बैठे घनश्याम सुन्दर खेवत हैं नाव ।
आज सखी नन्दलाल के संग खेलवे को दाव ।।
पथिक हम खेवट तुम लीजिये उतराय
बीच धार माँझ रोकि मिषहि मिष दुराय ।।
यमुना गम्भीर नीर अति अत रंग लोले ।
गोपिन प्रति कहन लागे मीठे मीठे मृदु बोले ।। नन्दनन्दन डरपत हैं राखिये पद पास। याही मिष मिल्यो चाहे परमानंददास।। गोपियों का काम है श्रीराधा-कृष्ण प्रिया-प्रियतम के मिलन- आनंद की व्यवस्था करना और उसे पूर्ण करके पूर्ण रूप से देखना इसी में उनकी चरम तृप्ति है। श्रीकृष्ण सदा रासेश्वर हैं. वह अपनी लीला भक्तों के आनंद के लिए करते हैं। नौका विहार लीला श्रीकृष्ण की नित्यविहार लीला है जो चार नित्य तत्वों- श्रीराधा, श्रीकृष्ण गोपियों व श्रीयमुनाजी का समवेत रूप है। स्कन्दपुराण में श्रीराधा को श्रीकृष्ण की आत्मा व गौ, गोप व गोपियों को उनकी कामनाओं के रूप में निरूपित किया है। कबीर के शब्दों में-
‘कबिरा कबिरा क्या कहे चल यमुना के तीर एक-एक गोपी चरण पर बारी कोटि कबीर ।।
यह संसार एक भवसागर है और कृष्ण नाम रूपी नौका से ही इसे पार किया जा सकता है।