श्री राधा,भाग :- 1

sea beach ocean


कल कल करती हुई कालिंदी बह रहीं थीं। घना कुँज था फूल खिले थे उसमे से निकलती मादक सुगन्ध सम्पूर्ण वन प्रदेश को डालने आगोश में ले रहीं थी चन्द्रमा की किरणें छिटक रहीं थी यमुना की बालुका ऐसे लग रही थी,,,,,,,

जैसे ये बालुका न हो कपूर को पीस कर बिखेर दिया गया हो ।

कमल खिले हैं कुमुदनी प्रसन्न है उसमें भौरों का झुण्ड ऐसे गुनगुना रहा हैजैसे अपनें प्रियतम के लिये ये भी गीत गा रहे होंबेला, मोगरा , गुलाब इनकी तो भरमार ही थी ।

ऐसी दिव्य प्रेमस्थली में, मैं कैसे पहुँचा था मुझे पता नही ।

मेरी आँखें बन्द हो गयीं जब खुलीं तब मेरे सामनें एक महात्मा थे बड़े प्रसन्न मुखमण्डल वाले महात्मा ।

मैने उठते ही उनके चरणों में प्रणाम किया ।

उनके रोम रोम से श्रीराधा श्रीराधा श्री राधा ये प्रकट हो रहा था ।

उनकी आँखें चढ़ी हुयी थीं जैसे कोई पीकर मत्त हो हाँ ये मत्त ही तो थे तभी तो कदम्ब और तमाल वृक्ष से लिपट कर रोये जा रहे थे रोनें में दुःख या विषाद नही था आल्हाद था आनन्द था ।

मैने उनकी गुप्त बातें सुननी चाहीं मैं अपनें ध्यानासन से उठा और उनकी बातों में अपनें कान लगानें शुरू किये ।

विचित्र बात बोल रहे थे ये महात्मा जी तो ।

कह रहे थे नही, मुझे तुम्हारा मिलन नही चाहिये प्यारे मुझे ये बताओ कि तुम्हारे वियोग का दर्द कब मिलेगा ।

तुम्हारे मिलन में कहाँ सुख है सुख तो तेरे लिए रोने में है तेरे लिए तड़फनें में है तू मत मिल अब तू जा मैं तेरे लिये अब रोना चाहता हूँ मैं तेरे विरह की टीस अपनें सीने में सहेजना चाहता हूँ तू जा जा तू ।

ये क्या महात्मा जी के इतना कहते ही

तू गया ? तू गया ? कहाँ गया ? हे प्यारे कहाँ ?

वो महात्मा दहाड़ मार कर धड़ाम से गिर गए उस भूमि पर

मैं गया मैने देखा उनके पसीनें निकल रहे थे पर उन पसीनों से भी गुलाब की सुगन्ध आरही थी ।

मैं उन्हें देखता रहा फिर जल्दी गया अपनें चादर को गीला किया यमुना जल से उस चादर से महात्मा जी के मुखारविन्द को पोंछा “श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा“यही नाम उनके रोम रोम से फिर प्रकट होनें लगा था ।

वत्स साधना की सनातन दो ही धाराएं हैं और ये अनादिकाल से चली आरही धाराएं हैं

वो उठकर बैठ गए थे उन्हें मैं ही ले आया था देह भाव में ।

उठते ही उन्होंने इधर उधर देखा फिर मेरी ओर उनकी कृपा दृष्टि पड़ी मैं हाथ जोड़े खड़ा था ।

वो मुस्कुरायेउनका कण्ठ सूख गया थामैं तुरन्त दौड़ा यमुना जी गया एक बड़ा सा कमल खिला था, उसके ही पत्ते में मैने जमुना जल भरा और ला कर उन महात्मा जी को पिला दिया ।

वो जानें लगे तो मैं भी उनके पीछे पीछे चल दिया ।

तुम कहाँ आरहे हो वत्स

उनकी वाणी अत्यन्त ओजपूर्ण, पर प्रेम से पगी हुयी थी ।

मुझे कुछ तो प्रसाद मिले

मैनें अपनी झोली फैला दी ।

वो हँसे मैं पढ़ा लिखा तो हूँ नही ?

न पण्डित हूँ न शास्त्र का ज्ञाता मैं क्या प्रसाद दूँ ?

उनकी वाणी कितनी आत्मीयता से भरी थी ।

आप नें जो पाया हैउसे ही बता दीजिये मैने प्रार्थना की ।

उन्होंने लम्बी साँस ली फिर कुछ देर शून्य में तांकते रहे ।

वत्स साधना की सनातन दो ही धाराएं हैं

एक धारा है अहम् की यानि “मैं” की और दूसरी धारा है उस “मैं” को समर्पित करनें की

मेरा मंगल हो मेरा कल्याण हो मेरा शुभ हो इसी धारा में जो साधना चलती है वो अहंम को साधना है ।

पर एक दूसरी धारा है साधना की वो बड़ी गुप्त है उसे सब लोग नही जान पाते

क्यों नही जान पाते महात्मन् ? मैने प्रश्न किया ।

क्यों की उसे जाननें के लिये अपना “अहम्” ही विसर्जित करना पड़ता है“मैं” को समाप्त करना पड़ता है महाकाल भगवान शंकर जो विश्व् गुरु हैंजगद्गुरु हैंवो भी इस रहस्य को नही जान पाये तो उन्हें भी सबसे पहले अपना “अहम्” ही विसर्जित करना पड़ा यानि वो गोपी बनेपुरुष का चोला उतार फेंका तब जाकर उस रहस्य को उन्होंने समझा ।

ये प्रेम की अद्भुत धारा हैपरवो महात्मा जी हँसेये ऐसी धारा है जो जहाँ से निकलती है उसी ओर ही बहनें लग जाती है ।

तभी तो इस धारा का नाम धारा न होकर राधा है ।

जहाँ पूर्ण अहम् का विसर्जन है जहाँ ” मैं” नामक कोई वस्तु है ही नही है तो बस तू ही तू ।

त्याग, समर्पण , प्रेम करुणा की एक निरन्तर चिर बहनें वाली सनातन धारा का नाम है राधा राधा राधा राधा

वो इससे आगे कुछ बोल नही पा रहे थे ।

काहे टिटिया रहे हो ?

