पड़ेगी हम सभी को, जो कोई आवाज भी निकली तो।
कान्हा जी ने कुछ नहीं होगा। मैं कहता हूँ वैसा करो। बस फिर क्या ? सभी ताली बजाने और कोयल की आवाज निकालने लगे।
बाँवरी गोपी तो पहले ही मंडली की आवाज से ही जागकर यह सब संवाद सुन सुन कर मन ही मन आनंदित हो रही है..।
और गोपी की आंखों में अब विरह के बदले हर्षाश्रृ बह रहे हैं और अपनी सुध बुध भूलती जा रही है।
कान्हा जी को ज्ञात था कि गोपी अंदर ही है। तो कान्हा जी अंदर गये तो देखा कि एक कक्ष में गोपी अपनी सूध-बूध खोए बैठी है और आंखों से अश्रु बह रहे हैं।
कान्हा जी गोपी के पास जाकर कह रहे है.. अब यहाँ छुप के क्यों बैठी हो.. आओ न माखन खिलाओ न .. आज तो तेरे हाथों से ही माखन खाऊंगा ..।
कान्हा जी ने कहा कि देख गोपी : तेरा मनोरथ था कि आज मैं तेरे घर का माखन खाउं।
तो मेरा भी यह मनोरथ है कि तेरे हाथों से माखन खाउं। मैं तेरा मनोरथ पूर्ण करता हूं तो तु भी मेरा मनोरथ पूर्ण कर।
.
बाँवरी गोपी का तो मानों जन्म सफल हो गया .. जन्मों की कामना फलीभूत हो गयी।
अब गोपी कान्हा को गोद में लेकर माखन खिला रही है ..
आँखों से आंसुओं की धारा बहे जा रही है ..
और कान्हा जी अपने नन्हें नन्हें हाथों से गोपी के आंसू पोंछ रहे है और खुद भी आंसू बहाते हुए कह रहे है…
अरी, तू रो क्यों रही है .. देख मैं आ गया हूँ न .. देख मैं हूँ न .. देख मैं हूँ न..
गोपी रोते हुए माखन खिला रही है और कान्हा जी भी रोते हुए माखन खा रहे हैं।
आहाहा… कितना अद्भुत और अलौकिक द्रश्य है। इस गोपी के भाग्य के क्या कहने।
जय जय श्री राधे )
वृंदावन की गली में एक छोटा सा मगर साफ़ सुथरा,सजा संवरा घर था। एक गोपी माखन निकाल रही है और मन ही मन अभिलाषा करती है कि : आज कन्हैया अपनी टोली के साथ उसके घर माखन चोरी करने पधारे तो कितना ही अच्छा हो। आज “कन्हैया” आये और मैं अपनी आँखों से कान्हा की वो माखन लीला निहार सकूँ। उसके सांवरे सलोने मुखड़े पर लिपटा सफ़ेद माखन कितना मनोहर दिखाई देगा ? काश आज कान्हा मेरे घर आ जाये। ऐसा करती हूँ, आज माखन में थोड़ा केसर मिला देती हूँ, थोड़ा बादाम, इलायची और किशमिश, मिश्री भी मिलाती हुं। कान्हा को कितना भायेगा न। माखन की सुवास और स्वाद उसे कितना अच्छा लगेगा। लो, अब तो माखन भी तैयार हो गया। अब ऐसा करती हूँ कि मटकी में थोड़ा शीतल जल डाल कर माखन का पात्र उसमें रख देती हूँ। इससे माखन पिघलेगा नहीं। अब गोपी सोचती है कि कान्हा को कैसे बुलाऊँ ? कौन सी तरकीब लगाऊं कि वो आ जाये ? क्या करूँ ? और गोपी का विरह बढता जाता है। चलो गली में देखती हूँ, शायद कोई बात बन जाए.. तभी मनसुखा दिखाई देता है। अरे ; यह मनसुखा कहाँ भागा जा रहा है ? ज़रूर कान्हा संग खेलने जा रहा होगा। इसे बुलाती हूँ। मनसुख!! ओ मनसुखा!! तनिक यहां तो आ। मेरा एक काम कर दे। अरे तुझे माखन दूँगी आज मैंने बहुत अच्छा माखन निकाला है। तनिक आ तो। मनसुखा के दिमाग में तुरंत नयी क्रीड़ा आई, दौड़ते दौड़ते बोला मुझे देर हो रही है, और वहां कान्हा खेलने के लिए इंतज़ार कर रहा होगा। अब यह गोपांगना क्या करे ? कैसे बुलाये कान्हा को ? लेकिन आज इस गोपी का बाँवरा मन