एक दिन एक भक्त के पेट में दर्द हो जाता है दर्द दो तीन दिन रहता है भक्त सोचता है मै अब भोजन करता हूँ तब कभी पेट में अधिक दर्द न हो जाए।
भक्त क्या करता है। भक्त अपने अन्तर्मन से अपनी जगह भगवान से प्रार्थना कर भगवान को भोजन कराता है कि भगवान भोजन करते तब मैं करू चाहे भगवान एक ही बात है।
परमात्मा जगत के स्वामी हैं परब्रम्ह परमात्मा सगुण साकार है साकार रूप से अर्थ सब रुप में परमतत्व परमात्मा है अन्न के कण-कण में परमतत्व हैं। सथुल शरीर के रोम रोम में श्री हरि की आभा है।
भक्त भोजन को थाली में परोसता है। टेबल पैर प्लेट रखकर chair पर बैठकर भक्त भगवान से अन्तर्मन से प्रार्थना करता है कि हे भगवान नाथ हे हरि हे स्वामी भगवान् नाथ सबकुछ आप ही हो आप की ही यह काया झोपड़ी हैं हे भगवान नाथ आप भोजन को ग्रहण करे इस शरीर के रोम-रोम में आप हो। आप भोजन में भी हो।
आपसब में निवास करते हो यह संसार और शरीर आपकी रचना है और छोटा सा ग्रास तोड़कर सब्जी लगा कर भगवान को अर्पण करके खाता है। भगवान बैठे हुए भोग धर रहे हैं भोजन कर लेता है उसे बार बार ऐसा अहसास होता है भगवान बैठे हुए भोजन कर रहे हैं।
ऐसे एक भक्त भगवान को भोजन कराता है।भक्त के हृदय दशा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं आनंद की पराकाष्ठा के लिए शब्द छोटे पङ जाते हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग