जय जय श्री राधे राधे
राधा का अर्थ है …मोक्ष की प्राप्त ‘रा’ का अर्थ है ‘मोक्ष’ और ‘ध’ का अर्थ है ‘प्राप्ति’।कृष्ण जब वृन्दावन से मथुरा गए,तब से उनके जीवन में एक पल भी विश्राम नही था।
उन्होंने आतताइयों से प्रजा की रक्षा की, राजाओं को उनके लुटे हुए राज्य वापिस दिलवाए और सोलह हज़ार स्त्रियों को उनके स्त्रीत्व की गरिमा प्रदान की। उन्होंने अन्य कईं जनहित कार्यों में अपने जीवन का उत्सर्ग किया।
श्रीकृष्ण ने किसी चमत्कार से लड़ाइयाँ नहीं जीती। बल्कि अपनी बुद्धि योग और ज्ञान के आधार पर जीवन को सार्थक किया। मनुष्य का जन्म लेकर , मानवता की…उसके अधिकारों की सदैव रक्षा की।
वे जीवन भर चलते रहे , कभी भी स्थिर नही रहे । जहाँ उनकी पुकार हुई,वे सहायता जुटाते रहे।
उधर जब से कृष्ण वृन्दावन से गए, गोपियाँ और राधा तो मानो अपना अस्तित्व ही खो चुकी थी।
राधा ने कृष्ण के वियोग में अपनी सुधबुध ही खो दी। मानो उनके प्राण ही न हो केवल काया मात्र रह गई थी।
राधा को वियोगिनी देख कर ,कितने ही महान कवियों- लेखकों ने राधा के पक्ष में कान्हा को निर्मोही जैसी उपाधि दी।
दे भी क्यूँ न ?
राधा का प्रेम ही ऐसा अलौकिक था…उसकी साक्षी थी यमुना जी की लहरें , वृन्दावन की वे कुंजन गलियाँ , वो कदम्ब का पेड़, वो गोधुली बेला जब श्याम गायें चरा कर वापिस आते थे , वो मुरली की स्वर लहरी जो सदैव वहाँ की हवाओं में विद्यमान रहती थी ।
राधा जो वनों में भटकती ,कृष्ण कृष्ण पुकारती,अपने प्रेम को अमर बनाती,उसकी पुकार सुन कर भी ,कृष्ण ने एक बार भी पलट कर पीछे नही देखा। …तो क्यूँ न वो निर्मोही एवं कठोर हृदय कहलाए ।
राधा का प्रेम ही ऐसा अलौकिक था…उसकी साक्षी थी यमुना जी की लहरें , वृन्दावन की वे कुंजन गलियाँ , वो कदम्ब का पेड़, वो गोधुली बेला जब श्याम गायें चरा कर वापिस आते थे , वो मुरली की स्वर लहरी जो सदैव वहाँ की हवाओं में विद्यमान रहती थी …
किन्तु कृष्ण के हृदय का स्पंदन किसी ने नहीं सुना। स्वयं कृष्ण को कहाँ कभी समय मिला कि वो अपने हृदय की बात..मन की बात सुन सकें।
या फिर क्या यह उनका अभिनय था?
जब अपने ही कुटुंब से व्यथित हो कर वे प्रभास क्षेत्र में लेट कर चिंतन कर रहे थे तब ‘जरा’ के छोडे तीर की चुभन महसूस हुई। तभी उन्होंने देहोत्सर्ग करते हुए ,’राधा’ शब्द का उच्चारण किया।
जिसे ‘जरा’ ने सुना और ‘उद्धव’ को जो उसी समय वह पहुँचे..उन्हें सुनाया। उद्धव की आँखों से आँसू लगतार बहने लगे। सभी लोगों को कृष्ण का संदेश देने के बाद ,जब उद्धव ,राधा के पास पहुँचे ,तो वे केवल इतना कह सके
” राधा, कान्हा तो सारे संसार के थे ,
किन्तु राधा तो केवल कृष्ण के हृदय में थी” जय जय श्री राधे राधे