एक बार बालक श्रीकृष्ण अपनें सखाओं संग खेल रहे थे. श्रीदामा, बलराम तथा मनसुखा आदि उनके साथ रसमयी क्रीड़ा का आनन्द ले रहे थे. इस खेल में एक बालक दूसरे के हाथ में ताली मारकर भागता और दूसरा उसे पकड़ने का प्रयास करता था. बलदाऊ को लगा कही कान्हा को चोट न लग जाये. इसीलिए उन्होनें कान्हा को समझाया- मोहन तुम मत भागो. अभी तुम छोटे हो, तुम्हारे पैरों में चोट लग जायेगी.
मोहन मासूमियत से बोले- दाऊ ! मेरा शरीर बहुत बलशाली है. मुझे दौड़ना भी आता है. इसीलिये मुझे अपने साथियों संग खेलने दो. मेरी जोड़ी श्रीदामा हैं. वह मेरे हाथ में ताली मारकर भागेगा और मैं उसे पकडूँगा.
श्रीदामा ने कहा – ‘नहीं’, तुम मेरे हाथ में ताली मारकर भागो. मैं तुम्हें पकड़ता हूँ. इस प्रकार कान्हा श्रीदामा के हाथ में ताली मारकर भागे और श्रीदामा उन्हें पकड़ने के लिये उनके पीछे-पीछे दौड़ा. थोड़ी दूर जाकर ही उसने श्याम को पकड़ लिया.
नटखट कान्हा बोले – मैं तो जानबूझ खड़ा हो गया हूँ. तुम मुझे क्यों छूते हो. ऐसा कहकर कान्हा अपनी बात को सही साबित करने के लिये, लगे श्रीदामा से झगड़ने. श्रीदामा भी क्रोधित होकर झगड़ने लगे कृष्ण से.
श्री दामा जी बोले- पहले तो तुम जोश में आकर दौड़ने खड़े हो गये और जब हार गये तो झगड़ा करने लगे. यह सब दृश्य बलदाऊ देख रहे थे.
वह दोनों के झगड़े के बीच ही बोलने लगे- श्रीदामा ! इसके तो न माता हैं ना पिता ही. नन्दबाबा और यशोदा मैया ने इसे कही से मोल लिया है. यह हार जीत तनिक भी नही समझता. स्वयं हारकर सखाओं से झगड़ पड़ता है. ऐसा कहकर, उन्होंने कन्हैया को ड़ांटकर घर भेज दिया.
कान्हा रोते हुये घर पहुँचे. उन्हें रोता देख मैया यशोदा कान्हा को गोद मे ले, रोने का कारण पूछने लगी.
मईया – लाला ! क्या बात है रो क्यों रहे हो ?
कान्हा ने रोते हुये कहा- मैया ! दाऊ ने आज मुझे बहुत ही चिढ़ाया. वे कहते हैं तू मोल लिया हुआ है, यशोदा मैया ने भला तुझे कब जन्म दिया. मैया मैं क्या करुँ, इसे क्रोध के मारे खेलने नही जाता. दाऊ ने मुझसे कहा कि बता तेरी माता कौन है? तेरे पिता कौन हैं? नन्द बाबा तो गौरे हैं और यशोदा मईया भी गोरी हैं. फ़िर तू सांवला कैसे हो गया? ग्वाल बाल भी मेरी चुटकी लेते हैं और मुस्कुराते हैं. तुमने भी केवल मुझे ही मारना सीखा है, दाऊ दादा को तो कभी डाँटती भी नहीं. "मैया मोहिं दा बहुत खिझायौ। मोसों कहत मोल कौ लिन।ह्हौं तू जसुमति कब जायौ॥
कहा कहौं इहिं रिस के मारे खेलत हौं नहि जात। पुनि-पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्याम सरीर। चुटकी दै दै हंसत ग्वाल सब सिखै देत बलबीर॥
तू मोहीं कों मारन सीखी दाहिं कबहुं न खीझै॥ मोहन-मुख रिस की ये बातें जसुमति सुनि-सुनि रीझै॥
सुनहु कान्ह बलभद्र चबा जनमत ही कौ धूत। सूर श्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत”
मैया ने कन्हैया के आँसू पोछते हुये कहा- मेरे प्यारे कान्हा. बलराम तो चुगलखोर है, वह जन्म से ही धूर्त है. तू तो मेरा दुलारा लाल है. काला कहकर दाऊ तुम्हें इसलिये चिढ़ाता है क्योंकि तुम्हारा शरीर तो इन्द्र-नीलमणि से भी सुन्दर है, भला दाऊ तुम्हारी बराबरी क्या करेगा. मेरे लाल, मेरे कान्हा. मैं गायों की शपथ लेकर कहती हूँ कि मैं ही तुम्हारी माता हूँ और तुम ही मेरे पुत्र हो. इस तरह से बाल कृष्ण अपनी बाल लीलाओ से सब का मन मोह लेते है.
