आषाढ़ गुप्त नवरात्रि, कब करें घटस्थापना

माता शक्ति की उपासना के लिए नवरात्रि के पर्व को बहुत शुभ और फलदायी माना जाता है। देवी पूजन का ये पावन पर्व साल में चार बार आता है, जिसमें पहली नवरात्रि चैत्र मास के शुक्लपक्ष में, दूसरी नवरात्रि आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में, तीसरी अश्विन मास में और अंतिम नवरात्रि माघ के महीने में पड़ती है।

कलश पूजन का शुभ मुहूर्त

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि घटस्थापना – 19 जून, सोमवार (शुक्लपक्ष, प्रतिपदा)

घटस्थापना मुहूर्त– 05:08 AM से 07:11 AM

घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – 11:32 AM से 12:27 PM

प्रतिपदा प्रारम्भ – 18 जून, रविवार 10:06 AM पर प्रतिपदा समाप्त – 19 जून, सोमवार 11:25 AM पर

मिथुन लग्न प्रारम्भ– 19 जून को 05:08 AM से मिथुन लग्न समाप्त – 19 जून को 07:11 AM पर

गुप्त नवरात्रि का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र व अश्विन नवरात्रि में शक्ति के 09 स्वरूपों की पूजा की जाती है, किंतु गुप्त नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ स्वरूपों के साथ दस महा विद्याओं, यानि मां काली, मां तारा, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला की उपासना करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि में इन सभी देवियों की गुप्त रूप से आराधना करने पर जातक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

महाविद्याओं की कथा, कौन और और क्या है महाविद्या

नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा की अंगभूता दस महाविद्याओं की साधना वही साधक करते हैं, जो तंत्र-मंत्र और गुप्त विद्याओं पर सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं। अघोरी, साधु और तंत्र-मंत्र के साधक महाविद्याओं के अनन्य भक्त होते हैं, और इनकी साधना से उन्हें अचूक सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

इस समस्त संसार को चलाने वाली परमशक्ति माँ भगवती, पृथ्वी के हर कण में विद्यमान हैं। स्वयं महाकाल शिव अपने अस्तित्व को शक्ति के बिना अधूरा मानते हैं। माँ भगवती से उत्पन्न हुई दस महाविद्याओं की उत्पत्ति में भगवान शिव की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। क्योंकि भगवान शिव ने ही एक बार माता पार्वती को तंत्र, मंत्र, और अनेक सिद्धियों का ज्ञान दिया था, जिसके फलस्वरूप, माता ने समय आने पर स्वयं को दस महविद्याओं के रूप में अवतरित किया। माँ आदिशक्ति के अनेकों रूप हैं, और माता हर रूप में अलौकिक हैं। दस महाविद्याएं काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला – ये सभी माता के स्वरूप हैं।

10 महाविद्या की उत्पत्ति की कथा :-

शिवपुराण में दस महाविद्याओं से सम्बंधित एक कथा का वर्णन है, जिसके अनुसार असुर रुरु का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम दुर्गमासुर था। वह एक अत्याचारी राक्षस था, जिसने ब्रह्मदेव से वरदान के रूप में चारों वेदों माँग लिया था। चारों वेदों को अपने वश में करने के बाद उसने देवलोक और पृथ्वी पर आक्रमण कर दिया। वेदों के लुप्त हो जाने से पूरी सृष्टि में सारे मन्त्र भी लुप्त हो गए। और इससे हवन, पूजा, जप और देव साधना जैसी क्रियाओं का लोप हो गया। साधु, मुनि और अन्य देवगणों में हाहाकार मच गया । धरती पर अकाल पड़ने लगा और कई मनुष्य काल का ग्रास बनने लगे। दुर्गमासुर ने इंद्र पर आक्रमण कर स्वर्गलोक को भी अपने वश में कर लिया। इस भयावह परिस्थिति से दुखी होकर सभी देवताओं ने त्रिदेव की शरण ली। परन्तु स्वयं ब्रह्मा-विष्णु – महेश के पास भी इस विकट समस्या का कोई हल नहीं था। ऐसे में केवल माँ आदिशक्ति ही इस सृष्टि की रक्षा कर सकती थीं। सब देवताओं ने त्रिदेव के साथ मिलकर माँ भगवती का स्मरण किया और उनसे प्रार्थना की, कि ‘हे माँ भगवती! कृपया इस दुर्गति से हमारी रक्षा कीजिये और दुर्गमासुर का नाश कीजिये ।’ तब माँ भगवती ने दसों दिशाओं में अपने दस स्वरूपों को उत्पन्न किया, जो दस महाविद्याएं कहलाईं।

