माता यशोदा वात्सल्य प्रेम की साकार मूर्ति हैं। परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्णचन्द्र की नित्यलीला में वे नित्य माता है। यशोदा रूपी वात्सल्य-सिन्धु के मन्थन से जो रत्न प्रकट हुआ, वही नीलमणि श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण हैं अर्थात् यशोदा को वात्सल्य-सुख प्रदान करना भी निर्गुण-निराकार परमात्मा के श्रीकृष्णावतार का एक महत्त्वपूर्ण कारण है।
यशोदाजी को ढलती उम्र में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी, उनके लिये तो यह सौभाग्य पत्थर पर दूब जमने-जैसा था। उनके लिये सारा संसार उनके नीलमणि तक ही केन्द्रित हो गया है। जैसे-जैसे नीलमणि बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे ही मैया का वात्सल्य भी प्रतिक्षण वर्धमान हो रहा है। वे अपने कन्हैया को देख-देखकर फूली नहीं समाती हैं। वे विधाता से प्रार्थना करती हैं-हे विधाता ! मेरा वह दिन कब आयेगा, जब मैं अपने लाल को घुटनों के बल चलता हुआ देखूँगी–
नंदघरनि आनँदभरी, सुत स्याम खिलावै।
कबहिं घुटुरुवनि चलहिंगे, कहि बिधिहि मनावै॥
तथा कभी श्रीकृष्णचन्द्र से निहोरा करने लगती हैं-
नान्हरिया गोपाल लाल, तू बेगि बड़ो किन होहि।
जननी का मनोरथ पूर्ण करते हुए श्रीकृष्णचन्द्र घुटनों के बल चलने लगे हैं-श्रीनन्दरायजी का मणिमय आँगन है, उसमें नीलमणि घनश्याम किलकारी मारते हुए घुटनों के बल चल रहे हैं। मणिखचित आँगन में उन्हें अपना प्रतिबिम्ब दिखायी देता है और वे उसे अपने नन्हें-नन्हें हाथों से पकड़ने का प्रयास करते हैं।
भक्त कवि सूरदासजी अपनी बन्द आँखों से इस दृश्य का शब्दचित्र प्रस्तुत करते हुए कहते हैं-
किलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मनिमय कनक नंद के आँगन, बिंब पकरिबैं धावत्॥
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं, कर सौं पकरन चाहत।किलकि हँसत राजतहै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिंअवगाहत॥
इसी भाव का एक अन्य पद द्रष्टव्य है–
(माई) बिहरत गोपाल राइ, मनिमय रचे अंगनाइ,
लरकत पररिंगनाइ, घूटुरूनि डोलै।
न निरखि-निरखि अपनो प्रतिबिंब, हँसत किलकत औ,
पाछै चितै फेरि–फेरि मैया-मैया बोलै॥
लीलामय मैया को सुख देने के लिये कभी लड़खड़ाते हैं, कभी किलकारी मारते हैं, कभी हँसते हैं और कभी यशोदाजी की ओर देखकर मैया-मैया’ कहते हैं, इन सबसे मैया आनन्दित होती हैं, परंतु माँ का स्नेह शिशु को रुदन करते देख जितना उमड़ता है, उतना हँसते देखकर नहीं, अतः मैया के सुख के लिये लीलामय रुदन का नाट्य करते हैं। वे मणिजटित आँगन में घुटनों के बल चल रहे हैं, सहसा उनको अपने ही मुखकमल की परछाई दिखायी देती है। उसे देखकर वे आश्चर्यचकित हो जाते हैं, फिर उसे अपना सखा बनाने के लिये अपनी भुजा आगे बढ़ाते हैं, परन्तु उसे पकड़ नहीं पाते, इससे दुखी होकर माँ के मुख की ओर देखकर रोने लगते हैं–
रतनभूमि पर चलत बकैयाँ।
चकित भये अति कान्ह बिलोकत निज मुख-पंकजकी परछैयाँ॥
निज अनुहार निहारि सखा इक, पकरन हेतु पसारी बैयाँ।
पकरि न सके, सखेद तेरि जननी-मुख रोवन लगे कन्हैया॥
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Mother Yashoda is the embodiment of affectionate love. She is the eternal mother in the daily life of Supreme God Shri Krishnachandra. The gem that appeared from the churning of the river of affection in the form of Yashoda is the sapphire, Shyamsundar Shri Krishna, that is, providing the happiness of affection to Yashoda is also an important reason for the incarnation of Shri Krishna, the formless and formless God. Yashoda ji was blessed with a son at an advanced age, for her this good fortune was like a stone solidifying on a stone. For them the whole world has centered around their sapphire. As the sapphires are increasing, mother’s love is also increasing every moment. She never ceases to feel happy after seeing her Kanhaiya. She prays to the Creator – O Creator! When will that day come when I will see my son walking on his knees?
Nandgharani Anandbhari, Sut Syam Khilavai. Sometimes we will walk in Ghuturuvani, somewhere we will celebrate Bidhihi.
And sometimes she starts looking at Shri Krishna Chandra-
Nanhariya Gopal Lal, who are you?
Fulfilling the wish of his mother, Shri Krishnachandra has started walking on his knees – There is a beautiful courtyard of Shri Nandraiji, in it Neelmani Ghanshyam is walking on his knees while giggling. They see their own reflection in the jeweled courtyard and try to catch it with their little hands.
Devotee poet Surdasji presents a vignette of this scene with his eyes closed and says –
Kilkat kanh ghutruvan coming. Manimaya Kanak Nanda’s courtyard, I run to catch the image. Sometimes Hari looks at the shade himself, wants to catch it with his hands.
Another verse in the same spirit is visible –
(Mai) Biharat Gopal Rai, Manimay Rache Angnai, Larkat parringnai, knees shaking. Not looking at your reflection, laughing and smiling, Then the mind says again and again, Maiya-Maiya.
To give happiness to Leelamaya Maa, sometimes he stumbles, sometimes he laughs, sometimes he laughs and sometimes he looks towards Yashodaji and says ‘Maaya-Maaya’, all this makes Maaya happy, but the mother’s love swells more than seeing the child crying. Yes, I don’t like seeing people laughing that much, so for the sake of mother’s happiness they do a drama of crying. He is walking on his knees in the bejeweled courtyard, when suddenly he sees the shadow of his own lotus face. They are surprised to see him, then they extend their arms to make him their friend, but are unable to catch him, feeling sad due to this, they look at their mother’s face and start crying –
Ongoing dues on Ratanbhoomi. The shadows of my face and eyes were so astonished that I was very surprised. There is one friend looking at my face, she is spreading her wings to embrace me. Kanhaiya, if you can’t catch it, your mother’s face will be filled with tears. ,