. “.प्रेम की प्रकाष्ठा” दिव्य अलौकिक, अनन्य, अनन्त,आत्मा और परमात्मा का मिलन है। श्री श्यामा श्याम आठों पहर एक दुसरे को मिलने को व्याकुल रहते हैं। इसी प्रेम से सृष्टि का कण-कण स्पंदित और रोमांचित है। राधा कृष्ण प्रेम के प्रतीक हैं। श्रीकृष्ण की समस्त चेष्टा राधा जी की प्रसन्नता हेतु और श्रीराधा जी की अपूर्व निष्ठां श्रीकृष्ण की प्रसन्नता का प्राण है। श्रीकृष्ण वृन्दावन छोड़ मथुरा को जा रहे हैं, गोप गोपिकाओं से विदा ले अक्रूर जी संग मथुरा के रास्ते पर निकल पड़े हैं। दूर एक पेड़ के नीचे बैठ श्रीराधा जी श्रीकृष्ण को निहार रहीं हैं। मौन, आँखें भरी पर आँसू नहीं गिरने दिए। राधा पर दृष्टि जाते ही श्रीकृष्ण बोले- "काका रथ रोको" श्रीकृष्ण राधा जी की ओर भागे। उनके पास पहुँच कर बोले- "राधे ! मैं जा रहा हूँ, मुझे रोकोगी नहीं" श्रीराधा जी मौन रहीं तो कृष्ण फिर बोले "राधे मुझे रोकोगी नहीं"। राधाजी रूंधे गले से धीरे से बोल उठी-"कान्हा जब आप ने जाने का निश्चय कर ही लिया है तो अब आप को कौन रोक सकता है।" कृष्ण बोले- नहीं, राधे ! तुम एक बार मुझे कहो तो मैं नहीं जाऊँगा" श्रीराधा कहती हैं "कान्हा ! अगर आप सब से पहले मेरे पास आते तो मैं आप को रोक लेती, और तब आप कहाँ जाते, पर अब नहीं क्या राधा इतनी स्वार्थी हो गई राधा की ख़ुशी तो अपने कान्हा की ख़ुशी में ही है।" कृष्ण ने कहा- "मुझ से एक वादा करो प्रिये कभी आँख न छलके और वृज न छूटे, गोप-गोपिकाएँ सब तुम्हारी शरण में हैं अब।" श्रीकृष्ण का मन भर आया झट से बांसुरी राधाजी के चरणों में रख और रथ की ओर भागे। "काका ! जल्दी चलो" कान्हा ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा "जल्दी रथ हाँको जल्दी" अक्रूर जी परेशान हो गए। कान्हा बोले-"काका, अगर मेरी आँख छलक गई तो राधा के आँसुओं से पूरा ब्रह्माण्ड डूब जाएगा।" संत कहते हैं श्री राधा जी ने पूरी लीला के दौरान एक भी आंसू नहीं गिरने दिया। और न ही वृज से कभी बाहर गई कोई गोप गोपी भी वृज से बाहर नहीं गया। जब तक गोविन्द ने उन्हें 100 वर्ष बाद मिलने को बुलाया नहीं। अपने प्रेमास्पद की प्रसन्नता के लिए अपने आँसुओं को विरह रुपी अग्नि में जला दिया। यही तो है "प्रेम की प्रकाष्ठा"। "जय जय श्री राधे"
, “.Pearm of Love” is the union of the divine, supernatural, exclusive, eternal, soul and divine. Shree Shyama Shyam is anxious to meet each other at eight o’clock. Every particle of the universe is pulsating and thrilled with this love. Radha Krishna is a symbol of love. All the efforts of Shri Krishna for the happiness of Radha ji and the unparalleled loyalty of Shri Radha ji is the life of Shri Krishna’s happiness. Shri Krishna is leaving Vrindavan and going to Mathura, leaving the Gop Gopikas, he has set out on the way to Mathura with Akrur ji. Sitting under a tree far away, Shri Radha ji is looking at Shri Krishna. Silence, eyes filled but did not let the tears fall. As soon as he saw Radha, Shri Krishna said – “Stop Kaka’s chariot” Shri Krishna ran towards Radha ji. Reaching him, he said – “Radhe! I am going, you will not stop me.” When Shri Radha remained silent, Krishna said again “Radhe will not stop me”. Radhaji spoke softly with a closed throat – “Kanha, when you have decided to go, then who can stop you now.” Krishna said – No, Radhe! If you tell me once, I will not go” Sriradha says “Kanha! If you had come to me first, I would have stopped you, and then where would you go, but not now, has Radha become so selfish, Radha’s happiness is only in the happiness of her Kanha.” Krishna said- “From me Make a promise, dear, never spill your eyes and let Vraj not leave, all the gop-gopikas are in your shelter now.” Krishna’s mind was filled with a hurry, put the flute at Radhaji’s feet and ran towards the chariot. “Kaka! Come soon.” Kanha didn’t look back. “Hurry, the chariot will be soon.” Akrur ji got upset. Kanha said – “Uncle, if my eyes are spilled, then the whole universe will be drowned by Radha’s tears.” The saint says Shri Radha ji. He didn’t let a single tear fall during the whole leela. Nor even any gopi who had ever left Vraj went out of Vraj, until Govinda called to meet him after 100 years. To the delight of his beloved, Burned the tears in the fire of separation. This is what is the “light of love”. “Jai Jai Shree Radhe”