👉🏻जो यह दस महाविद्याएं हैं👉🏻

काली – यह प्रथम महाविद्या है। माता का यह रूप कृष्ण वर्ण है, और उन्होंने खप्पर धारण किया हुआ है। माता की जिह्वा अपने मुख से बाहर है। यह माता का उग्र स्वरूप है।

तारा – तारा का अर्थ है सबको तारने वाली । काली माँ जब कृष्ण वर्ण से नीलवर्ण में परिवर्तित हुई तो उन्हें तारा नाम से संबोधित किया गया। माता का यह स्वरूप उग्र और सौम्य दोनों भावों का समागम है।

छिन्नमस्ता – यह माता का उग्र स्वरूप है, जिसमें उनके

एक हाथ में खड़ग है और दूसरे हाथ में स्वयं का कटा हुआ शीश है। इनके कटे हुए स्कंध से रक्त की तीन धारा बह रही हैं, जिससे उनका छिन्न मस्तक और उनकी दो सखियाँ जया और विजया रक्तपान कर रही हैं।

षोडशी – यह माता का अत्यंत सौम्य स्वरूप है। इनकी छवि श्याम, रक्तिम और स्वर्णिम वर्णों युक्त प्रतीत होती है। माँ षोडशी को तीनों लोकों में सबसे सुन्दर माना गया है, इसीलिए इन्हें त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है।

भुवनेश्वरी – माता का यह रूप सौम्य है। ये संसार के सभी ऐश्वर्य की स्वामिनी मानी जाती है। इनका रूप माँ षोडशी के समान है। चार भुजाओं वाली माँ भुवनेश्वरी का एक हाथ अभी मुद्रा में और दूसरा हाथ वरद मुद्रा में है। शेष दो हाथों में माता ने अंकुश और रज्जु को धारण किया हुआ है।

भैरवी – माता के इस स्वरूप में उग्र और सौम्य दोनों ही गुण समाहित है। इसीलिए उनका एक रूप महाकाली की तरह उग्र है, और दूसरा स्वरूप माँ पार्वती की तरह शांत है। माँ भैरवी महादेव के अवतार भैरव की अर्धांगिनी है।

धूमावती – माता का यह रूप धूमवर्ण अर्थात धुंए के समान है। माता का यह रूप एक वृद्ध विधवा के समान है और इनका वाहन कौआ है। यह माता का उग्र स्वरूप भी कहलाता है।

बगलामुखी :- माता के इस रूप को पीताम्बरा भी कहा जाता है। इस संसार में उठने वाली हर तरंग का कारक माता का यही स्वरूप है। माँ बगलामुखी माता का उग्र रूप है।

मातंगी – शिव का एक नाम मातंग है और मातंगी शिव की अर्धांगिनी हैं। हरितवर्णी अर्थात हरे वर्ण में अवतरित हुई माता मातंगी चतुर्भुजा है। माता के इस स्वरूप ने लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं। यह देवी आदिशक्ति का सौम्य स्वरूप है। वस्त्र धारण किये हुए हैं। यह देवी आदिशक्ति का सौम्य स्वरूप है।

कमला – माता का यह रूप सौम्य है। इन्हें तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। इनका संबंध तंत्र, सिद्धि, समृद्धि और सौभाग्य से है। माँ कमला कमल पर विराजमान हैं और अनेक आभूषण धारण किये हुए हैं। इनका स्वरूप स्वर्णिम है।

माँ के इन दस रूपों और दुर्गमासुर की विकराल सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ। यह युद्ध नौ दिनों तक चला और इन नौ दिनों में पृथ्वी पर प्रचुर वर्षा हुई, जिससे पृथ्वी पर फैला अकाल समाप्त हुआ। दस महाविद्याओं ने दुर्गमासुर की सम्पूर्ण सेना का नाश कर दिया। और अंत में ये दस महाविद्याएं एक रूप में समाहित हो गई और दिव्य प्रकाश से युक्त एक देवी ने अवतार लिया, जो सिंह पर सवार थीं और अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए थीं। इस दिव्य रूप में प्रकट हुई देवी ने दुर्गमासुर का वध किया। चूँकि माता के इस अवतार ने संसार

गुप्त नवरात्रि से जुड़ी एक और मान्यता को दुर्गति से बचाया और दुर्गमासुर का नाश किया, इसीलिए उनके इस अवतार को दुर्गा नाम से पुकारा जानें लगा ।

(गुप्त नवरात्रि से जुड़ी एक और मान्यता)