मैं चौंक गया ये मुझे कह रहे हैं ।

हाँ हाँ सीधे सीधे “श्रीराधा रानी” पर कुछ क्यों नही लिखते ?

ये आज्ञा थी उनकी मैने उनकी आँखों में देखा ।

मैं लिख लूंगा ? मेरे जैसा प्रेमशून्य व्यक्ति उन “आल्हादिनी श्रीराधा रानी” के ऊपर लिख लेगा ? जिनका नाम लेते ही भागवतकार श्रीशुकदेव जी की वाणी रुक जाती हैऐसी “श्रीकृष्णप्रेममयी श्रीराधा” पर मैं लिख लूंगा ? मैं कहाँ कामी, क्रोधी , कपटी लोभी क्या दुर्गुण नही हैं मुझ में ऐसा व्यक्ति लिख लेगा उन “श्रीकृष्ण प्रिया श्रीराधा” के ऊपर ?



Kalindi was flowing while doing yesterday. It was a dense grove, flowers were blooming, the intoxicating fragrance emanating from it was embracing the entire forest region, the moon’s rays were sprinkling, the sand of the Yamuna looked like this,,,,

As if it is not sand, camphor has been crushed and scattered.

The lotus has blossomed, the water lily is happy, the herd of bumblebees humming in it as if they are also singing songs for their beloved. Bela, Mogra, Gulab were full of them.

I do not know how I had reached such a divine place of love.

My eyes closed, when they opened, there was a Mahatma in front of me, a Mahatma with a very happy face.

As soon as I got up, I bowed down at his feet.

Shree Radha Shree Radha Shree Radha was appearing from his every pore.

His eyes were upturned as if someone was intoxicated after drinking, yes, they were intoxicated, that’s why Kadamba and Tamal were crying hugging the tree.

I wanted to hear his secret words, I got up from my meditation and started listening to his words.

This Mahatma ji was speaking strange things.

They were saying no, I don’t want your meeting dear, tell me when will I get the pain of your separation.

Where is the happiness in your meeting Happiness is in crying for you I am yearning for you You don’t meet me now go I want to cry for you now I want to save the pain of your separation in my chest You go you go.

What is this that Mahatma ji says so much

did you go so gone? where did it go ? Where is the love?

That Mahatma roared and fell on that ground

I went and saw that they were sweating, but the smell of roses was emanating from those sweats as well.

I kept looking at them, then hurriedly wet my sheet with Yamuna water and wiped the face of Mahatma ji with that sheet.

There are only two eternal streams of Vats Sadhana and these are the streams running since time immemorial.

He got up and sat down, I had brought him in the body.

As soon as he got up, he looked here and there, then his blessings fell on me, I was standing with folded hands.

He smiled, his throat was dry, I immediately ran to Yamuna ji, a big lotus had blossomed, I filled Jamuna water in its leaf and brought it and gave it to Mahatma ji.

When he started to know, I also followed him.

where are you guys

His speech was very energetic, but mad with love.

I got some prasad

I spread out my pockets.

He laughed, am I educated or not?

I am neither a scholar nor a knower of the scriptures, what prasad should I give?

His speech was full of intimacy.

Just tell what you have found, I prayed.

He took a long breath, then kept staring into the void for some time.

There are only two streams of Vats Sadhana

One stream is of ego that is “I” and the other stream is of surrendering to that “I”.

May my good be my welfare, may my auspiciousness be mine. The sadhna that goes on in this stream is the sadhna of the ego.

But there is another stream of meditation, it is very secret, not everyone knows it.

Why can’t the great man know? I asked

Because in order to know it, one has to dissolve his “ego”, “I” has to be finished. Mahakal Lord Shankar, who is the world guru, is Jagadguru, even if he could not know this secret, then he should also immerse his “ego” first. That is, he threw away the cloak of a man who became a gopi, only then he understood that secret.

This is a wonderful stream of love, but Mahatma ji laughed, it is such a stream that it starts taking sisters in the same direction from where it originates.

That’s why the name of this stream is Radha instead of Dhara.

Where there is immersion of complete ego, where there is no such thing as “I”, then only you are you.

Radha Radha Radha Radha is the name of the eternal stream of sacrifice, dedication, love and compassion.

He was not able to say anything beyond this.

Why are you titillating?

I am shocked they are telling me this.

Yes yes why don’t you write something directly on “Shriradha Rani”?

This was his order, I saw it in his eyes.

will i write Will a loveless person like me write on those “Alhadini Shriradha Rani”? Whose name Bhagwatkar Shri Shukdev ji’s speech stops, will I write on such “Shri Krishna Prem Mayi Shri Radha”? Where am I lustful, grumpy, hypocrite greedy, what bad qualities are there in me, such a person will write on those “Shri Krishna Priya Shriradha”?

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