एक दिन राधिका रानी गहवरवन में खेल रहीं थीं और श्रीकृष्ण उनको ढूंढ़ते-ढूंढ़ते नन्दगांव से चले ।
जब यहां पहुंचते हैं तो ललिता जी कहती हैं “हे नन्द लाल ! तुम यहां कैसे आये? ”
श्यामसुन्दर कहते हैं – “ललिता जी ! हम श्रीराधारानी के दर्शन के लिये आये हैं ।” ललिता जी कहती हैं –”अभी तुमको दर्शन तो नहीं मिलेंगे क्योंकि किशोरी जी अभी महल से चली नहीं हैं ।” जबकि वो चल चुकी थीं ।
ये हैं लाड़ली जी की सखियां, ये टेढ़े ठाकुर से टेढ़ेपन से ही बात किया करती हैं ।
रसिकों ने ऐसा लिखा है –
हम हैं राधे जू के बल अभिमानी
टेड़े रहें मोहन रसिया सौं बोलत अटपट बाणी ।
ललिता जी बोलीं कि किशोरी जी तो अभी नहीं आ रही हैं, तब श्यामसुन्दर कहते हैं – “तुम लोगों ने हमारा नाम चोर रखा है, चोर से चोरी नहीं चलती और ललिता जी तुम समझ रही हो कि हम तुम्हारी चोरी समझ नहीं रहे ।”
ललिता जी पूछती हैं – “हमारी चोरी क्या है? ”
श्रीकृष्ण बोले –
“देख सखी, राधा जू ! आवत ! ”
श्रीकृष्ण बोले –”अरे, लाड़ली जी तो आ रही हैं ! ”
ललिता जी बोलीं – “कैसे पता? ”
श्रीकृष्ण बोले – “किशोरी जी जब आती हैं तब उनके तन की महक चारों ओर फैल जाती है । यह सुगन्ध बता देती है कि वह आ रही हैं । तुम नहीं छिपा सकती हो ‘राधिकारानी’ को । अरे ! चांद को कोई क्या हाथ से ढक सकता है? हम तुम्हारी चोरी जानते हैं ।”
वहां कहा गया है कि श्रीजी खेलती आ रही हैं अपनी सखियों के साथ । ये गहवरवन की वही कुंजें हैं, वही लताएं हैं, वही स्वरूप है । गहवरवन में राधा रानी जब कुंजों से होती हुई आ रही हैं तो उनके आचल को हवा छूती हुई श्रीजी के अंग की सुगन्ध को लेकर के श्रीकृष्ण जहां हैं, वहां पहुंचती है । श्रीजी के अंग की सुगन्ध पाकर श्रीकृष्ण धन्य हो जाते हैं ।
किशोरी जी के अंग की सुगन्ध पाकर ही श्रीकृष्ण धन्य हो जाते हैं?
“धन्य ही नहीं, धन्य-धन्य हो जाते हैं । धन्य-धन्य ही नहीं, अति धन्य हो जाते हैं श्रीकृष्ण । श्रीकृष्ण अति से भी अधिक धन्य, यानि कृतार्थ धन्य हो जाते हैं। तात्पर्य कि “सब कुछ मिल गया, पूर्ण ब्रह्म की प्राप्ति हो गयी । जो पूर्ण ब्रह्म है, वह बरसाने में जाकर ही पूर्ण होता है ।
यह गह्वरवन बहुत ही महत्वपूर्ण वन है क्योंकि ऐसा सौभाग्य किसी अन्य ब्रज के वन को नहीं मिला, जो गहवरवन को मिला, इस वन को राधा रानी ने अपने हाथों से सजाया है और इसमें दोनों श्रीराधा-कृष्ण नित्य लीला करते हैं ।
जय जय श्री श्यामा श्याम
One day Radhika Rani was playing in Gahvaravan and Shri Krishna walked from Nandgaon in search of her.
When we reach here Lalita ji says “O Nand Lal! How did you come here?”
Shyamsundar says – “Lalita ji! We have come for the darshan of Sri Radharani.” Lalita ji says – “You will not get darshan now because Kishori ji has not left the palace yet.” While she had left.
These are Ladli ji’s friends, they talk crookedly to the crooked Thakur.
The Rasikas have written like this –
We are proud of Radhe Ju
Mohan Rasiya Saun speak awkward words.
Lalita ji said that Kishori ji is not coming now, then Shyamsundar says – “You people have named us a thief, stealing from a thief does not work and Lalita ji you are understanding that we do not understand your theft.”
Lalita ji asks – “What is our theft?”
Shri Krishna said –
“Look, Sakhi, Radha Ju! Coming!”
Shri Krishna said – “Hey, Ladli ji is coming!”
Lalita said – “How do you know?”
Shri Krishna said – “Kishori ji, when she comes, the smell of her body spreads all around. This fragrance tells that she is coming. You can’t hide ‘Radhirani’. Hey! What hand does someone cover the moon with? Can? We know your theft.”
There it is said that Shreeji has been playing with her friends. These are the same keys of Gahvaravan, the same vines, the same form. In Gahvaravan, when Radha Rani is passing through the groves, the fragrance of Shreeji’s part of the air touching her lap reaches the place where Shri Krishna is. Shri Krishna becomes blessed after getting the fragrance of Shriji’s part.
Shri Krishna becomes blessed only after getting the fragrance of Kishori ji’s body?
“Not only blessed, Blessed becomes blessed. Not only Blessed, Blessed becomes very Blessed Shri Krishna. Shri Krishna becomes more blessed than most, that is, Blessed is gratifying.” (R.S.N.1) purports that “everything is found, the complete Brahman is attained. That which is the complete Brahman, it becomes complete only by going in the rain.
This Gahvaravan is a very important forest because no other Braj’s forest has got such a fortune, which Gahvaravan has got, this forest is decorated by Radha Rani with her own hands and in it both ‘Shri Radha-Krishna’ perform daily leela.
Jai Jai Shree Shyama Shyam
6 Responses
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