गुप्त नवरात्रि को लेकर एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि इस दौरान जब भगवान विष्णु शयन अवस्था में होते हैं, तब दिव्य शक्तियां कमज़ोर पड़ने लगती हैं। ऐसे में ब्रह्माण्ड को सुचारु रूप से चलाने के लिए माता शक्ति की गुप्त रूप से आराधना की जाती है, जिससे वो आने वाली विपत्तियों से इस संसार की रक्षा कर सकें। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में माता शक्ति के स्वरूपों की की गुप्त रूप से साधना करने पर जातक की समस्त शीघ्र ही पूरी होती हैं।

(पौराणिक मान्यता)

पुराणों में वर्णन मिलता है कि एक बार ऋषि श्रृंगी अपने भक्तों को दर्शन दे रहे थे। उन भक्तों में से एक स्त्री ने कहा कि हे मुनिवर ! मेरे पति के दुर्व्यसन के कारण मैं पूजा पाठ, दान पुण्य आदि कोई धार्मिक कर्म नहीं कर पाती हूं। मेरा पति मांसाहार व मदिरापान करता है, वो जुआरी भी है, किंतु मैं मां दुर्गा की भक्ति साधना करना चाहती हूं, उनकी उपासना करके अपने परिवार के समस्त पाप कर्मों को नष्ट करना चाहती हूं।

श्रृंगी ऋषि ने स्त्री को उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों में तो सभी भक्त माता शक्ति की पूजा करते है, किंतु दो नवरात्र ऐसे होते हैं, जिनके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं है। यदि तुम इस गुप्त नवरात्रि पर माता दुर्गा की उपासना करो, तो उन्हें अति शीघ्र प्रसन्न कर सकती हो, और मनोवांछित फल प्राप्त कर सकती हो। तब स्त्री ने विधि विधान से आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का व्रत किया, और सभी पापों से मुक्त होकर सुखमय जीवन जीने लगी।



The festival of Navratri is considered very auspicious and fruitful for the worship of Mother Shakti. This auspicious festival of Goddess worship comes four times in a year, in which the first Navratri falls in the bright half of the month of Chaitra, the second Navratri in the bright half of the month of Ashadha, the third in the month of Ashwin and the last Navratri in the month of Magha.

Auspicious time for Kalash Pujan

Ashada Gupta Navratri Ghatasthapana – June 19, Monday (Shuklapaksha, Pratipada)

Ghatasthapana Muhurta – 05:08 AM to 07:11 AM

Ghatsthapana Abhijit Muhurt – 11:32 AM to 12:27 PM

Pratipada Begins – June 18, Sunday at 10:06 AM Pratipada Ends – June 19, Monday at 11:25 AM

Mithun Lagna starts – June 19 at 05:08 AM Mithun Lagna ends – June 19 at 07:11 AM

Significance of Gupta Navratri

According to mythological beliefs, 09 forms of Shakti are worshiped in Chaitra and Ashwin Navratri, but in Gupta Navratri, along with nine forms of Maa Durga, ten Mahavidyas, ie Maa Kali, Maa Tara, Maa Tripur Sundari, Maa Bhuvaneshwari, Maa Chinnamasta are worshipped. There is a law to worship Maa Tripura Bhairavi, Maa Dhumavati, Maa Baglamukhi, Maa Matangi and Maa Kamala. It is believed that worshiping all these goddesses in secret during Gupta Navratri fulfills all the wishes of the person.

Story of Mahavidyas, who and what is Mahavidya

During Navratri, only those devotees who want to achieve accomplishment on Tantra-Mantra and Gupta Vidyas do the sadhna of ten Mahavidyas, which are part of Goddess Durga. Aghori, Sadhus and practitioners of Tantra-Mantra are exclusive devotees of Mahavidyas, and by practicing them they get infallible achievements.

Mother Bhagwati, the supreme power that runs this whole world, is present in every particle of the earth. Mahakal Shiva himself considers his existence incomplete without Shakti. Lord Shiva also has an important role in the origin of the ten Mahavidyas that originated from Maa Bhagwati. Because Lord Shiva had once given Mother Parvati the knowledge of tantra, mantra, and many siddhis, as a result of which, when the time came, the mother incarnated herself in the form of ten Mahavidyas. Mother Adishakti has many forms, and mother is supernatural in every form. Ten Mahavidyas Kali, Tara, Chinnamasta, Shodashi, Bhuvaneshwari, Bhairavi, Dhumavati, Baglamukhi, Matangi, Kamla – all these are the forms of Mother.