Once the child Shri Krishna was playing with his friends. Shridama, Balram and Mansukha etc. were enjoying the ritualistic games with them. In this game, one child would run away by clapping the other’s hand and the other would try to catch him. Baldau felt that Kanha might get hurt. That’s why he explained to Kanha – Mohan, don’t run away. You are young now, your feet will hurt.
Mohan said innocently – Dau! My body is very strong. I also know how to run. That’s why let me play with my friends. My pair is Sridama. He will run away clapping my hand and I will catch him.
Sridama said – ‘No’, you clap my hands and run away. i catch you In this way Kanha ran away clapping Shridama’s hand and Shridama ran after him to catch him. He nabbed Shyam at a short distance only.
Naughty Kanha said – I have deliberately stood up. why you touch me By saying this, Kanha started fighting with Shridama to prove his point right. Shridama also got angry and started quarreling with Krishna.
Shri Dama ji said – At first you started running in enthusiasm and when you got defeated, you started fighting. Baldau was watching all this scene.
He started speaking in the midst of the quarrel between the two – Sridama! He has neither mother nor father. Nandbaba and Yashoda Maiya have bought it from somewhere. He doesn’t even understand victory or defeat. After losing himself, he quarrels with his friends. Having said this, he scolded Kanhaiya and sent him home.
Kanha reached home crying. Seeing him crying, mother Yashoda took Kanha in her lap, started asking the reason for crying.
Mother – Lala! What’s the matter why are you crying?
Kanha said while crying – Mother! Dau teased me a lot today. They say that you have been bought, when did mother Yashoda give birth to you. Mother, what should I do, I don’t go to play it out of anger. Dau told me who is your mother? Who is your father? Nand Baba is fair and Yashoda Maiya is also fair. Then how did you become dark? Gwal Bal also pinches me and smiles. You have also learned to kill only me, you never even scold Dau Dada. “Mother, Mohinda has irritated you a lot. Why do you talk about the months? Oh, when did you go to Jasumati?”
I can’t say I’m playing because of this anger. Again and again he says, ‘Who is your mother? Who is your father?’ Gore Nanda Jasoda Gori Tu Kat Syam Sarir. The shepherds laughed with a pinch and Balbir taught them all. You have learned to kill me, and your right hand never gets angry. Jasumati is pleased to hear these words of Mohan-mukh Ris. Listen, Kanha, Balbhadra, chew the opinion of the people. Sur Shyam Mohin Godhan Ki Saun Haun Mata Tu Put”
Mother said while wiping Kanhaiya’s tears – My dear Kanha. Balram is a gossip, he is cunning by birth. You are my loving son. Dau teases you by calling you black because your body is more beautiful than Indra-Neelmani, how will Dau match you. My son, my Kanha. I swear by the cows that I am your mother and you are my son. In this way, Bal Krishna fascinates everyone with his childhood pastimes.