कह रहा है कि वो छलिया ज़रूर आएगा। . यहाँ से छुप के उसकी लीला देखूँगी। बस अब आ जाये..। आ जा न कान्हा — देख अब ज़्यादा सता मत…। और गोपी की आंखों से विरह के अश्रृ निकलने लगते हैं। अब बाँवरी गोपी सोचती है कि जरा देखूं , बाहर कहीं आया तो नहीं ? फिर मन में सोचने लगती है। अरे, वो क्यों आएगा.. मैं गरीब जो हूँ .. वो तो अच्छे अच्छे घरों में जाता होगा .. मेरा माखन भला उसे कहाँ भायेगा क्या करूँ, यह तड़प तो बढ़ती ही जाती है .. सुन ले न कान्हा मेरी पुकार… अरे…. अब यह क्या हो गया , गोपी तो रुदन करते करते कान्हा जी के बारे में सोचते सोचते ही सो गयी। और हमारा लाला कन्हैया भी इसी अवसर की ताक में था। सारी बाल गोपाल मंडली चुपके चुपके आँगन से भोजन शाला की ओर बढने लगी और माखन की खोज शुरू हो गयी। कान्हा जी ने कहा : अरे मनसुखा !! तू तो कह रहा था कि गोपी ने बड़ा अच्छा माखन निकाला है। यहाँ तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा। अरे – अरे- वो देखो, एक सुन्दर सी मटकी पड़ी है उसमें देखो .. अरे वाह!! मिल गया मिल गया… आओ आओ सभी आओ !! ढक्कन खोलो .. अहा कितनी सुन्दर सुवास है। तनिक खा कर तो बताओ कैसा है अरे स्वाद का तो कोई जवाब ही नहीं .. ऐसा माखन तो मैया ने भी कभी नहीं बनाया .. भक्तो… अब कान्हा जी का मनोरथ भी देखिए। अरे :आज तो मन यह कर रहा है कि यह गोपी अपनी गोद में बिठा कर अपने हाथों से यह माखन खिलाये। ज़रा कोयल की आवाज तो निकालो या ताली लगाओ ताकि गोपी आ जाये। सखा बोले कि मार पड़ेगी हम सभी को, जो कोई आवाज भी निकली तो। कान्हा जी ने कुछ नहीं होगा। मैं कहता हूँ वैसा करो। बस फिर क्या ? सभी ताली बजाने और कोयल की आवाज निकालने लगे। बाँवरी गोपी तो पहले ही मंडली की आवाज से ही जागकर यह सब संवाद सुन सुन कर मन ही मन आनंदित हो रही है..। और गोपी की आंखों में अब विरह के बदले हर्षाश्रृ बह रहे हैं और अपनी सुध बुध भूलती जा रही है। कान्हा जी को ज्ञात था कि गोपी अंदर ही है। तो कान्हा जी अंदर गये तो देखा कि एक कक्ष में गोपी अपनी सूध-बूध खोए बैठी है और आंखों से अश्रु बह रहे हैं। कान्हा जी गोपी के पास जाकर कह रहे है.. अब यहाँ छुप के क्यों बैठी हो.. आओ न माखन खिलाओ न .. आज तो तेरे हाथों से ही माखन खाऊंगा ..। कान्हा जी ने कहा कि देख गोपी : तेरा मनोरथ था कि आज मैं तेरे घर का माखन खाउं। तो मेरा भी यह मनोरथ है कि तेरे हाथों से माखन खाउं। मैं तेरा मनोरथ पूर्ण करता हूं तो तु भी मेरा मनोरथ पूर्ण कर। . बाँवरी गोपी का तो मानों जन्म सफल हो गया .. जन्मों की कामना फलीभूत हो गयी।
Now Gopi is feeding butter with Kanha in her lap. Tears are flowing from the eyes.. And Kanha ji is wiping the tears of Gopi with his tiny hands and saying while shedding tears himself… Ari, why are you crying.. see I am here.. see I am there.. see I am there.. Gopi is feeding butter while crying and Kanha ji is also eating butter while crying. Ahaha… What a wonderful and supernatural sight. What to say about the fate of this Gopi. Hail Hail Lord Radhe )