जैसो नहिं कहुँ सुन्योँ न देख्योँ, हौं कह भुजहिं उठाय ।।
जाकी नख-मणि चंद्र-चंद्रिकहिं, शंभु समाधिहिं ध्याय ।
ताके संग रैन दिन विहरति, ब्रज वनचरि समुदाय ।।
तजि ब्रजराजहुँ भजति, भजत जो, क्रंदन करुण सुनाय ।
जासु कृपाल शरण गहि गिरिधर, अशरण शरण कहाय ।।
श्री निकुंज-विहारिणी किशोरी जी का स्वभाव इतना सरल है जितना मैंने न कहीं देखा है और न सुना ही है, यह मैं प्रतिज्ञापूर्वक कह रहा हूँ ।
जिन किशोरी जी के चरणों के नाखून की चमक को निराकार-ब्रह्म के रूप में भगवान् शंकर निर्विकल्प समाधि में अनुभव करते हैं, उन्हीं किशोरी जी के साथ ‘उनकी उदारता के कारण’ ब्रज की निरन्तर वनचरियाँ भी नित्य विहार करती हैं ।
किशोरी जी की उदारता का सबसे महान् परिचय यह है कि अपने शरणागत के करुण क्रन्दन को सुनकर प्रियतम श्यामसुन्दर को भी छोड़कर तत्काल भागकर उसके पास जाती हैं । किशोरी जी की शरणागति के ही परिणामस्वरूप श्यामसुन्दर को “अशरण – शरण” की उपाधि प्राप्त हुई है ।
As if I say no, hear or see, say yes, lift your arm. Jaki Nakh-mani Chandra-Chandrikhin, Shambhu Samadhihin Dhyay. Take night with day Viharati, Braj Vanchari community.. Taji Brajrajhun bhajati, bhajat jo, cry and recite compassion. Jasu kripal sharan gahi giridhar, asran refuge, where is it?
The nature of Shri Nikunj-Viharini Kishori ji is so simple that I have neither seen nor heard it anywhere, I am saying this with a pledge.
With the same teenager who experiences the brilliance of the nails of the feet of Lord Shankar in Nirvikalpa Samadhi in the form of formless-Brahm, with the same teenager, ‘because of his generosity’, the constant foresters of Braj also visit regularly.
The greatest introduction to the generosity of Kishori ji is that on hearing the compassionate cry of her refugee, she immediately leaves the beloved Shyamsundar and runs to him. Shyamsundar has received the title of “Asharan-sharan” as a result of the refuge of Kishori ji.