10 The story of the origin of Mahavidya :-

Shivpuran describes a story related to ten Mahavidyas, according to which Asura Ruru had a son, whose name was Durgamasura. He was a tyrannical demon who had asked Brahmadev for the four Vedas as a boon. After taking the four Vedas under his control, he attacked Devlok and the earth. With the disappearance of the Vedas, all the mantras also disappeared in the entire universe. And due to this the activities like havan, worship, chanting and worship of God disappeared. There was hue and cry among the sages, sages and other deities. Famine started on the earth and many humans started becoming the grass of death. Durgamasura attacked Indra and took Swargalok under his control. Saddened by this dreadful situation, all the deities took refuge in the Tridev. But even Brahma-Vishnu-Mahesh himself did not have any solution to this critical problem. In such a situation, only Mother Adishakti could protect this creation. All the gods together with Tridev remembered Maa Bhagwati and prayed to her, ‘O Maa Bhagwati! Please save us from this misery and destroy Durgamasura.’ Then Mother Bhagwati created her ten forms in ten directions, which were called ten Mahavidyas.

👉🏻 Which are these ten Mahavidyas 👉🏻

Kali – This is the first Mahavidya. This form of Mata is Krishna Varna, and she is wearing Khappar. Mother’s tongue is out of her mouth. This is the fierce form of mother.

Tara – Tara means the one who saves everyone. When Kali Maa changed from Krishna to Neelvarna, she was addressed by the name Tara. This form of mother is a combination of both fierce and gentle feelings.

Chhinnamasta – This is the fierce form of the mother, in which her

In one hand there is a dagger and in the other hand there is a cut head of his own. Three streams of blood are flowing from his severed shoulder, due to which his severed head and his two friends Jaya and Vijaya are drinking blood.

Shodashi – This is a very gentle form of mother. His image appears to be of black, red and golden colours. Maa Shodashi is considered the most beautiful of all the three worlds, that is why she is also known as Tripura Sundari.

Bhuvaneshwari – This form of mother is gentle. She is considered the owner of all the opulences of the world. Her form is similar to Maa Shodashi. Mother Bhuvaneshwari with four arms has one hand in Abhi Mudra and the other hand in Varad Mudra. In the remaining two hands, the mother is holding the curb and the rope.

Bhairavi – This form of Mother contains both fierce and gentle qualities. That’s why one form of her is fierce like Mahakali, and the other form is calm like Maa Parvati. Mother Bhairavi is the better half of Bhairav, an incarnation of Mahadev.

Dhumavati – This form of Mother is like Dhumvarna means smoke. This form of Mother is like an old widow and her vehicle is a crow. This is also called the fierce form of the mother.

Bagalamukhi :- This form of Mother is also called Pitambara. This form of mother is the cause of every wave that arises in this world. Maa Baglamukhi is the fierce form of Mata.

Matangi – One name of Shiva is Matang and Matangi is the half of Shiva. Mother Matangi, incarnated in Haritvarni means green, is quadrilateral. This form of Mother is wearing red clothes. This is the gentle form of Goddess Adishakti. Wearing clothes. This is the gentle form of Goddess Adishakti.

Kamala – This form of mother is gentle. She is also known as Tantrik Lakshmi. They are related to Tantra, Siddhi, Prosperity and Good Luck. Maa Kamala is seated on a lotus and is wearing many ornaments. His form is golden.

A fierce battle took place between these ten forms of Maa and the formidable army of Durgamasura. This war lasted for nine days and in these nine days there was abundant rain on the earth, due to which the famine spread on the earth ended. Ten Mahavidyas destroyed the entire army of Durgamasura. And finally these ten Mahavidyas got merged in one form and a goddess with divine light incarnated, who was riding on a lion and holding a trishul in one of her hands. Appearing in this divine form, the goddess killed Durgamasura. Since this incarnation of Mother has created the world

Another belief related to Gupta Navratri is that he saved Durga from misery and destroyed Durgamasura, that is why this incarnation of him came to be known as Durga.

(Another belief related to Gupta Navratri)

There is also a popular belief regarding Gupta Navratri that during this time when Lord Vishnu is in the sleeping state, then the divine powers start to weaken. In such a situation, Mother Shakti is secretly worshiped to run the universe smoothly, so that she can protect this world from the coming calamities. It is a belief that on secretly worshiping the forms of Mother Shakti during Gupta Navratri, all the wishes of the person are fulfilled soon.

(mythology)

It is described in Puranas that once sage Shringi was giving darshan to his devotees. One of those devotees said, O Munivar! Due to my husband’s addiction, I am not able to do any religious work like worship, charity etc. My husband is a non-vegetarian and drinks alcohol, he is also a gambler, but I want to worship Maa Durga and destroy all the sins of my family by worshiping her.

Shringi Rishi while telling the solution to the woman said that all the devotees worship Mother Shakti during Vasantik and Sharadiya Navratras, but there are two Navratras, about which not many people know. If you worship Goddess Durga on this Gupta Navratri, you can please her very quickly and get the desired results. Then the woman fasted on Ashadh Gupta Navratri according to the law and started living a happy life after getting free from all sins.

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